अंबाला। निर्धारित समय से एक साल पूर्व हुए 1971 के लोकसभा चुनाव ने निश्चित तौर पर कांग्रेस को मजबूती प्रदान की। इंदिरा गांधी भी सशक्त राजनेता के रूप में उभरीं। पर इसी मजबूती ने इंदिरा गांधी के पराभव की पटकथा भी लिख दी थी। इंदिरा के ऊपर आरोप लगे कि वह हमेशा चाटुकारों से घिरी रहती हैं। कांग्रेस के कई दिग्गजों ने इंदिरा को सावधान भी किया, लेकिन इंदिरा पूर्ण बहुमत के साथ सरकार में थीं। इंदिरा के पराभव के सबसे बड़े साक्षी बने समाजवादी नेता राजनारायण।
-1971 के चुनाव में केंद्र सरकार पर आरोप लगा कि चुनावी मशिनरी का दुरुपयोग किया गया है।
-इंदिरा गांधी पर आरोप लगे कि उन्होंने इस चुनाव में गलत तरीके से वोट बटोरा और अपनी जीत सुनिश्चित की।
-दरअसल इंदिरा गांधी ने 1971 का चुनाव उत्तरप्रदेश की रायबरेली सीट से लड़ा था।
-रायबरेली में इंदिरा का मुकाबला बड़े समाजवादी नेता राजनारायण से था।
-इंदिरा ने राजनारायण को मतों के भारी अंतर से हराया, लेकिन यही जीत आगे चलकर उनके राजनीतिक पतन का कारण भी बनी।
-राजनारायण ने इंदिरा गांधी के निर्वाचन की वैधता को इलाहबाद हाईकोर्ट में चुनौती दे दी। उनका आरोप था कि इंदिरा गांधी ने चुनाव जीतने के लिए सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया।
-कोर्ट ने राजनारायण के आरोपों को सही पाया और इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध करार देते हुए उन्हें पांच वर्ष के लिए कोई भी चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य करार दे दिया।
-राजनारायण की यह जीत कोई साधारण जीत नहीं थी। इस जीत ने इंदिरा गांधी सहित कांग्रेस में खलबली मचा दी थी।
-उसी दौरान जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में बिहार से शुरू हुआ आंदोलन भी तेज हो गया था।
-विपक्षी दलों ने भी इंदिरा गांधी पर इस्तीफे के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया था।
-इंदिरा गांधी ने इलाहबाद हाई कोर्ट के फैसले को मानने के बजाय उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी और विपक्षी दलों पर अपनी सरकार को अस्थिर करने और देश में अराजकता फैलाने का आरोप लगाते हुए देश में आपातकाल लगा दिया।
-इस सबकी परिणति 1977 के आम चुनाव में इंदिरा गांधी और कांग्रेस के ऐतिहासिक पराभव के रूप में हुई।