डाॅ.श्रीकृष्ण शर्मा
टोक्यो ओलंपिक खेलों में भारतीय पुरूष हाॅकी टीम ने इक्तालीस साल बाद कांस्य पदक जीतकर भारतीयों की निराशा को हटाने का काम किया है। भारत की इस शानदार जीत ने पदक के सूखे को खत्म कर दिया। एक समय वो था जब ओलंपिक खेलों में भारत की तूती बोलती थी। माॅस्को ओलंपिक खेलों के बाद समय ने ऐसा पलटा खाया कि भारतीय हाॅकी धरातल पर चली गई थी। हाॅकी को लेकर भारतवासियों का धैर्य भी डगमगाया हुआ था। खेल की बात निकली नहीं कि हाॅकी के इर्द गिर्द घूमती रहती थी। उदासी के साथ बात की समाप्ति हो जाती थी। यह जीत भारत के लिए बड़ी जीत है। बेशक कांस्य पदक की ही कामयाबी है लेकिन, इस जीत ने भारतीयों को सीना तानने कर चलने के लिए हिम्मत भर दी है। आखिर भारतीय हाॅकी का गौरवशाली इतिहास रहा हैै। मेजन घ्यानचंद की यादों से जोड़कर अगर देखें तो हाॅकी के जादूगर ने भारतीय हाॅकी की जो पहचान बनाई थी वह फिर आती दिखाई पड रही है। भारतीय खेलों में अगर हाॅकी के योगदान ही बात करें तो इतना है कि आज जो भारत राष्ट्रीय खेल दिवस मनाता है उस दिन हाॅकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की जन्म तारीख है।
ओलंपिक खेलों में शानदार शुरूआत करने वाली भारतीय पुरूष हाॅकी टीम ने दुनिया को बताया कि हाॅकी कैसे खेली जाती है। टोक्यो ओलंपिक खेलों में मिले कांस्य पदक से पहले भारतीय हाॅकी टीम आठ स्वर्ण पदक, एक रजत पदक और दो कांस्य पदक ओलंपिक खेलों में जीत चुकी है। कामयाबी का उंचाईयां देखिए कि आजादी से पूर्व ही तीन ओलंपिक खेलों में तीन स्वर्ण पदक जीतकर जलवा बिखेरे हुए थी। इस जीत को फिर अगले तीन ओलंपिक खेलों में भी जारी रखा। लेकिन जब माॅस्को ओलंपिक खेलों के बाद हाॅकी के प्रदर्शन में गिरावट का दौर शुरू हुआ तो संभलना ही मुश्किल हो रहा था। टोक्यो भारतीय हाॅकी के लिए शुभ साबित होता रहा है। भारत ने उन्नीस सौ चैंसठ के टोक्यो ओलंपिक खेलों में भी स्वर्ण पदक के साथ ओलंपिक खेलों में वापसी की थी। जबकि उससे पहले रोम ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदकोें की जीत का सिलसिला रजत पदक में बदल गया था।
एम्स्टडैंम, लाॅस एंजेलिस,बर्लिन, उन्नीस सौ अडतालीस के लंदन, हेल्सिन्की, मेलबर्न ओलंपिक खेलों में फील्ड हाॅकी में भारत ने लगातार छः स्वर्ण पदक जीते हैं। इसके अलावा हाॅकी में रोम ओलंपिक खेलों में रजत पदक, उन्नीस सौ चैंसठ के टोक्यो ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक जीते थे। मेक्सिको और म्यनिख ओलंपिक खेलों में कांस्य पदक से संतोष करना पडा। भारत की टीम ने मास्को ओलंपिक खेलों में फिर से स्वर्ण पदक के साथ जीत दर्ज कर देशवासियों को विश्वास दिलाया कि बैचेन होने की जरूरत नहीं है। लेकिन फिर ऐसी गिरी कि अब इन टोक्यो ओलंपिक खेलों में उठने का भरोसा दिला रही है। जर्मनी के खिलाफ इस जीत ने इकतालीस साल से मेडल के इंतजार को खत्म किया है। साथ ही जिस तरह से पिछडने के बाद खेल में भारतीय टीम ने वापसी की वह वास्तव में काबीले तारीफ है। कांस्य पदक के इस मुकाबले में जर्मनी के चार गोल के मुकाबले मनप्रीत सिंह की अगुआई वाली भारत की सजी हुई पुरूष टीम ने पांच गोल ठोक कर साबित कर दिया कि भारतीय हाॅकी उलटफेर करने का दम रखती हैै। यह कहना जरूरी हो जाता है कि जर्मनी की टीम ओलंपिक खेलों में पदक जीतती आ रही थी। जर्मनी की मेडल जीतने की निरंतरता की इच्छा को भारतीय टीम ने चूर चूर कर दिया। भारतीय टीम स्वर्ण पदक की दावेदार मानी जा रही थी। लेकिन सेमीफाईनल में बेल्जियम से मिली हार ने उम्मीदों पर पानी फेर दिया। टोक्यो ओलंपिक खेलों में मिली इस जीत के साथ ही भारतीय हाॅकी टीम की मेडल की संख्या एक दर्जन हो गई।