आज समाज डिजिटल, नई दिल्ली:
Indo-China war 1962 भारत और चीन के बीच पिछले करीब डेढ़ साल से स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है। पिछले साल हुई गलवान घाटी की हिंसक झड़प में जहां चीन के कई सैनिक मारे गए थे वहीं भारत के भी कई सैनिक वीर गति को प्राप्त हुए थे। अभी भी पूर्वी लद्दाख से लेकर पूर्वोत्तर इलाकों में चीन की नापाक हरकतों की वजह से दोनों देशों के बीच सीमा विवाद जारी है।
Indo-China war 1962 यह भी रहा विवाद का कारण
1959 के तिब्बती विद्रोह के बाद जब भारत ने दलाई लामा को शरण दी तो चीन ने भारत को टारगेट करना शुरू कर दिया। हालात इस कदर बिगड़ते चले गए कि 20 अक्टूबर 1962 को दोनों देशों के बीच युद्ध छिड़ गया। तब चीन ने बातचीत की आड़ में युद्ध शुरू कर दिया। चीन की सेना ने 20 अक्टूबर 1962 को लद्दाख में और मैकमोहन रेखा के पार एक साथ हमले शुरू किए।
Indo-China war 1962 भारत के सैनिकों की तैनाती कम थी
1962 में जब चीन ने भारत पर दो जगह से हमला किया तो उस समय दुर्गम और बर्फ से ढकी पहाड़ियों का इलाका होने के कारण भारत ने वहां जरूरत भर के सैनिक तैनात किए थे, जबकि चीन पूरी ताकत के साथ युद्ध में उतरा था। इसी के चलते भारत के बहुत बड़े भूभाग के अंदर तक चीन ने घुसपैठ कर ली और पश्चिमी क्षेत्र में चुशूल में रेजांग-ला और पूर्व में तवांग पर कब्जा कर लिया।
Indo-China war 1962 पूरे एक माह बाद युद्ध विराम की घोषणा की
चीनी सेना ने 20 अक्टूबर को युद्ध शुरू किया और पूरे एक माह बाद 20 नवंबर 1962 को युद्ध विराम की घोषणा की। इस युद्ध में भारत की ओर से 1383 सैनिक शहीद हुए थे। वहीं चीन के लगभग 722 सैनिक मारे गए। घायल सैनिकों की बात की जाए तो 1962 के युद्ध में चीन के सैनिक अधिक घायल हुए थे। चीन के लगभग 1697 सैनिक घायल हुए थे, वहीं भारत के 1,047 घायल हुए। दोनों देशों के बीच अगर कुल क्षति की बात की जाए तो बहुत अधिक अंतर नहीं था।
Indo-China war 1962 इसलिए रिश्तों में रहती है कड़वाहट
भारत-चीन युद्ध की सबसे बड़ी वजह 4 हजार किलोमीटर की सीमा थी, जो कि निर्धारित नहीं है। इसे एलएसी कहते हैं। भारत और चीन के सैनिकों का जहां तक कब्जा है, वही नियंत्रण रेखा है। जो कि 1914 में मैकमोहन ने तय की थी, लेकिन इसे भी चीन नहीं मानता और इसीलिए अक्सर वो घुसपैठ की कोशिश करता रहता है।
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