Indira Ekadashi Vrat 2024: जानिए पितृपक्ष में पढ़ने वाली इंदिरा एकादशी की कथा के बारें में, मिलती है पितरों को मोक्ष की प्राप्ति

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जानिए पितृपक्ष में पढ़ने वाली इंदिरा एकादशी की कथा के बारें में, मिलती है पितरों को मोक्ष की प्राप्ति
Indira Ekadashi Vrat 2024: जानिए पितृपक्ष में पढ़ने वाली इंदिरा एकादशी की कथा के बारें में, मिलती है पितरों को मोक्ष की प्राप्ति

Indira Ekadashi, (आज समाज), नई दिल्ली : 28 सितंबर यानि कल है इंदिरा एकादशी। पितृपक्ष में पढ़ने वाली आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का विशेष महत्व माना जाता है। श्रादपक्ष के महीने में इस एकादशी का महत्व 100 गुणा बढ़ जाता है। एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधिवत रूप से पूजा-अर्चना की जाती है। इंदिरा एकादशी का व्रत करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है पितृ प्रसन्न होते है और साथ ही खुद के लिए भी स्वर्ग में स्थान प्राप्त कर सकते हैं। तो आइए जानते है इंदिरा एकादशी की कथा व महत्त्व के बारें में…

इंदिरा एकादशी की तिथि का उदय 28 सितंबर 2024 को ही माना जा रहा है ।

इंदिरा एकादशी का पारण समय – 29 सितंबर, सुबह 6:15 से 7 :14 तक (अंबाला एवं निकटवर्ती स्थानों के लिए )

इंदिरा एकादशी व्रत की कथा

प्राचीन कथाओं के अनुसार, सतयुग में महिष्मती नगरी में इंद्रसेन नाम का एक राजा राज्य करता था। उसे सभी प्रकार के भौतिक सुख – सुविधाएं प्राप्त थे। एक दिन नारद मुनि, राजा इंद्रसेन की सभा में पहुंचे। राजा इंद्रसेन को नारद जी ने बताया कि कुछ दिन पहले उनकी भेंट यमलोग में राजा के पिता से हुई। नारद जी ने राजा को कहा कि अब मैं जो तुम्हे बातें कहूंगा वह सब आपके पिता ने मुझसे कही है उनके जीवन काल में एकादशी का व्रत दुर्भाग्य वश भंग हो गया था, जिसके कारण उन्हें अभी तक मुक्ति नहीं मिल पाई है और वह भी तक यमलोक में भटक रहे हैं।

यह बात सुनकर राजा बहुत ही दुखी और परेशान हो गए और राजा ने तुरंत ही नारद जी से उनकी मुक्ति दिलाने का अचूक उपाय पूछा? जिसका हल निकालते हुए नारद जी ने राजा को बताया कि यदि वह पितृपक्ष में पढ़ने वाली इंदिरा एकादशी का व्रत करते हैं, तो इससे उनके पिता की आत्मा को शांति मिलेगी और सभी प्रकार के पापों से मुक्ति भी मिल जाएगी। साथ ही स्वर्ग में स्थान प्राप्त कर सकेंगे। तब राजा ने संकल्प लिया की वह इंदिरा एकादशी व्रत जरूर करेंगे और भगवान विष्णु की विधिवत पूजा अर्चना भी करेंगे।

इंद्रसेन राजा ने ब्राह्मण भोज और उनके नाम से दान-पुण्य भी किया, जिसके परिणामस्वरूप इंदिरा एकादशी का व्रत करने और दान करने से राजा के पिता को मुक्ति तो मिली ही साथ मोक्ष की प्राप्ति भी हुई। एकादशी व्रत के करने से राजा इंद्रसेन को भी मृत्यु के बाद बैकुंठ धाम की प्राप्ति हुई। यही कारण है कि आज भी जो लोग इस व्रत का पालन करते हैं उन्हें अवश्ये ही बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती हैं।

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