India–Canada relations : भारत-कनाडा संबंध: क़रार से तकरार

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India-Canada Relations From Agreement to Conflict

(India–Canada relations) विशेषज्ञ अंतरराष्ट्रीय राजनीति 1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ तब से लेकर 1980 के दशक के मध्य तक भारत कनाडा के संबंध बहुत ही सामान्य, शांतिमय, मैत्रीपूर्ण एवं सद्भावपूर्ण थे। दोनों देशों के संबंधों में पाया जाने वाला करार एवं सहमति अपने आप में एक मिसाल था जो धीरे-धीरे तकरार और विवाद में बदलना शुरू हो गया। पिछले डेढ़ वर्ष में इनका आपसी झगड़ा और तकरार चरम सीमा पर पहुंच गया है जो दोनों देशों के नागरिकों के लिए एक चिंता का विषय है।

भारत कनाडा संबंधों का आधार

भारत कनाडा के संबंध प्रजातंत्र, मुक्त बाज़ार अर्थव्यवस्था, बहु-सांप्रदायिकता तथा धर्मनिरपेक्षता जैसे
आदर्शों पर आधारित हैं। सन् 2022 के आंकड़ों के मुताबिक कनाडा में पढ़ रहे कुल विदेशी छात्रों में से
40% भारत के हैं जिनसे वहां के विश्वविद्यालयों का कारोबार चलता है। इतना ही नहीं भारत कनाडा का
दसवां सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है और चौथा सबसे बड़ा टूरिस्ट दिलाने वाला स्रोत है। पिछले कुछ वर्षों में
दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार में भी वृद्धि हुई है जो 2023 में बढ़कर 8.16 बिलियन डॉलर का हो
गया। भारत अमेरिका के लिए ही नहीं अपितु कनाडा के लिए भी उनकी इंडो-पेसिफिक सामरिक नीति में
विशेष स्थान एवं भूमिका रखता है। दोनों देश राष्ट्रमंडल तथा जी-20 के सदस्य भी हैं। उपर्युक्त आंकड़े
तथा तथ्य दोनों देशों की आपसी अंतर-निर्भरता और संबंधों को दर्शाते हैं जिन में कुछ कारणों से संकट
उत्पन्न हो गया है।

विवाद के कारण

आजकल अंतरराष्ट्रीय संबंधों में प्रवासियों अर्थात डायस्पोरा की भूमिका बहुत बढ़ गई है। भारत से भी कई मूल
निवासी प्रवासियों के रूप में विदेश में रह रहे हैं और वहां के राजनीति, आर्थिक तथा सामाजिक जीवन में
महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। आपने पाया होगा कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी जब भी विदेश की
यात्रा पर जाते हैं तो वहां पर प्रवासी भारतीयों के साथ सभा या आयोजन अवश्य करते हैं क्योंकि वहां रहने
वाले भारतीय प्रवासी विदेशों और भारत के संबंधों को सुधारने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
इस मामले में कनाडा एक ऐसा अपवाद है जहां भारतीय मूल के प्रवासी जिन्होंने वहां की नागरिकता प्राप्त कर
ली है वे संबंधों को सुधारने की बजाय बिगाड़ने में योगदान दे रहे हैं और इस प्रकार भारत कनाडा संबंधों में
खटास पैदा करने का मुख्य कारण बन रहे हैं। इन भारतीय प्रवासियों को इंडो-कैनेडियन भी कहा जाता है। सन्
2021 में इंडो-कैनेडियन की संख्या 1.8 से मिलियन थी जो उसे समय कुल कनाडा की जनसंख्या का 5.01%
था। अब इंडो-कैनेडियनज़ की संख्या बढ़कर लगभग तीन मिलियन अर्थात 30 लाख हो गई है। आंकड़ों के

अनुसार इनमें 36 प्रतिशत सिख, 32% हिंदू तथा बाकी अन्य भारतीय प्रवासी हैं। इनका जमावड़ा अधिकतर
ओंटारियो और ब्रिटिश कोलंबिया जैसे प्रान्तों में है, इनके अतिरिक्त अल्बर्टा तथा क्यूबिक में भी काफी इंडो
कैनेडियन सिख बसे हुए हैं, जिनको वहां की नागरिकता प्राप्त है

वैसे तो भारत से पंजाब के कई सिख कनाडा में 1947 से पहले के बसे हुए हैं और वहां पुलिस अधिकारी,
सिक्योरिटी गार्ड तथा लकड़ी काटने के आरों और मिलों में कार्यरत थे और वहां एक नागरिक के रूप में
शांतिपूर्वक रह रहे थे। लेकिन 1980 के दशक से भारतीय सिख प्रवासियों की संख्या तथा आकार में वृद्धि हुई।
पंजाब में 1980 के दशक में खालिस्तान बनाने के लिए एक अलगाववादी आंदोलन शुरू हुआ जिसने शीघ्र ही
उग्रवादी तथा आतंकवादी रूप धारण कर लिया।

कई अलगाववादी तथा आतंकवादी संगठन पैदा हो गए। जब
भारत सरकार ने इस अलगाववादी आंदोलन को दबाने के लिए पुलिस कारवाई की तो उससे बचने के लिए इस
आंदोलन के कई समर्थक विदेशों में चले गए जिनमें से अधिकांश कनाडा में जा बसे। कनाडा में जाकर उन्होंने
खालिस्तान बनाने की मुहिम जारी रखी। वहां की नागरिकता प्राप्त कर ली, वहां के राजनीतिक दलों में सक्रिय
हो गए, संसद, प्रांतीय विधानसभाओं तथा नगर निगमों के चुनाव लड़ने लग गए और वहां की राजनीति में
अपना एक महत्वपूर्ण प्रभाव बना लिया।

सितंबर 2021 में जब कनाडा संसद का मध्यावती चुनाव हुआ तो उसमें पुनः एक बार जस्टिन ट्रूडो की
लिबरल पार्टी को बहुमत हासिल नहीं हो पाया लेकिन वह सबसे अधिक सीटों वाली पार्टी के रूप में उभरी।
उसने भारतीय प्रवासियों के दल न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) के समर्थन से पुनः सरकार बना ली। इस प्रकार
सरदार जगमीत सिंह की एनडीपी भी इस समय ट्रूडो सरकार में शामिल हैं, उन्हीं की बैसाखियों के सहारे ट्रूडो
सरकार चल रही है।

एनडीपी में कई पुराने खालिस्तानी समर्थक भी हैं जो समय-समय पर ट्रूडो सरकार पर
भारत से अपनी बातें/मांगे मनवाने के लिए दबाव डालते हैं। पिछले दो-तीन साल से दोनों देशों में हुए खराब
संबंधों का एक प्रमुख कारण यही है।

फरवरी 2018 में ट्रूडो एक सप्ताह के लिए भारत यात्रा पर आए और यहां अपने एक आयोजन में उन्होंने एक
पुराने अपराधी जसपाल अटवाल को निमंत्रित किया जिसने सन् 1986 में पंजाब के मंत्री मल्कीयत सिंह सिद्धू
का कत्ल करने की कोशिश की थी।

भारत सरकार ने अटवाल को निमंत्रण दिए जाने पर आपत्ति जाहिर की। इसी प्रकार दिसंबर 2020 में ट्रूडो ने भारत सरकार द्वारा उसे समय चल रहे किसान आंदोलन से ठीक ढंग से ना निपटने का आरोप लगाया और भारतीय किसानों के शांतिपूर्वक प्रदर्शन का समर्थन किया। भारत सरकार ने इसे आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कहकर ट्रूडो की निंदा की। सितंबर 2023 में जब ट्रूडो जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने दिल्ली आए तो प्रधानमंत्री मोदी ने कनाडा में खालिस्तानियों द्वारा किए जा रहे प्रदर्शनों एवं भारत विरोधी गतिविधियों के संबंध में चिंता जताई।

ट्रूडो ने मोदी की चिंता को दरकिनार करते हुए भारत सरकार पर

कनाडा में हरदीप सिंह नीजर के कत्ल में शामिल होने का आरोप लगाया। इस प्रकार दोनों प्रधानमंत्रियों में
2023 में सौहार्द के माहौल में बातचीत नहीं हुई जिसका बुरा असर दोनों देशों में व्यापारिक संबंधों को सुधारने
संबंधी बातचीत पर पड़ा।

हरदीप सिंह नीजर एक खालिस्तानी समर्थक था जो आतंकवाद के दिनों में भाग कर कनाडा में जा बसा था।
धीरे-धीरे वहां उसने राजनीतिक क्षेत्र में अपनी पैठ बनाई और वहीं से खालिस्तान के समर्थन में अपनी
गतिविधियां जारी रखी। 18 जून 2023 को नीजर का कनाडा में कत्ल हो गया था और एनडीपी के दबाव में

ट्रूडो बार बार इस कत्ल के पीछे भारत सरकार का हाथ बताते हैं। जबकि भारत सरकार इसे सिरे से नकार रही
है, आरोप को बेबुनियादी बता रही है और कनाडा से इस संबंध में सबूत मांग रही है जो कि वह नहीं दे पा
रहा। दोनों देशों में संबंधों के बिगड़ने का तत्कालीन कारण यही है।

कूटनीतिक संबंधों का बिगड़ना

सितंबर 2023 तक पहुंचते पहुंचते दोनों देशों के कूटनीतिक संबंध इतने बिगड़ गए की दोनों ने एक दूसरे देश
में कुछ कूटनीतिक अधिकारियों को बर्खास्त कर दिया। भारत सरकार ने नई दिल्ली में कनाडा हाई कमिशन के
स्टाफ की संख्या को कम करने का हुक्म जारी कर दिया। 21 सितंबर 2023 को भारत सरकार ने कैनेडियनज़
की वीजा अर्जियां को निलंबित कर दिया जिन्हें 2 महीने बाद 22 नवंबर 2023 को दोबारा खोला गया।

अब अक्टूबर 2024 में दोनों देशों के कूटनीतिक संबंधों में और भी अधिक गिरावट आई जब कनाडा ने भारत
के 6 उच्च कूटनीतिक प्रतिनिधियों जिनमें कनाडा में भारत के उच्चायुक्त भी शामिल थे से नीजर के कत्ल
संबंधी पूछताछ और छानबीन करने संबंधी अनुमति भारत सरकार से मांगी जिससे भारत सरकार क्रोधित हो
गई। मोदी सरकार ने तुरंत कार्रवाई करते हुए इन 6 राजनायिक अधिकारियों को भारत वापस बुला लिया और
नई दिल्ली में कार्यरत 6 कनाडा कूटनीतिज्ञों को बर्खास्त कर दिया।

प्रधानमंत्री ट्रूडो भारतीय राजनायकों के खिलाफ छानबीन और पूछताछ करने का सिलसिला अपने वोट बैंक को
बढ़ाने की खातिर कर रहे हैं। पूरे 1 साल बाद अर्थात अक्टूबर 2025 में कनाडा में संसद के चुनाव होने हैं
इसलिए सिख प्रवासियों के वोट बैंक को साधने के लिए तथा एनडीपी को खुश करने के लिए वे ऐसा कर रहे
हैं। पिछले 9 साल से वे सत्ता में है लेकिन अब उनकी लोकप्रियता में गिरावट आ रही है और 63% कनाडियन
वोटर उनसे कई कारणों से नाराज़ हैं। इतना ही नहीं उनके अपने लिबरल दल के सांसद भी उनसे इस्तीफे की
मांग कर रहे हैं। यदि वे इस्तीफा दे देते हैं या फिर अगले वर्ष लिबरल पार्टी संसद के चुनाव हार जाती है तो
दोनों देशों के संबंधों में सुधार हो सकता है। दोनों देशों और उनके नागरिकों के हित में संबंधों का सुधारना ही
उचित होगा। होगा।

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