आज समाज डिजिटल, नई दिल्ली | The Vikas Report : एक अध्ययन के मुताबिक यदि भारत गैस आधारित अर्थव्यवस्था, गन्ने से प्राप्त एथेनॉल को पेट्रोल में मिलाकर उपयोग करने के तौर-तरीकों तथा बिजली से चलने वाली रेल व वाहनों को प्रोत्साहित करता है तो वह इसके जरिये ही ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सकता है। नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय एमएनआरई ने अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों को कार्बनमुक्त करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन विकसित किया है जोकि भारत की ऊर्जा स्वतंत्रता में योगदान देता है और वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण के लिए प्रेरणा के रूप में कार्य करता है।
यह मिशन मांग सृजित करने, उभरते क्षेत्रों में स्वदेशी निर्माण, अनुसंधान और विकास, पायलट परियोजनाओं और नीतियों, विनियमों और मानकों के एक सक्षम पारिस्थितिकी तंत्र को समर्थन देने और नीतियों, नियमों और मानकों का एक इकोसिस्टम बनाने के लिए राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन तदनुसार एक रूपरेखा विकसित करना चाहता है।
विशेषज्ञों द्वारा बताया जाता है कि प्रस्तावित उपायों से ग्रीन हाइड्रोजन और इसके यौगिकों के उत्पादन, उपयोग और निर्यात के बढ़ने की उम्मीद है इसलिए मंत्रालय ने एक मजबूत हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था के निर्माण के प्रमुख पहलुओं पर विचार करने के लिए और एक अनुकूल इकोसिस्टम बनाने के लिए संबंधित साझेदारों और उद्योग के नेताओं से कतिपय सुझाव भी लिया है जो काफी सकारात्मक रहे हैं। समझा जाता है कि देश की समग्र प्रगति और आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के लिए ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होना अनिवार्य है।
सरकार ने गत वर्ष नीति का पहला भाग किया था पेश
The Vikas Report : सरकार ने 17 फरवरी, 2022 को ही बहुप्रतीक्षित राष्ट्रीय हाइड्रोजन नीति के पहले हिस्से को पेश किया है। इसमें विभिन्न रियायतों के साथ हरित हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए नवीकरणीय ऊर्जा कहीं से भी और किसी से भी लेने की अनुमति होगी। बिजली और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने इसे पेश करते हुए कहा कि इस नीति से कार्बनमुक्त हरित हाइड्रोजन की उत्पादन लागत को कम करने में मदद मिलेगी।
इस नीति के तहत कंपनियों को खुद या दूसरी इकाई के माध्यम से सौर या पवन ऊर्जा जैसे नवीकणीय स्रोतों से बिजली पैदा करने को लेकर क्षमता स्थापित करने की आजादी होगी। उन्होंने कहा कि हरित हाइड्रोजन उत्पादकों के लिए अंतरराज्यीय पारेषण शुल्क से छूट मिलेगी। आवेदन देने के 15 दिन के भीतर हाइड्रोजन उत्पादकों को खुली पहुंच की अनुमति मिल जाएगी। इस नीति के तहत सरकार कंपनियों को वितरण कंपनियों के पास उत्पादित अतिरिक्त हरित हाइड्रोजन को 30 दिन तक रखने की इजाजत देगी। हालांकि जरूरत पड़ने पर वे इसे वापस ले सकते हैं।
भविष्य का फ्यूल है ग्रीन हाइड्रोजन, देश-दुनिया में सबसे ज्यादा हो रही है चर्चा
बता दें कि अभी देश-दुनिया में सबसे ज्यादा चर्चा ग्रीन हाइड्रोजन की है जिसे भविष्य का फ्यूल बताया जा रहा है। इस संबंध में पीएम नरेंद्र मोदी के आह्वान के बाद कई कंपनियों ने ग्रीन हाइड्रोजन बनाने और इस्तेमाल करने की तैयारी शुरू कर दी है। इन कंपनियों में रिलायंस, टाटा और अडाणी के नाम शामिल हैं। यहां तक कि सरकारी कंपनी इंडियन आॅयल और एनटीपीसी ने भी ग्रीन हाइड्रोजन इस्तेमाल करने का वादा कर दिया है।
यह बात दीगर है कि आम पब्लिक अभी तक ग्रीन हाइड्रोजन को ठीक तरह नहीं समझ पाई है इसलिए उसे जागरूक करने की जरूरत है। अभी उसे यह नहीं समझ आ रहा कि ग्रीन हाइड्रोजन किस हरी ऊर्जा का नाम है और यह ऊर्जा गैस के रूप में कैसे काम करेगी। वह यह भी जानना चाहती है कि क्या इसे भी तेल की तरह गाड़ियों में भरा जाएगा। क्या इससे देश में कारें और ट्रेनें दौड़ सकेंगी और यदि हां तो कब तक!
ग्रीन हाइड्रोजन के जरिये ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सकता है भारत
एक अध्ययन के मुताबिक यदि भारत गैस आधारित अर्थव्यवस्था, गन्ने से प्राप्त एथेनॉल को पेट्रोल में मिलाकर उपयोग करने के तौर-तरीकों तथा बिजली से चलने वाली रेल व वाहनों को प्रोत्साहित करता है तो वह इसके जरिये ही ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सकता है। यही वजह कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मसले पर गंभीर हैं और इसकी महत्ता व उपयोगिता के दृष्टिगत भारत को इस क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर बढ़त दिलवाने के लिए तत्पर दिखाई दे रहे हैं।
आपको पता होगा कि स्वतंत्रता दिवस 2021 के मौके पर ही लाल किले के प्राचीर से उन्होंने नवीकरणीय ऊर्जा से कार्बनमुक्त र्इंधन पैदा करने के लिए राष्टÑीय हाइड्रोजन मिशन शुरू करने की औपचारिक घोषणा कर डाली थी। तब उन्होंने दो-टूक शब्दों में कहा था कि आजादी के 100 साल पूरे होने से पहले यानी 2047 तक ऊर्जा के क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाने की जरूरत है।
ऊर्जा संयंत्रों से कनेक्टिविटी होगी बेहतर
बता दें कि यह छूट उन परियोजनाओं के लिए होगी जो 30 जून, 2025 से पहले लगाई जाएंगी। हरित हाइड्रोजन उत्पादकों और नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्रों को ग्रिड से कनेक्टविटी प्राथमिक आधार पर दी जाएगी जिससे प्रक्रिया संबंधी कोई देरी नहीं हो।
ग्रीन हाइड्रोजन में भारत को बनाया जाएगा ग्लोबल हब, सरकार ने निर्धारित किया लक्ष्य
बता दें कि देश के रणनीतिकारों द्वारा भी राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन के जरिए भारत को ग्रीन हाइड्रोजन में ग्लोबल हब बनाने का लक्ष्य रखा गया है क्योंकि फ्यूचर फ्यूल ग्रीन एनर्जी ही है जिससे भारत को आत्मनिर्भर होने में मदद मिलेगी। आपको पता होना चाहिए कि वर्तमान में देश में जो भी हाइड्रोजन की खपत होती है, वह जीवाश्म र्इंधन से आती है इसलिए वर्ष 2050 तक कुल हाइड्रोजन का तीन-चौथाई हरित यानी पर्यावरण अनुकूल किए जाने का कार्यक्रम है। इसे नवीकरणीय बिजली और इलेक्ट्रोलायसिस से तैयार किया जाएगा।
वित्त वर्ष 2021-22 के आम बजट में किया था राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन का जिक्र
जानकारी के मुताबिक वित्तीय बजट 2021-22 में ही राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन का जिक्र किया गया था क्योंकि प्रशासनिक हल्के में समझा जाता है कि हाइड्रोजन फ्यूल के इस्तेमाल से डीजल-पेट्रोल का इस्तेमाल घटेगा और इससे कच्चे तेल के आयात पर भारत की निर्भरता भी घटेगी। इसका एक सबसे बड़ा फायदा यह भी होगा कि प्रदूषण पर लगाम कसने में मदद मिलेगी। बता दें कि देश को अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए हर साल 12 लाख करोड़ रुपए से अधिक खर्च करना पड़ता है। दरअसल, भारत अपनी कुल पेट्रोलियम और दूसरी ऊर्जा जरूरतों का करीब 85% आयात करता है। प्राकृतिक गैस के मामले में आधी जरूरतें विदेश से होने वाली आपूर्ति से होती है।
ग्रीन हाइड्रोजन को बढ़ावा देने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था में प्राकृतिक गैस का उपयोग बढ़ाने पर भी किया गया है विचार
यही वजह है कि ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करने और इस्तेमाल बढ़ाने के लिए प्रशासनिक स्तर पर ठोस पहल की जा रही है। इसके लिए अर्थव्यवस्था में प्राकृतिक गैस का उपयोग बढ़ाने पर भी विचार किया गया है। इसके लिए पूरे देश में सीएनजी और पाइप लाइन के जरिये घरों में पहुंचने वाली प्राकृतिक गैस की आपूर्ति के लिए नेटवर्क का जाल बिछाया जा रहा है।
साथ ही पेट्रोल में एथेनॉल के 20% मिश्रण और बिजली से चलने वाले वाहनों को बढ़ावा देने की पहल की जा रही है। यही वजह है कि देश नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहा है और इस क्षेत्र में स्थापित क्षमता समय से पहले 1 लाख मेगावाट को पार कर गई है, यानी वर्ष 2030 तक 4,50,000 मेगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में से देश 1 लाख मेगावाट क्षमता समय से पहले हासिल कर चुका है।
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी हाइड्रोजन संचालित कार में पहुंचे थे संसद और लोगों को लगातार कर रहे जागरूक
जवाब स्वरूप कहा जा सकता है कि केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी हाल ही में हाइड्रोजन संचालित कार में संसद पहुंचे जिसका वो ट्रायल कर रहे हैं। उन्होंने भी सतत विकास के लिए हरित हाइड्रोजन के उपयोग के बारे में जागरूकता उत्पन्न करने की जरूरत पर जोर दिया है। उनकी नई कार में हाइड्रोजन आधारित र्इंधन बैटरी का उपयोग होता है। यह इलेक्ट्रिक वाहन (एफसीईवी) है। उन्होंने ‘हरित हाइड्रोजन’ से संचालित कार को दिखाते हुए भारत के लिए हाइड्रोजन आधारित समाज की सहायता करने को लेकर हाइड्रोजन, एफसीईवी तकनीक और इसके लाभों के बारे में जागरूकता फैलाने की जरूरत पर जोर दिया है।
उन्होंने आश्वासन दिया है कि भारत में हरित हाइड्रोजन का निर्माण किया जाएगा। देश में स्थायी रोजगार के अवसर उत्पन्न करने वाले हरित हाइड्रोजन र्इंधन स्टेशन स्थापित किए जाएंगे। भारत जल्द ही हरित हाइड्रोजन निर्यातक देश बन जाएगा। गडकरी के अनुसार भारत में स्वच्छ व अत्याधुनिक मोबिलिटी के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सोच के अनुरूप ही हमारी सरकार राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन के जरिए हरित व स्वच्छ ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रतिबद्ध है।
अब रेलवे में भी होगा हाइड्रोजन गैस का इस्तेमाल
आपको पता होना चाहिए कि देश के सबसे बड़े लोक उपक्रमों में से एक भारतीय रेलवे ने भी नेशनल हाइड्रोजन एनर्जी मिशन के तहत अहम कदम उठाते हुए हाइड्रोजन फ्यूल सेल का इस्तेमाल शुरू किया है। यह ग्रीन एनर्जी को यूटिलाइज करने का सबसे अच्छा तरीका है क्योंकि इससे कार्बन-डाई-आॅक्साइड का उत्पादन जीरो होता है। बहुत ही कम ऐसे देश हैं जो पॉवर जनरेशन का इस तरीके का इस्तेमाल कर रहे हैं। इनमें अब भारत भी शामिल हो जाएगा जिससे जीवाश्म ऊर्जा खर्च और खपत दोनों में कमी आएगी।
ग्रीन एनर्जी में सबसे अच्छी है हाइड्रोजन फ्यूल
जानकारों के मुताबिक हाइड्रोजन फ्यूल ग्रीन एनर्जी में सबसे अच्छी है क्योंकि इसे पानी को सोलर एनर्जी से विद्युत अपघटन करके पैदा किया जा सकता है। यदि ये पालयट प्रोजेक्ट सफल रहता है तो डीजल से चलने वाले सभी इंजनों को हाइड्रोजन फ्यूल तकनीक वाले इंजन में बदल दिया जाएगा। इससे जीवाश्म र्इंधन के खपत में काफी कमी आएगी और सस्ती हाइड्रोजन फ्यूल ग्रीन एनर्जी के उपयोग को बढ़ावा मिलेगा जो देशहित में रहेगा।
उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन की घोषणा सबसे पहले फरवरी, 2021 में संसद पेश वित्तीय वर्ष 2021-22 के बजट में की गई थी। इसके तहत भारत को हरित हाइड्रोजन के उत्पादन के साथ-साथ निर्यात के लिए वैश्विक केंद्र बनाने का लक्ष्य रखा गया है। समझा जाता है कि हरित हाइड्रोजन भारत को अपने लक्ष्यों को हासिल करने में ऊंची छलांग के साथ मददगार होगा।
भारत में हाइड्रोजन गैस बनाने के लिए इस्तेमाल की जाती है 2 तरह की तकनीक
हाइड्रोजन गैस को सीएनजी यानी कंप्रेस्ड नेचुरल गैस में भी मिलाकर इस्तेमाल किया जा सकेगा। बता दें कि भारत में अभी हाइड्रोजन गैस बनाने के लिए 2 तरह की तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। पहली तकनीक के तहत पानी का इलेक्ट्रोलिसिस किया जाता है और उससे हाइड्रोजन को अलग किया जाता है।
दूसरा तरीका प्राकृतिक गैस को हाइड्रोजन और कार्बन में तोड़ना है जिससे 2 तरह के फायदे होते हैं। पहला इससे मिले हाइड्रोजन का इस्तेमाल फ्यूल की तरह किया जाता है। दूसरा कार्बन का इस्तेमाल स्पेस, एयरोस्पेस, आॅटो, पानी के जहाज और इलेक्ट्रॉनिक आइटम बनाने में होता है।
इंटर कनेक्टेड इकोसिस्टम बनेगा
मौजूदा समय में हाइड्रोजन उत्पादन को लेकर देश के 4 शहर दिल्ली, मुंबई, बेंगलूरू और चेन्नई में अनुसंधान एवं विकास की गतिविधियां चल रही हैं। डीएसटी के मुताबिक हाइड्रोजन की संपूर्ण मूल्य शृंखला (उत्पादन, भंडारण और परिवहन) को एक जगह लाया जाएगा जो हाइड्रोजन वैली में होगा। यहीं से देश में हाइड्रोजन की आपूर्ति होगी व इंटर कनेक्टेड इकोसिस्टम बनाया जाएगा।
2027 तक मिलने लगेगी 500 मीट्रिक टन हाइड्रोजन
डीएसटी के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया कि मिशन इनोवेशन के तहत हाइड्रोजन वैली का निर्माण किया जाएगा। पहले चरण की शुरूआत हो चुकी है और यह 2027 तक चलेगा। तब तक देश में प्रति वर्ष 500 मीट्रिक टन हाइड्रोजन का उत्पादन होने लगेगा। पहले चरण के लिए 90 करोड़ का बजट तय किया है जो हाइड्रोजन वैली बनाने पर खर्च किया जाएगा। इस बजट में और भी बढ़ोतरी की जा सकती है। इसके बाद दूसरा चरण 2028-33 और तीसरा चरण 2034 से 2050 तक चलेगा।
इन क्षेत्रों में किया जाएगा उपयोग
कार/ट्रेन/विमान/जहाज, बिजली उत्पादन, पोर्टेबल र्इंधन सेल, सरकारी और निजी एजेंसियों के साथ मिलकर हाइड्रोजन वैली बनाएगी सरकार, वहीं 30 दिसंबर तक प्रस्ताव लेने के बाद शुरू होगा वैली बनाने के लिए जगह का चयन।
90 करोड़ की लागत से तैयार होंगे प्लांट, ऐसे आगे बढ़ेगा काम
पहला चरण 2023-2027: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अनुसार 90 करोड़ की लागत से वैली में हाइड्रोजन उत्पादन के लिए प्लांट तैयार किए जाएंगे।
दूसरा चरण 2028-2033: वैली में भंडार कक्ष तैयार होंगे। सुरक्षा के मददेनजर भी इंतजाम किए जाएंगे ताकि आगजनी जैसी घटनाओं से बचा जा सके।
तीसरा चरण 2034-2050: वैली में वितरण को लेकर क्षेत्र बनाए जाएंगे। सीमेंट-स्टील उद्योग के लिए भी हाइड्रोजन उत्पादन के लिए अलग से क्षेत्र बनाया जाएगा।
समय से पहले हासिल होगा लक्ष्य
- डीएसटी ने दावा किया है कि हाइड्रोजन उत्पादन का लक्ष्य समय से पहले हासिल कर लिया जाएगा। राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन के तहत नवीकरणीय ऊर्जा के रूप में वर्ष 2030 तक 10 लाख टन हाइड्रोजन उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है।
- उर्वरक संयंत्रों और तेल रिफाइनरियों को हाइड्रोजन का उपयोग करने के लिए क्रमश: 5% और 10% की आपूर्ति वर्ष 2023-2024 तक होगी। इसके बाद वर्ष 2030 तक इस आपूर्ति को बढ़ाकर क्रमश: 20% और 25% तक लेकर जाएंगे।
- साल 2000 से अब तक भारत ने जीवाश्म र्इंधन के आयात पर अपनी निर्भरता बढ़ाई है। कोयला, तेल और गैस आयात की मांग में यह बढ़ोतरी क्रमश: 25%, 75% और 50% से अधिक है।
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