India-Canada Conflict : भारतीय मीडिया पर विदेशी ताकतों के हमले और घुसपैठ की कोशिश

0
531
India-Canada Conflict : भारतीय मीडिया पर विदेशी ताकतों के हमले और घुसपैठ की कोशिश
India-Canada Conflict : भारतीय मीडिया पर विदेशी ताकतों के हमले और घुसपैठ की कोशिश

India-Canada Conflict | आलोक मेहता | कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन जैसे पश्चिमी देश एक तरफ आतंकवाद से लड़ने, आर्थिक संबंध बढ़ाने और युद्ध प्रभावित देशों को शांति वार्ता की नेज पर लाने के लिए भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आरती उतारते दिखते हैं, दूसरी तरफ स्वयं आतंकवादियों, भारत विरोधी संगठनों को शरण संरक्षण दे रहे हैं।

Alok Mehta

पराकाष्ठा यह है कि संपन्न देशों के समूह जी-7 के सदस्य कनाडा और अमेरिका आतंकी गतिविधियों के विवादास्पद मामलों में भारतीय मीडिया को भी निशाना बना रहे हैं। मतलब भारतीय मीडिया के एक बड़े वर्ग को वह दशकों पहले अपनाए तरीकों से अपनी कठपुतली – मोहरे की तरह इस्तेमाल करना चाहते हैं।

ऐसा न होने पर वे भारत की नीतियों, सुरक्षा मामलों पर मोदी सरकार के कदमों को उचित बताने वाले मीडिया संस्थानों और पत्रकारों को न केवल मोदी समर्थक बल्कि कनाडा या अमेरिका के चुनावों को प्रभावित करने का बेबुनियाद आरोप लगा रहे हैं।

जी-7 से जुड़े कनाडा के रैपिड रिस्पांस मेकेनिज्म मीडिया विंग ने चुनिंदा भारतीय मीडिया संस्थानों और वरिष्ठ सम्पादकों पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों, आतंकवादी संगठनों के विरुद्ध कार्रवाई का समर्थन करने से कनाडा की राजनीति और चुनाव पर असर का बेतुका और भारतीय मीडिया की स्वतंत्रता के विरुद्ध रिपोर्ट जारी की।

स्वयं प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो (Canada’s Prime Minister Justin Trudeau) ने विदेशी हस्तक्षेप आयोग के समक्ष अपनी गवाही के दौरान आरोप लगाया कि ‘कनाडा और उसके नागरिकों पर हमला करने के लिए भारतीय मीडिया का इस्तेमाल किया गया। उन्होंने दावा किया कि पिछले साल हाउस आफ कॉमन्स में उनके बयान के बाद, जिसमें उन्होंने सिख अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के लिए भारत को दोषी ठहराया था।

भारत सरकार ने अपने मीडिया के माध्यम से कनाडा पर हमलों के साथ जवाब दिया। ट्रूडो ने कहा कि इन प्रयासों का उद्देश्य ‘हमारी आलोचना करना, हमारी सरकार और हमारे शासन को कमजोर करना और, स्पष्ट रूप से, हमारे लोकतंत्र की अखंडता को कमजोर करना’ था। ‘

असल में कनाडा के जस्टिन ट्रूडो (Canada’s Prime Minister Justin Trudeau) पिछले चुनावों में चीनी दखल के मामले में बुरी तरह फंस चुके हैं। भारत पर निशाना डालकर वह खुद को और चीन को बचाना चाहते हैं। कनाडा में उनके खिलाफ विरोध के स्वर तेज हो रहे हैं। उनकी अपनी ही लिबरल पार्टी में बगावत तेज हो गई है।

उनके इस्तीफे की मांग हो रही है। यही वजह है कि कनाडा में सिख वोटरों और खालिस्तान समर्थक वोटरों का साथ पाने के लिए भारत को निशाना बना रहे हैं। जस्टिन ट्रूडो (Canada’s Prime Minister Justin Trudeau) पर साल 2019 और 2021 के चुनावों में विदेशी हस्तक्षेप से जीतने का आरोप है।

इसी मामले में वह जांच का सामना कर रहे हैं। वह साल 2019 और 2021 के चुनावों में विदेशी हस्तक्षेप (चीन और रूस) की जांच कर रही समिति के सामने पेश हुए।

यहां उन्हें कनाडाई चुनावों में चीनी दखल पर जवाब देना था। आयोग ने जनवरी 2024 में सार्वजनिक सुनवाई शुरू की थी। जांच में चीन को हस्तक्षेप करने का मुख्य आरोपी माना गया। दावा किया गया कि ट्रूडो ने चुनाव जीतने के लिए चीन की मदद ली थी और चुनाव को अपने पक्ष में प्रभावित करवाया था। ‘

भारतीय मीडिया पर आरोप लगाने वाले ट्रुडो अपने गिरेबान में झांककर वहां के मीडिया को देख लें। कनाडा के अखबार द नेशन पोस्ट ने लिखा है कि ट्रूडो ने कनाडा में अतिवादी सिखों को पनपने का मौका दिया और डायस्पोरा को इतनी छूट प्रदान कर दी कि वे हमारी विदेश नीति को प्रभावित करने लगे।

‘कनाडाई मीडिया ने इसे ‘असामान्य सार्वजनिक बयान’ करार दिया है। अखबार ने लिखा है कि नई दिल्ली ने जो सवाल उठाए हैं, बिना उसका जवाब दिए ही कनाडा ने राजनयिक संबंध खराब कर लिए। ट्रूडो ने संदिग्ध खालिस्तानी अतिवादियों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया, बल्कि डायस्पोरा पर उनकी पैरवी कर दी।

मीडिया में लिखा गया है कि कनाडा ने सिख चरमपंथियों को फलने-फूलने का मौका दिया, यहां तक कि उन लोगों ने भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या को सेलिब्रेट किया, क्या इस घटना को कनाडा के हित में बताया जा सकता है। इसी तरह से द नेशनल टेलिग्राफ के हवाले से भी लिखा गया है कि ट्रूडो ने फिर से निराश किया है। उन्होंने कोई भी ऐसा साक्ष्य सामने पेश नहीं किया, जिसे देखकर कहा जा सके कि उनके आरोप सही हैं।

अखबार ने लिखा है कि ट्रूडो के एक्शन की वजह से कनाडा को आर्थिक नुकसान पहुंचेगा और वह ऐसा सिर्फ जगमीत सिंह और खालिस्तानी मंत्रियों को खुश करने के लिए कदम उठा रहे हैं। भारत के खिलाफ प्रतिबंध लगाए जाने की बात तो कह दी गई, लेकिन कनाडा का जो नुकसान होगा, उसका क्या होगा।’

कनाडाई थिंक टैंक आईसीटीसी के डिप्टी डायरेक्टर फरान जैफरी के हवाले से लिखा गया है कि वास्तव में यह मोदी वर्सेस खालिस्तानी नहीं, बल्कि भारत वर्सेस खालिस्तानी की स्थिति बन गई है। उन्होंने लिखा कि खालिस्तानी अलगाववादी हैं और वे मोदी विरोधी नहीं, बल्कि भारत विरोधी हैं, यह भारत वर्सेस अलगाववाद का मुद्दा है। ऐसी परिस्थिति में ट्रूडो अलगाववादियों के साथ जाते हुए दिख रहे हैं।’

भारत कनाडा के कूटनीतिक संबंधों को बिगाड़ने के बाद ट्रुडो ने स्वीकार कर लिया कि उनके पास लिज्जत की हत्या का कोई प्रामाणिक तथ्य नहीं था। वहीं अमेरिका में पल रहे आतंकवादी पन्नू ने खुद भी कह दिया कि उसी ने कनाडा सरकार को इस हत्या में हाथ होने की आशंका बताई थी। दूसरी तरफ पन्नू की हत्या के षड्यंत्र के नाम पर अमेरिका ने भी भारतीय एजेंसियों आदि का आरोप लगाना शुरू कर दिया।

मतलब साफ है कि खालिस्तानी आतंकवादियों को पिछले तीस चालीस वर्षों से पनाह दे रहा अमेरिका अपने फॉर्मूले से भारत सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है।

हम जैसे पुराने पत्रकारों को यह बात याद है कि इंदिरा गांधी और शंकर दयाल शर्मा सीआईए द्वारा भारत की राजनीतिक स्थिरता खत्म करने के आरोप 1980 से पहले भी लगाया करते थे। खालिस्तान के नाम पर देश को तोड़ने वाले तत्वों को सीआईए के समर्थन के तथ्यों पर पंजाब को बहुत करीब से समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार जी एस चावला और गुप्तचर एजेंसी रॉ के प्रमुख रहे विक्रम सूद ने विस्तार से अपनी पुस्तकों में बहुत पहले लिखा हुआ है।

अमेरिकी पत्रकारों या सीआईए में रह चुके जासूसों ने भी विदेशी सरकारों को गिराने के लिए मीडिया को हथियार बनाने के विवरण विस्तार से लिखे हैं। इसलिए अब अमेरिका या ब्रिटेन, कनाडा जैसे देशों को तकलीफ यह है कि भारतीय मीडिया अब कठपुतली नहीं बन रहा और मोदी जैसे प्रधानमंत्री व्यापक जन समर्थन के बल पर विदेशी शक्तियों का मुकाबला करने में सक्षम हैं।

फिर भी बांग्ला देश में शेख हसीना को हटाने की घटना के बाद प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्रों के प्रति जनता को आगाह किया है। इस मुद्दे को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। मीडिया संस्थान और संगठनों को भी विदेशी दुष्प्रचार का प्रतिकार करना चाहिए।

वहीं अमेरिका, चीन, पाकिस्तान की संदिग्ध एजेंसियों और कंपनियों के माध्यम से भारतीय मीडिया में घुसने वालों या उनका मोहरा बने तत्वों के विरुद्ध सरकार को कठोर कानूनों का उपयोग करना आवश्यक होगा।

यह भी पढ़ें : India-Canada Conflict : क्या कनाडा में भी तुष्टिकरण का शुक्राणु स्फुटित हो गया है ?