18वीं सदी में फ्रांस कि महारानी मैरी ऐंटोएनेट ने किसानों से कहा था कि- यदि रोटी नही मिली तो लोग केक क्यों नही खाते। आज हालात कुछ वैसे ही हो चले हैं। रिजर्व बैंक का कहना कि इस साल विकास दर शून्य से दस प्रतिशत नीचे रहेगी आत्मनिर्भर पैकेज को श्रद्धांजलि जैसा है। कर्ज गारंटी वाले पैकेज का संक्षिप्त में सत्य यह है कि ताजा इतिहास में पहली बार उद्योगों को कर्ज लेने के लिए इतनी स्कीमें, गारंटी या प्रोत्साहन मिले और ब्याज दरें नौ साल के न्यूनतम स्तर पर आ गईं लेकिन इसके बावजूद अगस्त में बैंक कर्ज की मांग अक्तूबर 2017 के बाद न्यूनतम स्तर पर थी।
इससे ज्यादा खतरनाक अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के हालिया आंकड़े हैं जो भारत में आई गहरी मंदी कि सच्चाई बयां करते हैं। आईएमएफ के अनुसार भारत का सार्वजनिक ऋण अनुपात, जो 1991 के बाद से जीडीपी के लगभग 70 प्रतिशत पर स्थिर था, वह अब सार्वजनिक व्यय में बढ़त के कारण 17 प्रतिशत अंक बढ़कर लगभग 90 प्रतिशत तक पहुंच गया है। इसके अलावा आईएमएफ के अनुसार इस वर्ष भारत के जीडीपी में 10.3 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है। जून के 4.5 प्रतिशत गिरावट के पूवार्नुमान के मुकाबले यह दूने से भी अधिक है। साथ ही इस साल के अंत तक करीब 9 करोड़ लोग भयानक गरीबी के शिकार हो सकते हैं। लेकिन आईएमएफ के आंकलन में ज्यादा चिंताजनक यह है कि 2020 में एक औसत बांग्लादेशी नागरिक की प्रति व्यक्ति आय एक औसत भारतीय नागरिक की प्रति व्यक्ति आय से अधिक हो जाएगी। देशों की तुलना जीडीपी विकास दर या पूर्ण जीडीपी के आधार पर की जाती है।
आजादी के बाद के अधिकांश समय तक इन दोनों गणनाओं पर, भारत की अर्थव्यवस्था बांग्लादेश की तुलना में बेहतर रही। भारत की अर्थव्यवस्था बांग्लादेश के आकार से 10 गुना अधिक रही है। हालांकि प्रति व्यक्ति आय का हिसाब थोड़ा अलग है- कुल जनसंख्या को कुल जीडीपी से गुना कर प्रति व्यक्ति आय पता चलती है। और इस साल इसी प्रति व्यक्ति आय में बांग्लादेश भारत को पिछाड़ सकता है। दरअसल बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था में 2004 के बाद से ही तेज जीडीपी वृद्धि दर देखी जा रही है। हालांकि 2004 और 2016 के बीच भारत बांग्लादेश की तुलना में ज्यादा तेजी से बढ़ा।
लेकिन 2017 के बाद से भारत की विकास दर में तेजी से गिरावट आई, जबकि बांग्लादेश की वृद्धि दर और भी तेज हो गई। सनद रहे कि 15 साल की अवधि में, भारत की आबादी बांग्लादेश की आबादी की तुलना में कुछ तेजी से बढ़ी। नतीजतन कोविड से पहले ही दोनों देशों के बीच प्रति व्यक्ति जीडीपी का अंतर काफी कम हो गया था। वैश्विक वित्तीय संकट से ठीक पहले 2007 में बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति जीडीपी भारत की आधी थी। यह 2014 में भी भारत के लगभग 70 प्रतिशत पर ही थी। लेकिन 2014 से अब तक हालात काफी बदल चुके हैं।
सबसे तात्कालिक कारक दोनों अर्थव्यवस्थाओं पर कोविड का प्रभाव है। जहां भारत के जीडीपी में 10 प्रतिशत की गिरावट देखी जा रही है वहीं बांग्लादेश का जीडीपी लगभग 4 प्रतिशत से बढ़ने की उम्मीद है। हालांकि आईएमएफ के अनुसार भारत अगले साल तेजी से बढ़ेगा, लेकिन बांग्लादेश के तेज आर्थिक विकास को देखते हुए भारत और बांग्लादेश प्रति व्यक्ति आय के मामले में आसपास ही रहेंगे। 2014 वाली स्थिति दूर है और 2007 वाली स्थिति तो पता नहीं लौटेगी भी या नहीं?
बांग्लादेश के तेज बढ़ने के कई कारण हैं, जैसे- आसान श्रम कानून, महिलाओं कि अधिक श्रम भागीदारी दर, कपड़ा उद्योग से चीन का पीछे हटना, जीडीपी की औद्योगिक क्षेत्र और सेवा क्षेत्र पर निर्भरता, लाभकारी रोजगार, सामाजिक और राजनीतिक मैट्रिक्स जैसे स्वास्थ्य, स्वच्छता और महिलाओं के राजनीतिक प्रतिनिधित्व में सुधार, लिंग समानता आदि इसकी तेज बढ़त के कारण हैं। दूसरी तरफ गरीबी, बुनियादी शिक्षा, मानव विकास सूचकांक में निचली रैंक, भ्रष्टाचार, हिंसक राजनीति और कट्टरपंथी विचारधारा इसके विकास में कुछ रोड़े हैं। भारत कि समस्या यह है कि हम लगातार अपनी विकास गति खो रहे हैं, 2016 के बाद से ही बाजार में मांग घट रही है और मंदी का माहौल है। आशावादी पूर्वाग्रह और जल्दबाजी में लिए गए कुछ गलत फैसले इसका कारण हैं। कोविड में भी सरकार की तरफ से कोई उचित मदद प्रदान नहीं की गई। जहां दूसरे देशों में वेतन संरक्षण या पगार सब्सिडी सरकारों के रोजगार बचाओ अभियानों का सबसे बड़ा हिस्सा है वहीं भारत में आत्मनिर्भरता का पुराना ज्ञान दिया जा रहा है और जनता को अपने हाल पर छोड़ दिया गया है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)
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