भारत में आमेजन और फ्लिपकार्ट ने ऑनलाइन बुकस्टोर से शुरुआत की थी, लेकिन आज हालात बदले हैं। पूरे बाजार पर इनका कब्जा है। भारतीय परम्परागत व्यापर की रीढ़ ख़त्म हो रहीं है। व्यापारियों का गुस्सा बढ़ रहा है, लेकिन सरकारें चुप हैं। फ्लिपकार्ट 11 साल पुरानी जबकि अमेजन 6 साल पहले भारत में आई। भारत में अमेजन का मार्केट शेयर 38 जबकि फ्लिपकार्ट कि हिस्सेदारी 43 फीसदी है। 10 हजार से अधिक उत्पादन की डिलेवरी करती हैं। भारत में आमेज़न के पास 67 तो फ्लिपकार्ट के पास 21 वेयरहाउस हैं। भारत में फ्लिपकार्ट से आगे निकलने के लिए अमेजन ने हाल ही में 2,600 करोड़ रुपए का निवेश किया है। भारत में अमेज़न ने 2018- 2019 में 26,00 जबकि 2017 में 8,150 करोड़ रुपए निवेश किया था । भारतीय बाजार विदेशी कम्पनियों के लिए विनिवेश की बड़ी उम्मीद है। जिसकी वजह से बजार पर कब्जा करने की होड़ मची रहती है। फ्लिपकार्ट और अमेज़न में काफी प्रतिस्पर्धा देखी जाती है। भारत में ई- बाजार ने सब कुछ चौपट कर दिया है। जिसकी वजह से भारतीय व्यापारिक संगठन और छोटे व्यापारी सरकार से नाराज भी है।
अमेजन सीईओ जेफ बेजोस हाल में भारत के दौरे पर थे। भारतीय व्यापारियों ने उनकी भारत यात्रा का पुरजो विरोध भी किया। वह प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकत करना चाहते थे , लेकिन उन्हें पीएमओ से समय नहीं मिला। क्योंकि सरकार देशी व्यापार संगठनों की नाराजगी नहीं लेना चाहती थीं , क्योंकि अभी दिल्ली में चुनाव हैं, जिसकी वजह से सरकार ने फूंक- फूंक कर कदम रखा है। पीएम से उनकी मुलाकात का मुख्य उददेश्य था कि वह केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट ‘मेक इन इंडिया’ को आगे बढ़ाना चाहते थे। वह सात हजार करोड़ के निवेश के साथ 70 हजार करोड़ के भारतीय उत्पादों के निर्यात की घोषणा की थीं। बेजोस ने भारत की ख़ूब प्रसंशा भी की लेकिन बात नहीं बन पाई। क्योंकि छोटे और मझोले कारोबारी ई- बाजार से बेहद खफा हैं। हालांकि बेजोस की भारत प्रसंशा के पीछे उनका बाजारवाद का फण्डा छुपा था। अपनी भारत यात्रा में इसे सफल नहीं कर पाए। इसका उन्हें बेहद मलाल रहेगा।
भारत क्या बेजोस की नीतियों से खफा है, अगर नहीं तो पीएम मोदी से उनकी मुलाकात क्यों नहीं हुई। जबकि भारत अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने के लिए विदेशी विनिवेश पर अधिक जोर दिया जा रहा है। जब अमेजन भारतीय उत्पादों को दुनिया तक पहुँचना चाहती है तो उसे मौका क्यों नहीं दिया गया। इसकी वजह मानी जा रहीं है कि बेजोस दक्षिणपंथी विचारधारा के खिलाफ़ हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार की नीतियों की अपने अख़बार वाशिंगटन पोस्ट में तीखी आलोचना की थी। कश्मीर से धारा – 370 हटाए जाने पर एक शृंखला का भी प्रकाशन किया था। वहीं अमेरिका में पीएम मोदी को गोल कीपर अवार्ड दिए जाने पर सवाल भी खड़े किए थे, जिसकी वजह से उन्हें पीएमओ ने मुलाकात का मौका नहीं दिया गया। हालांकि इसकी दूसरी वजहें भी हो सकती हैं , लेकिन मीडिया में यही कयास लगाए गए हैं। फिलहाल यह सरकार का नीतिगत फौसला है उस कोई सवाल नहीं उठाए जा सकते हैं। दूसरी वजह यह भी मानी जा रहीं है कि जेफ बेजोस की भारत यात्रा का छोटे व्यापारी विरोध कर रहे थे। दिल्ली में चुनाव हैं उस हालात में मोदी और बेजोस की मुलाकात का यह अनुकूल मौसम नहीं था। सम्भवत इसी वजह से यह मुलाकत नहीं हो पाई।
भारत में ऑनलाइन बाजार काफी जड़े जमा चुका है। इसका सबसे बड़ा खामियाजा छोटे व्यापारियों को उठाना पड़ रहा है। कुटीर उद्योग दमतोड़ रहा है। जिसकी वजह से इस क्षेत्र में लगे लोगों के पास रोजी- रोटी का संकट खड़ा हो गया है। भारत में ट्रेडिशनल व्यापार की असीम सम्भावना है लेकिन सरकारें उस ध्यान नहीं दे रहीं हैं। ऐसे उद्योग और उद्यमियों को आगे लाने के लिए सरकार के पास कोई ठोस नीति नहीं है। कुछ योजनाएं हैं भी तो वह दमतोड़ रहीं हैं। स्किल इंडिया स्कीम का थोड़ा असर दिखता है लेकिन बेगारी दर लगातर बढ़ रहीं है। भारत में निम्नतर स्तर पर यह आंकड़ा पहुँच गया है। मुद्रा योजना अच्छी है पर बैंकों से सीधे कर्ज लेना आसान नहीं है। बिचौलियों की वजह से कर्ज की काफी राशि कमीशन में चली जाती है। अधिक से अधिक लोग सरकारी नौकरी पसंद करते हैं। उनकी शिक्षा काम में बाधा बनती है। कुटीर उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकारों के पास कोई ठोस कार्ययोजना नहीं है। वायलेट संस्कृति ई- बाजार के लिए वरदान साबित हुई है। होम डिलेवरी और पसंद की आजादी ई- बाजार को बढ़ा रहा है। एक सामान जब तक न पसंद आए उसकी घर में डिलेवरी पाई जा सकती है। दूसरी वजह आज़ की युवा पीढ़ी के पास समय का बेहद अभाव है। वह जिंदगी में इतना उलझा है कि वह अपने परिवार के लिए समय नहीं निकाल पाता है। वह भौतिकवाद की सारी वस्तुओं के साथ भोजन तक की होम डिलेवरी करा रहा है।
ई- बाजार ने परम्परागत बाजार की खामियों से भी मुक्ति दिलाई है, जिसकी वजह से इसका ट्रेड बढ़ा है। बाजारवाद की नई आजादी को नया आयाम मिला है। अगर आपकी जेब , वायलेट और बैंक में पैसा है तो घर से बजार जाने की ज़रूरत नहीं है। जीवन की सारी सुविधाएं आपको उपलब्ध हैं। मध्यमवर्गीय परिवार इस बाजारवाद का अधिक शिकार हो रहा है। घर में बच्चों की एक डिमांड पर स्वीगी और जोमैटो की सुविधा मौजूद है। बच्चों में मिटापे एक वजह यह भी है। ई- बाजारवाद ऐसा प्लेटफ़ॉर्म है जहाँ पैसा फेंको और तमाशा देखो की नीति का अनुसरण किया जा रहा है। जबकि हमारे ट्रेडिशनल बाजार में ऐसी बात नहीं है। आप शहर में हैं या गांव में तो वहां आपके पास पैसा न होने पर भी आपको राशन, दूध , फल , चाय- नाश्ता और दूसरी वस्तुएं एक निश्चित सीमा के लिए मिल जाएंगी। आप नौकरी पेशा हैं और आपकी जेब समय से पहले खाली हो गई तो परम्परागत बजार आपकी ज़रूरत का ख़याल रखता है। ट्रेडिशनल बजार मानवतावादी नज़रिया रखता है जबकि ई- बजार में व्यापार पहली प्रथमिकता है। भारत के साथ दुनिया में ई- बाजार की सीमाएं निर्धारित होनी चाहिए। क्योंकि खुले बाजारवाद में हमें देशी और कुटीर उद्योग को उस स्पर्धा में खड़ा करना होगा। सरकार को मझोले व्यापारियों की नाराजगी का हल निकालना चाहिए। देश में कुटीर उद्योग और उद्यमियों को बचाया जा सके। ऑनलाइन बाजार पर नियंत्रण जरूरी है। देशी बाजार को बढ़ावा देना सरकार और देश के लोगों का राष्ट्रीय और नैतिक दायित्व है।
स्वतंत्र लेखक और पत्रकार