Increasing despair among youth is the reason for self-murder: युवाओं में बढ़ती निराशा आत्म हत्या की वजह

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 आत्म हत्याओं को हम समय रहते रोक सकते हैं, लेकिन हमारे भीतर ऐसी सोच पैदा नहीं होती है। आधुनिक जीवन शैली बेहद प्रतिस्पर्धात्मक हो चली है। व्यक्ति हर बात को अपनी सफलताओं और असफलताओं से जोड़ देता जिसकी वजह से इस तरह की घटनाएं होती हैं। पूरी दुनिया में हर साल 10 लाख लोग आत्महत्या करते हैं। विश्व में होने वाली कुल आत्महत्याआें का 21 फीसदी भारत में होता है। मानोचिकित्सक मानते हैं कि सामाजिक जागरुकता की वजह से ऐसी घटनाओं को कम किया जा सकता है। दुनिया भर में जिंदगी की बढ़ती व्यस्तताओं और काय के मानसिक दबाब के साथ जिंदगी का मूल्याकंन अर्थ से जुड़ गया है। जिसकी वजह से युवाओं में आत्महत्या की प्रवृत्ति सबसे अधिक है। विदेशों में आत्महत्या करने वालों में सबसे अधिक बुजुर्ग हैं लेकिन भारत में यह स्थिति उलट है।
आत्महत्या जिंदगी का सबसे प्राणघातक फैसला है। जीवन में कई स्थितियां ऐसी बनती हैं जब इंसान उससे लड़ नहीं पाता। जब उसे समस्या का निदान नहीं दिखता तो उसके पास एक मात्र विकल्प आत्महत्या होती है। आत्महत्या कोई भी आदमी कर सकता है। वह उच्च शिक्षाविंद्, वैज्ञानिक, अभिनेता, राजनेता, महिलाएं, युवा या फिर आम आदमी। आत्महत्या के संबंध में यह तक मनगढ़ंत हैं कि पढ़े-लिखे लोग आत्महत्या कम करते हैं या नहीं करते। भारत में कई उदाहारण हैं जहां सफल व्यक्ति अपनी जिंदगी से पस्त होकर ऐसा कदम उठाता है। जिसके बारे में आम आदमी यह सोच भी नहीं सकता है कि संबंधित व्यक्ति इस तरह का भी फैसला ले सकता है। देश में कई आईएएस, आईपीएस, राजनेता, फिल्मी हस्तियां आत्महत्या कर चुके हैं। दक्षिण भारत में काफी किंग के नाम से मशहूर हस्ती इसका ताजा उदाहरण हैं। जिन्होंने भारी आर्थिक नुकसान की वजह से ऐसा कदम उठाया। आत्महत्याओं को हम समय रहते रोक सकते हैं, लेकिन हमारे भीतर ऐसी सोच पैदा नहीं होती है। आधुनिक जीवन शैली बेहद प्रतिस्पर्धात्मक हो चली है। व्यक्ति हर बात को अपनी सफलताओं और असफलताओं से जोड़ देता जिसकी वजह से इस तरह की घटनाएं होती हैं। पूरी दुनिया में हर साल 10 लाख लोग आत्महत्या करते हैं। विश्व में होने वाली कुल आत्म हत्याआें का 21 फीसदी भारत में होता है। मानोचिकित्सक मानते हैं कि सामाजिक जागरुकता की वजह से ऐसी घटनाओं को कम किया जा सकता है।
दुनिया भर में जिंदगी की बढ़ती व्यस्तताओं और काय  के मानसिक दबाब के साथ जिंदगी का मूल्याकंन अर्थ से जुड़ गया है। जिसकी वजह से युवाओं में आत्महत्या की प्रवृत्ति सबसे अधिक है। विदेशों में आत्महत्या करने वालों में सबसे अधिक बुजुर्ग हैं लेकिन भारत में यह स्थिति उलट है। यहां युवा और महिलाएं अधिक संख्या में आत्म हत्या करते हैं। लोगों को आत्महत्या से बचाव के लिए इस वर्ष नया नारा दिया गया है। आत्महत्या के बचाव के लिए मिल कर काम करें। भारत में प्रति एक लाख व्यक्ति में 11 व्यक्ति आत्महत्या करते हैं जबकि जापान में यह आंकड़ा 20 व्यक्ति का है। भारत में आत्म हत्याओं के मामले में महाराष्टÑ पहले नंबर पर है। इसके बाद की पायदान पर तमिलनाडू, पश्चिम बंगाल,  कर्नाटक और मध्यप्रदेश शामिल हैं। भारत में कुल आत्महत्याओं में 51 फीसदी की हिस्सेदारी इन्हीं पांच राज्यों की है। पांडेचेरी में आत्महत्या की दर सबसे अधिक हैं। यहां प्रति 10 लाख में 432 लोग आत्महत्या करते हैं जबकि जबकि सिक्किम में यह दर 375 की है। एक शोध से पता चला है कि भारत में पुरुषों से चार गुना अधिक महिलाएं आत्महत्या करती हैं। दक्षिण भारत में दूसरे राज्यों की अपेक्षा शिक्षा दर और लिंगभेद बेहद कम होने के बाद भी यहां महिलाओं की आत्महत्या दर अधिक है। पूरी दुनिया में मौत के कारणों में दसवां कारण आत्महत्या यानी सेल्फ मर्डर का है।
इंसान के भीतर जीवन की असफलताओं की वजह से नकारात्मक विचार पैदा होने लगते हैं। काय क्षेत्र में विफल होने की वजह से वह अपना मूल्याकंन कम कर आंकता है। जिसकी वजह से वह ऐसे कदम उठाता है। आत्महत्या के मुख्य कारणों में जीवन के प्रति निराशावादी सोच। जिंदगी खत्म करने के लिए प्रेरित करती है। समस्या का समाधान न दिखाई देना। अचानक व्यवहार में परिवर्तन। एकांतवास करना और मित्रों व परिवार से दूर रहना। नशीली वस्तुओं और दवाओं का सेवन करना। अत्यधिक जोखिम भरे कार्य करना। जिंदगी के प्रति उदासीन नजरिया रखना जैसे मुख्य कारक हैं। काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी में एआरटी सेंटर आईएमएस में तैनात एक वरिष्ठ परामर्शदाता एवं मनोचिकित्सक डॉ. मनोज कुमार तिवारी के विचार में इस प्रवृत्ति को सामाजिक सोच में दबलाव लाकर रोका जा सकता है। अभियान चलाकर हद तक सफलता प्राप्त की जा सकती है। अगर कोई व्यक्ति आत्म हत्या की सोचता है तो उसके भीतर तीन प्रमुख कराण उभरते हैं। समय रहते उस बदलाव को समझ कर व्यक्ति की सोच को बदला जा सकता है। जिस व्यक्ति में उपयुक्त निराशावादी सोच पैदा हो रही हैं। उसकी दैनिक जीवनचर्या बदल जाती है। उस व्यक्ति से आप यह पूछ सकते हैं कि आप आत्महत्या कब करना चाहते हैं। यदि वह व्यक्ति ऐसे समय का उल्लेख करता है जब वह अकेला होता है और उसके पास घर का कोई सदस्य या पारिवारिक करीबी नहीं होता है। उस स्थिति में आत्महत्या की स्थिति अधिक बढ़ जाती है। लेकिन जब व्यक्ति इस सवाल जबाब इस तरह देता है कि वक्त आएगा तो बाताएंगे तो समझिए आत्म हत्या पर उसका निश्चय दृढ़ नहीं   है। दूसरा सवाल वह आत्म हत्या के किस तरीके को अपनाएगा। अगर वह कहता है कि रेल से कट जाऊंगा, पुल से छलांग लगा लूंगा। नदी में डूब मारूंगा, गोली मार लूंगा या फांसी लगा लूंगा। ऐसे संसाधन जिनकी उपलब्धता आसान है। उस स्थिति में समझिए संबंधित आदमी आत्म हत्या कर सकता है। तीसरा अहम सवाल कि वह आत्म हत्या क्यों करना चाहता है। उसके प्रति उत्तर में अगर जीवन की हताशा। निराशावादी सोच, जिंदगी की असफलता, अपने किसी करीबी या प्यार में धोखे की बात आए तो समझिए आत्म हत्या की संभावनाएं अधिक हैं। बताते हैं कि आत्म हत्या के दस प्रमुख कारण हैं। जिसमें इंसान में नशे और जुए की लत। मानसिक अवसाद। दवाओं का गलत उपयोग। गंभीर बीमारी जैसे एड्स, कैंसर, ह्दय रोग और दूसरी असाध्य बीमारियां शामिल हैं। जीवन में आर्थिक नुकसान भी जीने की उम्मीद खत्म कर देता है। इसके अलावां आसानी से आत्म हत्या के संसाधनों की उपलब्धता। सामाजिक आर्थिक स्थिति। अनुवांशिकता। पारिवारिक कलह और सोशल मीडिया भी आत्म हत्या के कारणों में प्रमुख हैं। एक शोध के अनुसार मानसिक अवसाद के कारण आत्म हत्या की सोच अधिक बढ़ती है। जिसकी वजह से 8.6 फीसदी लोग आत्म हत्या का प्रयास करते हैं। मनोविकार की स्थिति से 50 फीसदी लोग ऐसा प्राणघातक कदम उठाते हैं। ऐसे लोगों में यह खतरा 20 गुना अधिक रहता है। सिजोफ्रेनिया से और व्यक्तित्व विकार से ग्रसित 14 फीसद लोग आत्महत्या का प्रयास करते हैं। एक आंकड़े के अनुसार जो लोग ऐसा प्रसास कर चुके होते हैं, उनमें 20 फीसदी दूसरी बार भी ऐसा करते हैं। जबकि इस 20 फीसदी में एक फीसद लोग साल भर में इसी प्रयास की वजह से मौत को गले लगाते हैं। जबकि पांच फीसदी लोग 10 साल बाद पुन: आत्महत्या का प्रसास करते हैं। जुआ खेलने वालों में 24 फीसदी लोग कभी न कभी आत्महत्या का प्रसास करते हैं।  आत्म हत्या के मनोवैज्ञानिक कारण भी हैं जिसकी वजह से लोग ऐसा घातक कदम उठाते हैं। लोगों को मानोवैज्ञानिक काउंसिंलिंग कर बचाया भी जा सकता है। इसके लिए सामाजिक जागरुकता पहली आवश्यकता है। अवसाद से ग्रसित व्यक्ति के साथ परिवार और दोस्तों का नजरिया सकारात्मक होना चाहिए। भारत में सबसे खतरे की बात यह है कि युवाओं में आत्महत्या की सोच तेजी से पैदा हो रही है। यह सबसे घातक है। जिसकी वजह बेगारी, प्रेम में असलता, नशे की लत और दूसरे प्रमुख कारण हैं। इस पर नियंत्रण लगाने के लिए सरकारी स्तर पर एक राष्ट्रीय नीति बननी चाहिए। जिस पर ऐसे लोगों के प्रति संवेदना रखी जाए और उनकी काउसिंलिंग कराई जाए। लोगों की समय-समय पर जांच करायी जाए। मनोचित्सक के जरिए परामर्श दिया जाए। आत्महत्या के आसानी से सुलभ होने वाले संसाधन जैसे कीटनाशक, अस्त्र-सस्त्र, जहरीली वस्तुएं और दूसरे संसाधनों की आसानी से उपलब्धता पर रोक लगाई जाए। ऐसी स्थिति में पहुंचे लोगों में जीवन के सकारात्मक पहलू को पुन: स्थापित किया जाए। ऐसे उपायों से हम ऐसी समस्या से हद तक निजात पा सकते हैं, लेकिन इसके लिए सोच पैदा करनी होगी।