MPs Chandrashekhar Azad, Beniwal and Rajkumar, अजीत मेंदोला, आज समाज), नई दिल्ली: अठाहरवीं लोकसभा में उत्तर प्रदेश और राजस्थान से चुनकर आए तीन सांसद आने वाले दिनों में विपक्ष की मुश्किलें बढ़ा सकते हैं। इनमें एक हैं नगीना से चुनाव जीतने वाले आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर आजाद, राजस्थान से चुनाव जीतने वाली भारत आदिवासी पार्टी के राजकुमार रोत और आरएलपी के हनुमान बेनीवाल।
आजाद अपने दम पर पहुंचे हैं लोकसभा
आजाद तो अपने दम पर निर्दलीय चुनाव लड़कर लोकसभा पहुंचे। बाकी दोनों सांसदों को कांग्रेस ने समर्थन दिया, जिससे भाजपा को हराया जा सके। इन नेताओं ने गठबंधन किया तो सबसे ज्यादा घाटे में कांग्रेस और फिर समाजवादी पार्टी रहने वाली है। भाजपा को इनका गठबंधन शायद फायदा पहुंचा सकता है, क्योंकि इनका वोट बैंक समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का परंपरागत वोटबैंक माना जाता है। भविष्य में होने वाले चुनावों खास तौर पर उत्तर प्रदेश में आजाद विपक्ष के लिए बड़ी चुनौती बनने वाले हैं।
इन राज्यों की राजनीति को कर सकते हैं प्रभावित
इन तीनों का गठबंधन बना तो उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और मध्यप्रदेश की राजनीति को प्रभावित कर सकते हैं। जैसा अभी तक मायावती की पार्टी बसपा करती आई है। कांग्रेस और सपा ने लोकसभा चुनाव में आजाद को इंडी गठबंधन में शामिल ना कर बड़ी चूक कर दी है। जबकि इन दलों ने उन्हें भरोसा दिया था कि उनके खिलाफ प्रत्याशी खड़ा नहीं करेंगे, लेकिन अंतिम समय में उनके खिलाफ प्रत्याशी खड़ा कर दिया। इसके बाद भी तिकोनीय मुकाबले में दलित और मुस्लिम वोटों की मदद से आजाद चुनाव जीत गए।
समाजवादी पार्टी के लिए चंद्रशेखर का जीतना शुभ संकेत नहीं
समाजवादी पार्टी के लिए चंद्रशेखर आजाद का जीतना शुभ संकेत नहीं है, क्योंकि जिन वोटर्स के भरोसे सपा राजनीति कर रही है उनमें से दलित और मुसलमानों के वोट पर आजाद सेंध लगाएंगे। सपा पिछड़ों,दलितों और अल्पसंख्यकों के गठबंधन की राजनीति कर रही है, जिसका मतलब है पीडीए। इसी पीडीए पर मायावती की हमेशा से नजर रही है और नए दावेदार आजाद आ गए हैं। बसपा नेत्री मायावती ने भी आजाद की बढ़ती लोकप्रियता देख अपने भतीजे आकाश आनंद को फिर पार्टी की कमान सौंप दी है। आकाश और आजाद दोनों युवा हैं और दोनों के भाषणों की टोन एक ही है।
जाति की राजनीति कर नेता बने हैं तीनों सांसद
आजाद, राजकुमार रोत और बेनीवाल जाति की राजनीति कर नेता बने हैं। ये तीनों नेता अभी भले ही इंडिया गठबंधन के साथ हैं, लेकिन ये कभी भी अलग हो सकते हैं। तीनों अपने—अपने दल के चुनाव चिन्ह पर चुनाव जीते हैं। इनमें आजाद उत्तर प्रदेश के साथ पूरे देश में अपने को मायावती की जगह दलित नेता के रूप में स्थापित करने में जुटे हैं। बेनीवाल खुल कर जाट राजनीति करते हैं। राजकुमार आदिवासी नेता हैं।
राजकुमार रोत ने 2023 में ही बनाई थी भारत आदिवासी पार्टी
रोत ने पिछली साल 2023 में ही भारत आदिवासी पार्टी बनाई थी। वे दूसरी बार विधायक का चुनाव जीते और अब अब सांसद बन चुके हैं। कुछ समय में ही उन्होंने वह सब पा लिया, जो सालों बाद राजनीति में किसी को नहीं मिलता।राजकुमार की पार्टी की गुजरात, मध्यप्रदेश और राजस्थान के आदिवासी जिलों को मिलाकर अलग से भील प्रदेश की मांग है। दरअसल, कांग्रेस ने भाजपा उम्मीदवार महेंद्रजीत सिंह मालवीय को हराने के लिए आदिवासी बेल्ट की सीट डूंगरपुर—बांसवाड़ा में राजकुमार रोत का समर्थन कर दिया। मालवीय तो हार गए, लेकिन आदिवासी बेल्ट में राजकुमार नेता बन गए।
कांग्रेस के गढ़ में अब रोत का ‘दबदबा’
कभी कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाले आदिवासी क्षेत्र में अब भारत आदिवासी पार्टी की दावेदारी मजबूत हो गई है। इसी प्रकार हनुमान बेनीवाल अपने को जाट नेता के रूप में स्थापित करने में जुटे हुए हैं। पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में उन्होंने चंद्रशेखर आजाद की पार्टी से गठबंधन कर विधानसभा का चुनाव लड़ा था। हालांकि उन्हें बहुत फायदा तो नहीं हुआ, लेकिन कांग्रेस को कुछ सीटों पर जरूर नुकसान हुआ। राजस्थान में ये तीनों नेता मिलकर यदि अपना मोर्चा बनाते हैं तो सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस का ही होगा मध्यप्रदेश, गुजरात जैसे राज्यों की कुछ सीटों पर असर डालेंगे। तीनों को लोकसभा जैसा मंच मिल गया है।
आजाद ने शपथ लेते ही दे डाला है संकेत
आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर आजाद ने तो शपथ वाले दिन ही संकेत दे दिए कि वह पूरी तरह से दलितों और पिछड़ों की राजनीति करने आए हैं। साल 1989 में मायावती भी पहली बार अकेले चुनाव जीत संसद में पहुंची थी। उसके बाद उन्होंने तीन दशक तक जमकर राजनीति कर अपनी अलग पहचान बनाई। चंद्रशेखर भी ठीक उनके ही रास्ते पर चल रहे हैं। लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद पश्चिम उत्तर प्रदेश में वह दलितों और मुस्लिम समाज में बहुत लोकप्रिय हो चुके हैं। पूरे इलाके में जीत की बधाई वाले सबसे ज्यादा होर्डिंग आजाद के ही लग रहे हैं। संसद के शोरगुल में अभी तीनों नेता हालातों को समझ रहे हैं। बेनीवाल तो पहले एमपी रह चुके हैं, लेकिन अकेले होने के चलते कमजोर हो गए थे। फिर कांग्रेस की मदद से सांसद बन गए। अधिक समय तक वह किसी के साथ टिकते नहीं हैं।अब उन्हें दो साथी मिल गए हैं। आजाद की पार्टी के साथ गठबंधन कर चुके हैं।
बेनीवाल ने राजस्थान में कांग्रेस को दिखा दी है आंख
बेनीवाल दलित, जाट और आदिवासी वोटरों का समीकरण अच्छी तरह जानते है। उन्होंने राजस्थान में अभी से कांग्रेस को आंखे दिखानी शुरू कर दी हैं। तीनों नेता महत्वकांक्षी है। आजाद जानते है सपा उन्हें आगे नहीं बढ़ने देगी। इसलिए उत्तर प्रदेश में पार्टी के विस्तार में जुट गए हैं। खास तौर पर पश्चिम उत्तर प्रदेश को टारगेट किया। पिछड़ों, दलितों और मुस्लिमों को वह साध रहे हैं। उनकी नजर ढाई साल बाद होने वाले उत्तर प्रदेश के चुनाव पर हैं। उनके पास अपने को तैयार करने के लिए पूरा समय है। आजाद,बेनीवाल और रोत कह चुके है कि समय आने पर वह फैसला करेंगे। आने वाले दिनों में इन तीनों नेताओं पर सबकी नजरें रहने वाली हैं।