छोटी काशी में मिलेगी संस्कृत और वैदिक शिक्षा की दीक्षा

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पंकज सोनी, भिवानी:
जन्म से ही बच्चों को संस्कार देकर हम अपनी संस्कृति और परंपराओं को जीवित रख सकते हैं। यह बात स्थानीय हालुवास गेट स्थित सिद्धपीठ बाबा जहरगिरी आश्रम के श्रीमहंत डॉ. अशोक गिरी ने बच्चों में संस्कार डालने की मुहिम के शुभारंभ अवसर पर कही।
उन्होंने कहा कि वर्तमान परिवेश में पाश्चात्य सभ्यता की छाप हमारी संस्कृति को विकृत्त करने का प्रयास हंै। यदि हम अपने नौनिहालों को बचपन से ही परंपराओं व संस्कृति का बोध करवाएंगे तो हमारे संस्कार लंबे समय तक ग्वाही देंगे। वैदिक शिक्षा भारत की सबसे प्राचीन शिक्षा व्यवस्था है। भारत में अतीत से ही वैदिक शिक्षा का प्रचलन था। पहले वैदिक शिक्षा गुरुकुल में हुआ करती थी। यहां छात्रों को शिक्षा के साथ-साथ संगीत, राजनीति, ज्योतिष, खगोल आदि के बारे में भी जानकारी दी जाती थी, लेकिन समय के साथ लोगा संस्कृत शास्त्रों व वैदिक शिक्षा को भूलते जा रहे थे। लेकिन अब स्थानीय हालुवास गेट स्थित सिद्धपीठ बाबा जहरगिरी आश्रम में बच्चों को हिंदु संस्कृति एवं परंपराओं की जानकारी और रीति-रिवाज के बारे में जानकारी देने के उद्देश्य से वैदिक शिक्षा भी दी जाएगी। जिसकी शुरूआत बुधवार से आश्रम के पीठाधीश्वर अंतर्राष्ट्रीय श्रीमहंत (जूना अखाड़ा) अशोक गिरी महाराज के सान्निध्य में आयोजित की गई। इसी के तहत बुधवार को 6 बटुकों का उपनयन संस्कार हुआ तथा उन्हे वैदिक शिक्षा के लिए तैयार किया गया।

श्रीमहंत ने बताया कि पहले यह वैदिक शिक्षा कांशी में दी जाती थी, लेकिन अब बच्चों को यह वैदिक शिक्षा जहरगिरी आश्रम में दी जाएगी। इस बारे में श्रीमहंत अशोक गिरी महाराज ने बताया कि वैदिक शिक्षा के माध्यम से छात्रों को सिखाया जाएगा कि कैसे वैदिक शिक्षा विज्ञान और योग से जुड़ी है। उन्होंने कहा कि आज बटुकों का उपनयन संस्कार हुआ। उन्होंने बताया कि हमारे सनातन संस्कृति में 16 संस्कार बताए गए हैं, इसमें उपनयन संस्कार वेद आरंभ समावर्तन कर्णवेध संस्कार जीवन में अति आवश्यक है। उन्होंने बताया कि अब इन बच्चों को वैदिक शिक्षा का ज्ञान दिया जाएगा। उपनयन संस्कार पर प्रकाश डालते हुए श्रीमहंत ने बताया कि उपनयन संस्कार जिसमें जनेऊ पहना जाता है और विद्यारंभ होता है। मुंडन और पवित्र जल में स्नान भी इस संस्कार के अंग होते हैं। जनेऊ पहनाने का संस्कार सूत से बना वह पवित्र धागा जिसे यज्ञोपवीत धारी व्यक्ति बाएं कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहनता है। यज्ञ द्वारा संस्कार किया गया उपवीत, यज्ञसूत्र या जनेऊ यज्ञोपवीत एक विशिष्ट सूत्र को विशेष विधि से ग्रंथित करके बनाया जाता है।

इसमें सात ग्रन्थियां लगायी जाती हैं। ब्राम्हणों के यज्ञोपवीत में ब्रह्मग्रंथि होती है। तीन सूत्रों वाले इस यज्ञोपवीत को गुरु दीक्षा के बाद हमेशा धारण किया जाता है। तीन सूत्र हिंदू त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक होते हैं। अपवित्र होने पर यज्ञोपवीत बदल लिया जाता है। बिना यज्ञोपवीत धारण किए अन्न जल गृहण नहीं किया जाता। रील्ल३ ा१ङ्मे े८ ्रढँङ्मल्ली