Aaj Samaj (आज समाज), INS Kadamba, नई दिल्ली: भारतीय नौसेना चीन और पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तेजी से अपनी परिचालन क्षमताओं में इजाफा कर रही है और नौसेना बेस सुविधाओं का विस्तार इसकी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है। इसी कड़ी में इस हफ्ते की शुरुआत में भारत ने पश्चिमी समुद्री तट पर कर्नाटक के कारवार में अब तक का सबसे बड़ा नौसैनिक अड्डा तैयार किया है।
खड़ा किया जा सकेगा आईएनएस विक्रमादित्य
अरब सागर में बनाए गए इस नौसैनिक अड्डे की खास बात यह है कि स्वेज नहर के पूर्व में बनाया गया यह बेस पाकिस्तान के ठीक बगल में है, जिससे पड़ोसी मुल्क की बेचैनी बढ़ना लाजिमी है। देश के तीन बड़े नेवी बेस में सबसे बड़े इस बेस पर नौसेना के सबसे बड़े युद्धपोत (44500 टन भार वाले) आईएनएस विक्रमादित्य को खड़ा किया जा सकता है।
इस नौसैनिक अड्डे को आईएनएस कदंबा या कारवार बेस या प्रोजेक्ट सीबर्ड कहा जाता है। यहां भारत की पहली शिप लिफ्ट सुविधा है जो डॉकिंग और अनडॉकिंग के लिए युद्धपोतों व पनडुब्बियों को शिप लिफ्ट करेगी। नौसेना प्रमुख एडमिरल आर हरि कुमार ने 9 अप्रैल को आफशोर पेट्रोल वेसल्स (ओपीवी) के लिए 350 लंबे प्रमुख घाट और नौसेना बेस कारवार में एक आवासीय परिसर का भी शुभारंभ किया है।
डॉक की जा सकेंगी 32 पनडुब्बियां व 50 जंगी जहाज
आईएनएस कदंबा नौसेना को व्यापारिक जहाजों की आवाजाही की चिंता किए बिना अपने परिचालन बेड़े की स्थिति और संचालन की इजाजत देता है। इस नौसैनिक ठिकाने पर कुल तीन एयरक्राफ्टर कैरियर हैं। वहीं यहां 32 पनडुब्बियों और 50 जंगी जहाज को डॉक किया जा सकता है। इसके अलावा यहां 23 यार्डक्राफ्ट होंगे। नौसैनिक डॉकयार्ड, एयर स्टेशन, चार कवर्ड ड्राई बर्थ व 400 बेड के अस्पताल की भी यहां सुविधा है।
सैनिक एयर स्टेशन भी बन रहा, मरम्मत का भी काम
आईएनएस कदंबा में सैनिक एयर स्टेशन भी बनाया जा रहा है, ताकि हेलिकॉप्टर्स, मानवरहित एरियल व्हीकल, ड्रोन्स और मीडियम ट्रांसपोर्ट एयरक्रॉफ्ट भी यहां खड़े हो सकें। इसके अलावा यहां सिविल टर्मिनल भी बनाया जा रहा है। इस नौसैनिक अड्डे पर पनडुब्बियों, जंगी जहाजों और अन्य सैन्य साजो सामान को डॉक करने के अलावा उसकी मरम्मत भी की जा सकेगी।
युद्ध की स्थिति में फाइटर जेट आसानी से भर सकेंगे उड़ान
आईएनएस कदंबा या कारवार बेस पाकिस्तान के सबसे निकट नौसैनिक अड्डा है, लेकिन उसके सभी फाइटर जेट विमानों की रेंज से दूर है। युद्ध की स्थिति में इस नौसैनिक अड्डे से फाइटर जेट आसानी से उड़ान भर सकेंगे। इसके अलावा अरब सागर में भी पाकिस्तान भारतीय नौसेना के गुप्त युद्धपोत, विध्वंसक युद्धपोत और पनडुब्बियों की चपेट में आ सकता है, जो पहले से ही इस बेस पर तैनात होंगे।
1971 की जंग के समय ही महसूस हुई थी जरूरत
बता दें कि आईएनएस कदंबा की शुरुआत 2005 में हुई थी, हालांकि इसकी जरूरत 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय ही महसूस हुई थी। उस समय मुंबई हार्बर पर काफी भीड़ थी जिस कारण सेना को सुरक्षा चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। कारवार नेवी बेस के पास समुद्र की गहराई भी अच्छी है और जमीन भी उपलब्ध है, जहां इसका विस्तार हो सकता है। इसे अलावा इस बेस की विशेषता यह है कि यह दुनिया के सबसे व्यस्त समुद्री मार्ग स्वेज नहर के पास है। यानी अरब सागर से लेकर स्वेज नहर तक भारत की व्यापारिक और जंगी बेड़ों की निगरानी और उसकी सुरक्षा करना दोनों अधिक मजबूत और पहले से ज्यादा सुलभ हो गई है।
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