इसी साल फरवरी का महीना था जब भारत को कोरोना वैश्विक महामारी के प्रति सजग होना बाकी था। जन-जीवन सामान्य तरीके से चल रहा था। दिल्ली के कनॉट प्लेस स्थित खादी ग्रामोद्योग भवन का जीर्णोद्धार हुआ था और वहां की अपनी आकस्मिक यात्रा के दौरान मैंने देखा कि खादी के कुछ रुमालों को प्रदर्शित किया गया था। जाहिर तौर पर खादी के व्यापक उत्पादों के बीच वह एक नया उत्पाद था। सूती कपड़ों के हिमायती होने के कारण मैं उनमें से कुछ रुमालों को लेने से खुद को रोक नहीं सका। हालांकि ऐसा नहीं है कि उसकी गुणवत्ता के कारण मेरा ध्यान उस ओर आकर्षित हुआ बल्कि उस पैकेट के पीछे छपी तस्वीर पर मेरी नजर गई जिसमें रुमाल की सिलाई करने वाली कुछ महिलाओं को दशार्या गया था। उसी तस्वीर ने मुझे अपनी ओर आकर्षित किया।
वह तस्वीर भावनात्मक तौर पर तत्काल झकझोरने के लिए काफी दमदार थी। जिज्ञासावश मैंने खादी रुमाल के बारे में और अधिक जानने की कोशिश की जो खादी इंडिया द्वारा तैयार अब तक का शायद सबसे कम कीमत वाला उत्पाद है। गूगल पर सर्च करने से तत्काल मुझे पता चला कि केवीआईसी के नगरोटा (जम्मू-कश्मीर) केंद्र में सिले गए खादी के रुमालों को बिक्री के लिए दिसंबर 2019 में लॉन्च किया गया था। इससे वह उत्पाद कई पायदान ऊपर चढ़ गया। उस केंद्र ने 2016 में खादी के रुमालों की सिलाई शुरू की थी। वहां कश्मीर घाटी के आतंकवाद प्रभावित परिवारों की लगभग 300 महिला कारीगरों ने खादी रुमालों की सिलाई की थी। इसने मुझे खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) की उस पहल के बारे में जानकारी मिली जिसने अनिवार्य तौर पर इन महिलाओं के जीवन में एक बदलाव लाया।
इस प्रकार ये महिलाएं तमाम बाधाओं के बावजूद आगे बढ़ने और सम्मानजनक आजीविका के साथ जीवन यापन करने में कामयाब रहीं। वे महिलाएं थीं जो रोजाना 10,000 से अधिक रुमालों का उत्पादन करती थीं। कुछ महीने बाद जब कोविड-19 की रोकथाम के लिए देशव्यापी लॉकडाउन लगाया गया तो जम्मू में महिलाओं के उसी समूह ने कोरोना के खिलाफ जंग में सबसे प्रभावी उपकरण- फेस मास्क के उत्पादन में देश का नेतृत्व किया। अप्रैल 2020 में केवीआईसी ने अपने नगरोटा केंद्र को मास्क सिलाई केंद्र में बदल दिया और इन महिला कारीगरों ने सूती खादी फेस मास्क के उत्पादन में जुट गईं। ये मास्क न केवल त्वचा के लिए उपयुक्त थे बल्कि इन्हें घोकर दोबारा इस्तेमाल भी किया जा सकता था। साथ ही यह खादी का सबसे सस्ता उत्पाद था जिसकी कीमत महज 30 रुपये रखी गई थी। समाचार रिपोर्टों के अनुसार, केवल जम्मू-कश्मीर सरकार ने ही 7.5 लाख खादी फेस मास्क के लिए आॅर्डर दिया था।
इसका उद्देश्य न केवल अपने लोगों को इस बीमारी से बचाना था बल्कि आर्थिक संकट के दौरान जम्मू-कश्मीर के कारीगरों की मदद करना भी था। खादी के मास्क ने नगरोटा जैसे छोटे शहर के इस सिलाई केंद्र से राष्ट्रपति भवन, प्रधानमंत्री आवास, केंद्र सरकार के कई मंत्रालयों, राज्य सरकारों और सार्वजनिक उपक्रमों के अलावा देश की एक बड़ी आबादी तक अपनी पहुंच बनाई। संकट को अवसर में बदलने का श्रेय इस गांधीवादी संगठन को जाता है।
कारीगरों को कम समय में फेस मास्क की सिलाई करने के लिए नए सिरे से प्रशिक्षित किया गया ताकि देश में मास्क की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए उत्पादन बढ़ाया जा सके क्योंकि कोरोना के मामले रोजाना बढ़ रहे हैं। जब मुझे पता चला कि केवीआईसी ने लॉकडाउन के दौरान खादी के मास्क बनाने वाले कारीगरों को 50 लाख रुपये से अधिक का भुगतान किया है तो मैं अचंभित था क्योंकि उस दौरान अन्य सभी गतिविधियां लगभग बंद थीं। जम्मू-कश्मीर में गांधीवादी संगठन की गतिविधियां कहीं अधिक विविध हैं। इनमें हनी मिशन के तहत शहद उत्पादन में राज्य की अपार क्षमता का दोहन, कुम्हार सशक्तिकरण योजना के जरिये कुम्हार समुदाय को सशक्त बनाना और केंद्र सरकार की प्रमुख योजना प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी) के माध्यम से बेरोजगारों के लिए रोजगार पैदा करना शामिल हैं। एक संकट प्रबंधन एवं संघर्ष के बाद पुनरुत्थान पेशेवर के तौर पर मुझे असाधारण एवं आपात स्थितियों में भी देश भर में यात्रा करने का विशेषाधिकार प्राप्त है। जम्मू जिले के ऐसे ही एक अध्ययन के दौरान मुझे यह जानकर सुखद आश्चर्य हुआ कि लॉकडाउन के दौरान भी केवीआईसी ने अपनी गतिविधियों को किस प्रकार जारी रखा।
आर सुदर्शन
(लेखक पूर्व वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी एवं सलाहकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)