कोरोना के कहर ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। हर तरफ हाहाकार की स्थिति देखने को मिल रही है। यूं कहें कि कोरोना वायरस दुनिया भर की अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती बन गया है। तमाम ग्लोबल एजेंसिया भी मान रही है कि दुनिया एक बड़ी मंदी की ओर जा रही है। कोरोना वायरस दुनिसाभर की अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती बन गया है। तमाम ग्लोबल एजेंसिया भी मान रही है कि दुनिया एक बड़ी मंदी की ओर जा रही है, जिसका असर लंबी अवधि तक यानी दीर्घकालिक हो सकता है। हालांकि इस बीच भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए उम्मीद जगाने वाली खबर आईएमएफ से आई है। आईएफएम के अनुसार जी-20 देशों में सिर्फ भारत ही है, जिसका अर्थव्यवस्था में ग्रोथ पॉजिटिव रहेगी। आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी अर्थव्यवस्था पर भरोसा जताते हुए इसे अंधकार में प्रकाश की ओर देखने से तुलना है। उन्होंने पिछले दिनों ऐसे कुछ तथ्य भी सामने रखे हैं, जिससे माना जा सकता है कि भारत इस महामारी के चलते आर्थिक चुनौतियों से निपटने में सफल रहेगा।
भारतीय अर्थव्यवस्था का खाका रखते हुए आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने पिछले दिनों कहा था कि साल 2020 वैश्विक मंदी के लिए सबसे बड़ा साल होने जा रहा है। लेकिन हम इन चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार हैं। आईएफएफ ने इस साल के लिए भारत की ग्रोथ 1.9 फीसदी रहने का अनुमान जताया है। इसके अलावा जी-20 देशों में किसी की भी ग्रोथ पॉजिटिव रहने की उम्मीद नहीं है। वहीं वित्त वर्ष 2022 के दौरान भारत की आर्थिक ग्रोथ 7.4 फीसदी रहने का अनुमान है। निश्चित रूप से यह इस बात के संकेत हें कि महामारी से निपटने के बाद हमारी अर्थव्यवस्था में दूसरे देशों से तेज रिकवरी आएगी। इसके पीछे उन्होंने कुछ तथ्य भी दिए हैं। शक्तिकांत दास ने कहा कि मॉनसून से पहले खरीफ फसल की बुआई अच्छी है। पिछले साल के मुकाबले इस साल अप्रैल के अंत तक धान (पेडी) की बुआई 37 फीसदी ज्यादा है। 15 अप्रैल को मौसम विभाग आईएमडी ने भी इस साल सामान्य मॉनसून रहने का अनुमान जताया था। ये शुरुआती संकेत हैं। अगर मॉनसून बेहतर रहता है तो इससे रूरल इनकम बढ़ेगी। रूरल इनकम बढ़ने से डिमांड में तेजी आएगी, जिसका अर्थव्यवस्था पर बेहतर असर होगा।
आरबीआई गवर्नर के अनुसार, देश में फॉरेक्स रिजर्व पर्याप्त है। देश के पास 11.8 महीने के इंपोर्ट के लिए पर्याप्त रिजर्व है। यह मौजूदा समय में 476.5 बिलियन डॉलर के करीब है। इसलिए रिजर्व को लेकर कोई चिंता नहीं है। आरबीआई गवर्नर ने कहा कि लिक्विडिटी बढ़ाने के हर संभव उपाय किए गए हैं या किए जा रहे हैं। पिछले दिनों आरबीआई ने रेपो रेट में 75 अंकों और सीआरआर में 100 अंकों की कटौती की थी। इससे फाइनेंशियल सिस्टम में लिक्विडिटी आएगी। लॉकडाउन में 1.20 लाख करोड़ की करंसी की सप्लाई हुई। करीब 91 फीसदी एटीएम अपनी पूरी क्षमता से काम कर रहे हैं। शक्तिकांत दास ने कहा कि भारत उन देशों में शामिल है जिनकी जीडीपी पॉजिटिव है। आईएमएफ के अनुमान के मुताबिक, भारत कोरोनावायरस संकट के बाद फिस्कल ईयर 2022 में देश के जीडीपी की ग्रोथ 7.4 फीसदी रह सकती है। जी-20 देशों में इंडिया की ग्रोथ सबसे बेहतर रह सकती है। उन्होंने कहा कि कुछ एरिया में मैक्रो इकोनॉमी कमजोर हुई है तो कहीं रोशनी की किरण भी नजर आई है।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि भारत सरकार ने करीब दो हफ्ते पहले दावा किया था कि उसने कोरोना वायरस के बढ़ते ग्राफ को चपटा कर दिया है। प्रेस कांफ्रेंस में फ्लैटनिंग द कर्व का दावा बड़े गर्व से किया गया था। हालांकि हकीकत यह है कि उसके बाद ग्राफ तेजी से बढ़ता गया। भारत सरकार से उलट केरल की राज्य सरकार ने कभी ऐसा दावा नहीं किया पर अब हकीकत है कि उसके यहां कर्व चपटा होने लगा है। मरीजों की संख्या बढ़ने की दर बहुत कम हो गई है और इलाज से ठीक होने वालों की संख्या बढ़ गई है। सोचें, जिस राज्य में सबसे पहला कोरोना का मरीज आया, जहां सबसे ज्यादा खाड़ी में काम करने वाले लोग हैं और जहां बुजुर्गों की आबादी देश के अनुपात से चार फीसदी ज्यादा है, वहां सिर्फ 387 लोग संक्रमित हुए और सिर्फ दो लोगों की जान गई। संक्रमितों में से 218 लोग इलाज से ठीक हो गए और अब सिर्फ 167 लोगों का इलाज अस्पताल में चल रहा है।
ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि केरल की सरकारों ने स्वास्थ्य में निवेश किया है। अस्पताल बनवाएं हैं, मेडिकल कॉलेज खोले हैं, नर्सिंग के इंस्टीच्यूट खोले और लोक स्वास्थ्य को प्राथमिकता बनाया। और यह काम पांच-दस साल में नहीं हुआ, बल्कि आजादी के बाद से ही यह काम चल रहा है। सो, अब राष्ट्रीय स्तर पर इस मॉडल को लागू करने का सही समय आ गया है। हकीकत यह है कि भारत में कभी भी स्वास्थ्य और शिक्षा सरकारों की प्राथमिकता में नहीं रहा। विकास का मतलब भारत में हमेशा बिजली, सड़क और पानी को माना गया और अफसोस की बात है कि उसमें भी हालत कोई बहुत अच्छी नहीं है। ध्यान रहे इस साल भारत सरकार के बजट में 67 हजार करोड़ रुपए से थोड़ा ज्यादा पैसा स्वास्थ्य के लिए आवंटित किया गया है। पिछले साल के संशोधित बजट के मुकाबले सिर्फ 5.7 फीसदी की बढ़ोतरी की गई। उससे पहले साल 15 फीसदी की बढ़ोतरी की गई। इसके बावजूद सरकार जीडीपी का डेढ़ फीसदी भी स्वास्थ्य पर खर्च नहीं कर रही है। दिल्ली और एकाध राज्यों के अपवाद को छोड़ दें तो बाकी राज्य भी इसी अनुपात में स्वास्थ्य पर खर्च करते हैं।
अगर भारत सरकार और राज्यों की सरकारें कोरोना वायरस के मौजूदा संकट से कुछ सबक लेती हैं व अमेरिका और यूरोपीय देशों की स्वास्थ्य सुविधाओं का आकलन करते हुए अपने बारे में तुलनात्मक अध्ययन कराती हैं तो पता चलेगा कि उसे इस समय अपनी स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की कितनी जरूरत है। सरकार अगर इस समय कोरोना के बहाने ही स्वास्थ्य सेक्टर में निवेश बढ़ाती है तो इसके दो फायदे होंगे। पहला फायदा तो यह होगा कि आगे आने वाली किसी भी महामारी से निपटने की पूर्व तैयारी हो जाएगी। यह न सोचा जाए कि कोरोना आखिरी महामारी है। पिछले दो दशक में सार्स, मर्स, इबोला, एचआईवी, बर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू जैसे अनगिनत वायरस दुनिया में पनपे हैं और हजारों लोगों की इनसे मौत हुई है। इसके अलावा प्राकृतिक और दूसरी मानव निर्मित आपदाएं अलग हैं। सो, पहला फायदा तो यह होगा कि भारत का स्वास्थ्य सिस्टम बेहतर होगा और किसी भी संकट से लड़ने के लिए तैयार होगा। दूसरा फायदा यह होगा कि पहले से चल रही आर्थिक मंदी में इससे अर्थव्यवस्था में थोड़ी तेजी आएगी। इसलिए संयमित होकर कदम आगे की ओर बढ़ाने की जरूरत है। दुनिया बहुत बुरे दौर से गुजर रही है। इस स्थिति में खुद को संभाले रखना बड़ी चुनौती है।