Categories: देश

In the temple premises of Dauji Maharaj Holi: बलदेव के हुरंगा में छायी इन्द्रधनुषीय छटा

बलदेव। भांग की तरंग में झूमते हुए ब्रज हुरियारे ग्वालों को रंग की मस्ती से सरावोर गोपियों ने प्यार की पोतोें से (टेसू के रंग से सुशोभित) जमकर पीट-पीटकर नहलाया। रंगों की मार खाकर आनन्दित महसूस कर रहे गोपों ने अपने कमण्डलों व बाल्टियों से गोपियों के वस्त्र रंगीन कर हुरंगा पर्व की मस्ती बिखेरी।
ब्रजराज दाऊजी महाराज के मन्दिर प्रांगण में मंगलवार को हुरंगा पर्व का संगीतमय रंग रंगीलों मन मोहक दृश्यों ने उपस्थित श्रद्घालुओं के मध्य इन्द्रधनुषी छटा बिखेरी। इन्द्रधनुषी रंगों की बौछार से उत्पन्न फाग, ठप, ढोल, नगाड़े मृदंग, मजीरा आदि से रसिक मन मचल-मचल कर गा उठा।
‘सब जग होरी या जग होरा’
ब्रजराज की भंग में रंग की तंरग है हुरंगा’
मंगलवार को प्रात: काल से ही ब्रज गोपों ने अपने शरीरों पर आकर्षक वस्त्रों को धारण कर गोपस्वरूप धारण किया। धोती, गोटादार बगलबंदी, अंखियों में कजरा और मुंह में वीड़े की लाली से सुशोभित गोपों ने अपनी-अपनी बैठकों पर सिल-लोड़ों की भांग छानी। वहीं ब्रजगोपियों ने भी मन भावन श्रंगार कर ब्रजगोपों पर कोडों की मार का पूरा इंतजाम किया, हुरियारों के कपड़े फाडकर उनके पोतना बनाये और हुरियारों में जमकर मार लगायी। प्रात: से अपनी बैठकों पर भांग घोट कर गोपों ने रंग की तरंग को भंग की तरंग से बढाकर हुरंगे के लिए अपने आप को तैयार किया।
और कहा कि ‘श्री बलदेव ब्रज के राजा’
भंग पिये तो यहीं पर आजा’
मन्दिर प्रांगण में दूर-दराज से आये हुए यात्रियोें की दाऊजी के इस पावन पर्व हुरंगे का आनन्द उठाने के लिए हजारों की संख्या में भीड़ एकत्रित हो चुकी थी ब्रज गोप और गोपियों के मन्दिर प्रांगण में आगमन के साथ ही गीत-संगीत, रंग और गुलाल के महापर्व का शुभारम्भ हुआ। टैल-छबीले रूपों से सुशोभित ब्रजनारी और ब्रजगोप रसिया गीतों के माध्यम से एक दूसरे के प्रति प्रेम और आकर्षण का जाल फैंकने लगे।
‘मोपे धुनिसुनि रहो न जाय
सखी री यह छप्प बाजे टैल को’
बलराम कुमार होरी खेलों के उद्घोष के साथ ही गोपों ने अपनी-अपनी बाल्टियों में टेसू के रंग को हौदों से भर-भर कर गोपियों पर उड़ेलना शुरू कर दिया, भंग की तरंग में मस्त गोप ब्रजनारियों की भांति कमर मटका-मटका कर और गीत व संगीत के माध्यम से फाग खेलने के लिए उत्तेजित करने लगे।
गोपों की नैन मटक्की और पिचकारी की फुआर से सराबोर गोपियां भी अपने तीखे नयनों से प्रति उत्तर देने लगी कि-
ओ रसिया होरी में मेरे लगि जायगी
मति मारे द्रगण की चोट
गोपियों के बिटुओं की झंकार और पायलों की कर्ण प्रिय आवाजों से उत्तेजित होकर गोप तेजी के साथ में रंग उड़ेलना शुरू कर देते हैं, और गोपियां भी भंग की तरंग से मद मस्त गोपों को घेरे बना-बनाकर उनके कपड़े फाड़ना प्रारम्भ कर देती है और गोपों के फटे हुए वस्त्रों के पोतने बनाकर टेसू के रंगों में डुबो कर गोपों पर बरसाना शुरू कर देती है।
गोपों की नंगी पीठ पर बरसते हुए कोड़े उनकी रंगों की भूख को और बढ़ा देते हैं। गोप गोपियों पर रंग डालते हैं, वहीं गोपी पोतनों में रंग भरकर उनके शरीर पर बरसा रही है। उपस्थित संगीत समाज उक्त दृष्य के संदर्भ में संगीत में उद्घोष करते हैं।
होरी रे रसिया बरि जोरी रे रसिया
आज बिरज में होरी रे रसिया
तदोपरांत गोपियां गाती है
बाग बीते कि हरबिल पौध आम कौ
सब कू देखन जाय रस बोर पर ऊडो न जाय’
मन्दिर की छतों पर बैठे दर्शक गण मंत्र मुग्ध होकर गोप-गोपिकाओं के इस आश्चर्य जनक प्रसंग को देखकर आनन्दित होते हैं, रसिक समाज संगीतमय धुन के साथ रसियों को बौछार कर हुरंगा के आनन्द को चार गुना बढ़ाते हैं, विस्मयजनक स्थिति में गोप-गोपियों की कोड़ों की मार खाकर ऐसा आनन्दित कर रहे हैं। जैसे कई फूलों की पौछार कर रहे हों
वहीं गोपियां कर रही है-
ब्रज गोरि दौरी फिरै रोरी लै लै हाथ
वर जोरि होरी रचौ बलदाऊ कै साथ’’
समूचा मन्दिर प्रांगण एवं नगर बलदाऊजी के परमोत्सव हुरंगा के रंगों की मस्ती में मस्त अपने आपको गौरवान्वित महसूस करता है। वहीं मन्दिर प्रांगण में झण्डे को प्राप्त करने की कोशिश में गोप-गोपिकाएं रंग रंगीला संघर्ष करती हैं-
हारी गोपी घर चलीं
जीत चले ब्रज बाल
के गोपों के उद्घोष के प्रति उत्तर में गोपियां-
हारे रे रसिया घर चले
जीत चलीं ब्रज नारि का उद्घोष कर ब्रजराज के हुरंगा समापन का संगीत मय इशारा करते हैं। मन्दिर प्रांगण से निकल कर ब्रज गोप व गोपिकाएं नगर के प्रमुख बाजारों में रंगों की बरसात करते हुए अपने-अपने घरों पर प्रस्थान करते हैं। इस अवसर पर मन्दिर के रिसीवर और प्रबंधक ने सभी बाहर से आने वाले प्रशासनिक अधिकारियों, आकाशवाणी व दूरदर्शन जन प्रतिनिधियों का स्वागत कर आभार व्यक्त किया।

होरी नाय जी होरा है, दाऊजी का हुरंगा है
बलदेव। ब्रज की विश्व प्रसिद्घ होली का बरसाने के बाद दूसरा बडा आयोजन बलदेव का हुरंगा इंद्रधनुषी छटा के साथ मनाया गया। हुरंगे का आनंद लेने के लिए दाऊजी मंदिर में दर्शकों की अपार भीड एकत्रित हो गई हर कोई हुरियारों व हुरियारिनों के होली खेलने के एक एक अदभुत नजारे को अपनी आंखों में कैद कर लेना चाहता था। भंग की उमंग में पंडा व पुरोहित समाज के उत्साही पुरूषों ने ब्रज के राजा बलदाऊजी की जय जयकार के मध्य जहॉं हुरियाहरिनों से जमकर कोडे खाए वहीं मीठी सिसकारियां भरते हुए उन्हें रंगों में सराबोर किया। प्रसिद्घ हुरंगे का देश-विदेश के हजारों लोगों ने अपूर्व आनंद उठाया। ब्रज के इस  मेले पर पुलिस व प्रशासन को शांति व्यवस्था बनाए रखने में काफी परेशानी उठानी पडी। ब्रज के राजा दाऊजी महाराज के हुरंगे को देखने के लिए रविवार से ही लोगों का आवागमन हो गया था। जो मंगलवार तक जारी रहा। तीर्थयात्रियों के टोल के टोल दाउजी महाराज के जयकारों के मध्य मंदिर प्रागंण में समाते जा रहे थे। पूर्वाहन तक मंदिर प्रागंण की छत से लेकर छज्जों पर बैठने के लिए कहीं जगह शेष नहीं मिली। अधिकांश लोग स्थानाभाव के चलते मंदिर प्रागंण में ही खडे होकर हुरंगे को देखने के लिए उत्सुक दिखाई दिए। मंदिर प्रागंण में बने तुलसी चबूतरा पर भगवान बलराम व श्री कृष्ण के प्रतीकात्मक रूप में विराजमान थे। पंडा समाज द्वारा प्रात: भगवान की आरती उतारवे के साथ ही भंग व ठंडाई का भोग लगाया गया। इस प्रसाद का सभी भक्तों को वितरण किया गया। इधर मंदिर प्रांगण में रसिया व होली की धमारों के स्वर गुंजायमान होने प्रारम्भ हो गए। मंदिर के तीनों मुख्य द्वारों से हुरियारिनों के टोल के टोल ब्रज के लोकगीत गाते हुए जिस समय मंदिर प्रागंण में प्रवेश किया तो श्रद्घालुओं का ध्यान बरबस ही उनकी ओर मुखातिब हो गया। सूर्य के लालिमा छोड तपिश पकडने के साथ ही मंदिर प्रांगण में नगाडों नफीरी व ढाल व मृदंग की गगनभेदी आवाज के साथ ही मुदिर प्रांगण मनभावन परिधानों में सजे गोप गोपिकाओं के झुण्डों के साथ ही रसियों के स्वर गुंजाएमान होने लगे। देश- विदेश से आए तीर्थयात्री  हैरत में पड़ गए कि आज के बदलते परिवेश में भी महिलाऐं लंहगा फरिया व वजनी बिटुआ धारण किए हुए परंपरागत ब्रज के परिधानों की छवि प्रस्तुत कर रही हैं। हुरियारे व हुरयारिनें ढप, ढोल व मजीरों की धुन पर थिरकने लगे। महिला पुरूष, बाल गोपाल सभी मस्त दिखाई पड रहे थे। कुछ लोग ब्रज के राजा बलदेव के आयुध हल व मूसल को हाथों में लेकर नृत्य में तल्लीन थे। उस समय उन्हें इंतजार केवल हुरंगे के प्रारम्भ होने का था मंदिर में बैठे प्रत्येक श्रद्घालु की नजर ठाकुर जी के उपर लगी हुई थी कि कब मंदिर के पट खुलें और कब शुरू हो मदमाती होली जो कि हुरंगा के रूप में धुलैडी के एक दिन बाद पंरपरागत रूप से होता है। जयकारों के मध्य परंपरागत रूप से मंदिर के कपाट खुले और भगवान बलदाऊजी प कृष्ण की छवि ऐसी प्रतीत हो रही थी कि मानो राजभोग के दर्शन हो रहे हों, वे इशारा कर रहे हों कि हुरियारो व हुरियारिनों प्रारम्भ करो हुरंगा। होली खेलने वालों ने पहले स्वेत धवल श्रंगार में सजे भगवान के स्वरूप को निहारा। दुर्लभ दर्शनों को हृदय में संजोकर संगीत के माध्यम से बलदेव जी को सर्वप्रथम होली खेलने का आमंत्रण दिया गया बलराम कुमार होरी खेले कूं, भैया खेले होरी फाग । इसी के साथ प्रारम्भ हो गया पद गायन और हुरंगा। होरी नाय हुरंगा है के स्वरों के साथ गोप समूह मंदिर प्रांगण में बने विशाल होजों की तरफ लपकते दिखाई दिए । वे टेसू के रंग से भरे हौजों से बाल्टियां भर-भर गोपिकाओं को रंगों में सराबोर करने को उत्सुक दिखे। सैंकडों हुरियारे- हुरियारिनों के उपर मंदिर प्रांगण में बने तीनों होजों के रंग को जिस तरह से उडेल रहे थे, लेकिन हौज खाली होने का नाम ही नहीं ले रहे थे लगातार तीन टयूबलों से निरंतर हौजों में जलापूर्ति दी जा रही थी। उनमें रंग घोला जा रहा था पूरा मंदिर प्रांगण कुछ ही क्षणों में केसरिया रंग में डूबने लगा इस बीच छज्जों के कुछ युवक गुलाल की वर्षा करने में लग गए। वे गा रहे थे उडत गुलाल लाल भए बदरा किसी को उम्मीद नहीं थी कि वे छज्जों पर 15 कुतंल गुलाल 2 कुंतल भुडभूड लेकर बैठे थे। इस दृश्य को नयनों में कैद करने को आतुर श्रद्घालु मदमाती होली को निहारने में लगे थे कि तभी उनका सामना दूसरे दृश्य से हुआ। अब हुरियारिनों की बारी थी। रंगों में सराबोर गोपिकाऐं पुरूषों के वस्त्रों को फाडकर उनके पौतना कोडे बनाकर उनकी निर्ममतापूर्वक पिटाई करने लगी। देखने में तो लग रहा था, जैसे महिला रंग डालने पर आक्रोश स्वरूप हुरियारों की पिटाई कर रही होें, लेकिन वास्तव में वह कोडे प्रेम के रंग में सराबोर होने के कारण फूलों की मार की मानिंद लग रहे थे। तभी तो मार खाने के बाद भी हुरियारों के चेहरे पर चमक बरकार थी।

सपरिवार शामिल हुए अधिकारी
बलदेव। मंगलवार को बलदेव के विश्व प्रसिद्ध हुरंगा को देखने के लिए तो प्रात: से ही भीड उमड रही थी, लेकिन दोपहर को शुरू हुए हुरंगे को देखने के लिए लगभग एक घंटे पहले जनपद व मण्डलों से अधिकारी भी सपरिवार शामिल हुए।

वीआईपी भी नहीं बचे कोडों की मार से
बलदेव। बलदेव के विश्व प्रसिद्ध हुरंगा को देखने के लिए बाहर से आए श्रद्धालु कोडों की मार खाने के लिए मंदिर परिसर की छत से हुरंगा प्रांगण में आने को आतुर हो रहे थे। तो हुरंगे में आये वीआईपी भी हुरियारिनों की कोडों की मार से बच नहीं पाये। जो कि मार से बचने के लिए हुरियारिनों की कोडों की मार से इधर उधर भागते दिखाई दिए।  

हिचकोले खाते हुए आए श्रद्धालुु व वीआईपी
बलदेव। महावन बलदेव रोड को जिला प्रशासन व शासन में होली को मद्देनजर रखते हुए भी अभी तक रोड का निर्माण कराया गया। इससे हुरंगा को देखने के लिये बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं को काफी परेशानी का सामना करना पडा। यही नहीं बलदेव के हुरंगा को देखने के लिए सपरिवार वाआईपी भी हिचकोले खाते हुए इस रोड से गुजरे।  

admin

Recent Posts

Chandigarh News : पंजाब के राज्यपाल ने प्रमुख खेल पर चर्चा करने के लिए केंद्रीय खेल मंत्री से की मुलाकात।

(Chandigarh News) चंडीगढ़। पंजाब के राज्यपाल और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ के प्रशासक गुलाब चंद…

4 hours ago

Chandigarh News : श्री हनुमंत धाम में अयोध्या में भगवान राम की वार्षिक प्राण प्रतिष्ठा के उपलक्ष में तीन दिवसीय समारोह शुरू

(Chandigarh News) चंडीगढ़ । सोमवार को श्री हनुमंत धाम, सेक्टर 40-बी में महिला सुंदरकांड सभा…

4 hours ago

Chandigarh News : स्वस्तिक विहार में बारिश के पानी की निकासी का पाइप डालने का काम शुरू

कॉलोनी में बने होटल तथा ट्रांसपोर्टर द्वारा सड़क पर खड़ी की गई गाड़ियां नहीं हटाई…

4 hours ago

Chandigarh News : शिवसेना हिंद की विशेष बैठक का आयोजन ढकोली में किया गया

बैठक की अध्यक्षता शिवसेना हिंद के राष्ट्रीय महासचिव दीपांशु सूद ने की (Chandigarh News) मेजर…

5 hours ago

Rewari News : सडक़ हादसों से बचने के लिए यातायात नियमों का पालन जरुरी

टै्रफिक पुलिस ने रोडवेज के प्रशिक्षु चालकों को दी यातायात नियमों की जानकारी (Rewari News)…

5 hours ago