India In UN: 1965 के बाद से यूएनएससी में बदलाव न होना निराशाजनक

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India In UN: 1965 के बाद से यूएनएससी में बदलाव न होना निराशाजनक
India In UN: 1965 के बाद से यूएनएससी में बदलाव न होना निराशाजनक

Indian Ambassador P Harish, (आज समाज), न्यूयॉर्क: भारत ने एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में सुधारों की वकालत की है। राजदूत पी हरीश (P Harish) ने कहा है कि यूएनएससी में कई दशकों सुधार की मांग की जा रही है, लेकिन इसके बावजूद कुछ नहीं हुआ है। उन्होंने कहा है कि 1965 के बाद से यूएनएससी में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है जो बेहद निराशाजनक है।

  • अस्थायी वर्ग में शामिल सदस्यों में 1965 में इजाफा किया

पी हरीश यूएनएससी में परिषद के सदस्यों की संख्या में इजाफा करने व समान प्रतिनिधित्व के मामले में आयोजित बैठक को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि यूएनएससी में परिवर्तन के प्रयासों के नाम पर केवल गुमराह किया जा रहा है। इससे सुरक्षा परिषद में विस्तार व अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिय के प्रतिनिधित्व को अनिश्चित काल के लिए टाला जा सकता है।

अंतर सरकारी वार्ता की प्रक्रिया का जिक्र

बता दें कि वर्ष 1965 में यूएनएससी में अस्थायी वर्ग में शामिल सदस्यों में इजाफा किया गया था। तब अस्थायी निर्वाचित सदस्य देश छह से बढ़ाकर 10 किए गए थे। भारतीय राजदूत ने अपने संबोधन में अंतर सरकारी वार्ता की प्रक्रिया पर भी अपनी बात रखी। उन्होंने कहा, इसके गठन को 16 वर्ष हो गए हैं और इसके बाद भी यह केवल बयानों के आदान-प्रदान तक ही सीमित है। इसमें किसी तरह की समयसीमा तय नहीं है। इसके अलावा इसका कोई लक्ष्य भी तय नहीं किया गया है।

दो मामलों में इस जरूरत पर बल

पी हरीश ने भारत की ओर से अंतर सरकारी वार्ता में वास्तविक ठोस प्रगति व इसके लिए दो मामलों में सावधानी अपनाने की जरूरत पर बल दिया। एक मामला यह कि इसमें सदस्य राज्यों को अपना मॉडल पेश करने के वास्ते अनिश्चित काल तक समयसीमा की अनुमति नहीं देनी चाहिए।

न्यूनतम सीमा की खोज से सदस्य राज्यों को अपना मॉडल पेश करने के लिए अनिश्चित अवधि तक इंतजार नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही सर्वसम्मति बनाने में बहुत ज्यादा समय न लगे। इसके कारण सुरक्षा परिषद में संशोधन की प्रक्रिया अनिश्चित काल तक टल सकती है। भारतीय राजदूत ने कहा कि ग्लोबल साउथ का मेंबर होने के नाते भारत का मानना है कि यूएनएससी में परिवर्तन से ही संयुक्त राष्ट्र की वैधता और विश्वसनीयता बरकरार रह सकती है।

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