डाॅ.श्रीकृष्ण शर्मा
नईदिल्ली। टोक्यो ओलंपिक खेलों में भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन अभूतपूर्व होगा। कोरोना महामारी की वजह से कई प्रतिबंधनों और नियमों के बदलावों के साथ हो रहे टोक्यो ओलंपिक खेल भारतीय खिलाड़ियों के लिए उम्मीदों पर खरा उतरने का बेहतरीन मौका है। भारतीय खिलाड़ियों का उच्च स्तरीय खेल की बदौलत माना जा रहा है कि पुरूष हाॅकी, बैडमिंटन, निशानेबाजी, मुक्केबाजी, कुश्ती, भारोत्तोलन में भारत के खाते में पदक जुड़ेंगे। एथलेटिक्स की जेवेलिन में भी पदक प्रदर्शन की बात कही जा रही है। आज पूरा देश अपने खिलाड़ियों की जीत की आशा के साथ उनकी हौंसलाअफजाई में लगा है। भारत का ओलंपिक खेलों में भाग लेने का इतिहास पुराना है। लेकिन भारत को आज जहां होना चाहिए था नहीं पहुंच पाया। एक घनी आबादी वाले देश भारत की की ओलंपिक खेलों की सफलता उंट के मुंह में जीरा के समान है। भारत की ओलंपिक खेलों में अगर गोल्ड मेडल की बात करें तो हाॅकी के अलावा व्यक्गित मुकाबलों में केवल निशानेबाज अभिनव बिंद्रा के पेईचिंग ओलंपिक खेलों में सोने के तमगे की जीत जुड़ी।
ओलंपिक खेलों में हाॅकी में मिले स्वर्ण पदक के बाद अभिनव बिंद्रा का यह प्रदर्शन इस शून्य को भरकर भविष्य के लिए रास्ता दिखाने वाला माना गया। लेकिन यह सिलसिला जारी न सका। भारत का लंदन ओलंपिक खेलों में छः पदकों के साथ प्रदर्शन में जबदस्त सुधार तो आया लेकिन सोने की कामयाबी न पा सके। सुशील कुमार की कुश्ती में और विजय कुमार की निशानेबाजी में रजत पदकों की सफलता जरूर इन आधा दर्जन पदकों में उत्साहवर्धन रही। यूं तो भारत के पहलवाल खाशाबा जाघव ने हेल्सिंकी ओलंपिक खेलों में व्यक्तिगत मुकाबले में कांस्य पदक के साथ शुरूआत कर दी थी। यहां हाॅकी के साथ यह जीत भारतीयों के लिए एक उमंग थी। उसके चवालीस साल बाद एटलांटा ओलंपिक खेलों में टेनिस में लिएंडर पेस ने कांस्य पदक जीत कर धूल को हटाने वाली कामयाबी हांसिल की। एथेंस में राज्यवर्धन सिंह राठौर ने शूटिंग रजत पदक का निशाना आज भी याद आता है।
पुरूष हाॅकी की जीत मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भारतीय के लिए बड़ी अहमियत रखती है। जिसमें आठ स्वर्ण पदक सहित कुल ग्यारह पदक जीतकर ऊंचाइयां छुई। लेकिन माॅस्को ओलंपिक में मिली स्वर्ण पदक की जीत के बाद हाॅकी में अभी तक सूना ही सूना चला आ रहा है। ओलंपिक खेलों की हाॅकी में स्वर्ण पदको के अतिरिक्त रोम में रजत पदक,मेक्सिको और म्यनिख में कांस्य पदक भी हांसिल किए। भारतीय कामयाबी में कर्णम मल्लेश्वरी महिला भारोत्तोलन,विजेन्द्र सिंह मुक्केबाजी में,एम सी मैरी काॅम महिला मुक्केबाजी,सुशील कुमार कुश्ती,साइना नेहवाल बैडमिंटन,गगन नारंग शूटिंग,योगेश्वर दत्त कुश्ती और साक्षी मलिक कुश्ती में कांस्य पदक के साथ अपना नाम दर्ज करा चुके है। रियो डी जनेरियो में जहां हमें पदकों में बढोत्तरी की उम्मीदें थी और माना जा रहा था कि यह दर्जन पदक तक पहुंच जाएगी, वहां केवल दो पदकों के साथ मन समझाना पड़ा। पी वी सिंधु ने बैडमिंटन में उम्दा खेल की बदौलत भारत को रजत पदक दिलवाया। जबकि महिला पहलवान साक्षी मलिक ने कुश्ती के कांस्य पदक जीत ने भारतीयों को थोडी राहत देने का काम किया।