नई दिल्ली। भारत-पाकिस्तान के बीच लगातार तनाव चल रहा है। भारत ने आर्टिकल-370 जम्मू-कश्मीर से हटा कर उसे एक केंद्र शासित राज्य घोषित कर दिया। केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर के दो हिस्से कर दिए जिसमें लद्दाख को अलग कर दिया गया और इसे भी केंद्र शासित राज्य बना दिया गया। इसके बाद से लगातार पाकिस्तान की ओर से भारत को युद्ध की धमकी दी जा रही है। यहां तक कि पाक पीएम इमरान खान ने परमाणु बम हमले तक की धमकी भारत को दे डाली। अब भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बृहस्पतिवार को कहा कि भारत कभी भी आक्रामक नही रहा लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि वह अपनी रक्षा करने के लिए अपनी ताकत का इस्तेमाल करने से हिचकिचाएगा। उन्होंने यह टिप्पणी कश्मीर मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ने की पृष्ठभूमि में सियोल में हुई रक्षा वार्ता में की। सिंह ने दक्षिण कोरिया के शीर्ष सैन्य अधिकारियों की उपस्थिति में कहा, ‘भारत का इतिहास देखें तो वह कभी भी हमलावर नहीं रहा है और न ही होगा।
लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि वह खुद को बचाने के लिए अपनी ताकत का इस्तेमाल करने में टाल-मटोल करेगा।’रक्षा मंत्री तीन दिवसीय दौरे पर बुधवार को दक्षिण कोरिया पहुंचे थे। उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल से एक के बाद एक कई ट्वीट किए। उन्होंने कहा, ‘रक्षा कूटनीति भारत की सामरिक नीति का महत्त्वपूर्ण स्तंभ है। दरअसल, रक्षा कूटनीति और मजबूत सैन्य बल रखना एक ही सिक्के के दो पहलु हैं। ये साथ-साथ चलते हैं।’सिंह ने अपने संबोधन में संसाधन समृद्ध भारत-प्रशांत क्षेत्र में साझा नियम आधारित व्यवस्था की जरूरत पर भी बात की। इस दौरान दक्षिण कोरिया के शीर्ष सैन्य अधिकारी और देश की रक्षा संस्थानों के शीर्ष कार्यकारी शामिल हुए। उन्होंने कहा कि यह ‘व्यवस्था’ सभी राष्ट्रों की संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता तथा समानता पर आधारित होनी चाहिए भले ही उसका आकार एवं बल कितना भी हो। साथ ही उन्होंने कहा कि भारत इस क्षेत्र के लिए स्वतंत्र एवं समग्र संरचना का पक्षधर है।
चीन हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ा रहा है जिससे क्षेत्र के विभिन्न देशों में चिंताएं बढ़ गई हैं। अमेरिका भारत-प्रशांत में भारत को बड़ी भूमिका निभाने का दबाव बना रहा है जिसे कई देश क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के प्रयास के तौर पर देखते हैं। नवंबर 2017 में भारत, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और जापान ने हिंद-प्रशांत में अहम समुद्री मार्गों को चीन के प्रभाव से मुक्त करने के लिए एक नई रणनीति विकसित करने से मकसद से काफी समय से लंबित चारों देशों के गठबंधन को आकार दिया था।