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Improve health with Corona lessons: कोरोना के सबक से सुधारें सेहत

कोरोना क्या आया, जनता के साथ सबसे ज्यादा परेशान नेता हो गए। वही नेता, जिन्हें हमने अपना भाग्यविधाता मानकर सत्ता से लेकर सेहत तक की चाभी सौंप रखी है। अब जब कोरोना जैसी चुनौती आयी, तो समझ में आ रहा है कि हम कितने तैयार हैं? जिन नेताओं को हमने अपनी किस्मत सौंप रखी है, आजादी के बाद से वे सिर्फ अपनी किस्मत संवारते रहे। देश को स्वास्थ्य सेवाओं के लिए मजबूती से तैयार ही नहीं किया गया। देश में तो कोरोना जैसी बीमारी से निपटने के लिए उपयुक्त अस्पताल ही नहीं हैं। डॉक्टर तो वैसे भी जरूरत से काफी कम हैं। अब जब कोरोना का संकट आ ही गया है, हमें इससे सबक लेना चाहिए। कोरोना के सबक से देश के स्वास्थ्य तंत्र की सेहत सुधारने की जरूरी पहल होनी चाहिए, ताकि हम कभी भी, किसी तरह की स्वास्थ्य संबंधी आपदा से निपटने के लिए तैयार हो सकें।
कोरोना की भारत में दस्तक तमाम चुनौतियों और सच्चाइयों के खुलासे की दस्तक भी है। भारत से पहले जब चीन में कोराना का हाहाकार मचा था, तो चीन ने एक सप्ताह में 12 हजार शैय्या का अस्पताल बनाने की चुनौती को स्वीकार किया और ऐसा कर दिखाया। अब सवाल उठ रहा है कि क्या भारत ऐसी कोई चुनौती स्वीकार करने की स्थिति में है? इस चुनौती पर चर्चा तक करने से पहले हमें भारत की स्वास्थ्य स्थितियों के वास्तविक स्वरूप पर चर्चा कर लेनी चाहिए। एक देश के रूप में भारत स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने के मामले में खासा फिसड्डी देश है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हुए शोध में 195 देशों के बीच स्वास्थ्य देखभाल, गुणवत्ता व पहुंच के मामले में भारत 145वें स्थान पर है। हालात ये है कि इस मामले में हम अपने पड़ोसी देशों चीन, बांग्लादेश, भूटान व श्रीलंका आदि से भी पीछे हैं। आम आदमी तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाने में विफलता के साथ-साथ चिकित्सकों की उपलब्धता के मामले में भी भारत का हाल बेहाल है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के मुताबिक एक हजार आबादी पर औसतन एक चिकित्सक होना जरूरी है किन्तु भारत में ऐसा नहीं है। यहां पूरे देश का औसत लिया जाए तो 1,445 आबादी पर एक चिकित्सक ही उपलब्ध है। अलग-अलग राज्यों की बात करें तो हरियाणा जैसे राज्य की स्थिति बेहद खराब सामने आती है। हरियाणा में एक डॉक्टर पर 6,287 लोगों की जिम्मेदारी है। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश का हाल भी कुछ अच्छा नहीं है। यहां 3,692 आबादी के हिस्से एक डॉक्टर की उपलब्धता आती है। देश की राजधानी होने के बावजूद दिल्ली तक विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों पर खरी नहीं उतरती और यहां एक डॉक्टर के सहारे 1,252 लोग हैं। मिजोरम व नागालैंड में तो 20 हजार से अधिक आबादी के हिस्से एक डॉक्टर की उपलब्धता है। ऐसे में यहां इलाज कितना दुष्कर होगा, यह स्वयं ही समझा जा सकता है। दुखद पहलू यह है कि तमाम दावों के बावजूद भारत में इस मसले पर कभी सकारात्मक ढंग से विचार ही नहीं किया गया।
कोरोना संकट के बाद हम सबके लिए न्यूनतम स्वास्थ्य प्रोटोकाल पर फोकस करना जरूरी हो जाता है। जिस तरह इस समय सभी नेता जनता को उनके दायित्व याद दिला रहे हैं, उसी समय वे सब दायित्व भूलते भी नजर आ रहे हैं। राजनेताओं की गंभीरता का पता उत्तर प्रदेश की एक घटना से भी साफ चल जाता है। जिस समय पूरा देश कोराना संकट से जूझ रहा है, प्रधानमंत्री तक दूरियां बनाने की बात कर रहे हैं, उत्तर प्रदेश में तमाम राजनेता एक बॉलीवुड गायिका से नजदीकियां बनाते देखे गए। खास बात ये है कि ऐसा करने वालों में उत्तर प्रदेश के सिर्फ मौजूदा स्वास्थ्य मंत्री ही नहीं, पूर्व स्वास्थ्य मंत्री तक शामिल थे। इसी तरह मध्य प्रदेश में कोरोना को ठेंगा दिखाते हुए जिस तरह तमाम बैठकें हुईं और सरकार तक बन गयी, यह भी राजनेताओं की गंभीरता का लिटमस टेस्ट ही है। कोरोना के शुरुआती दौर में जिस तरह से इसको मोहरा बनाया गया, यह भी बस नेता ही कर सकते हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने भाषणों में कोरोना को लेकर कटाक्ष किये थे, वहीं मध्यप्रदेश में कोरोना की आड़ में सत्ता संधान की कोशिशें हुईं, यह किसी से छिपा नहीं है। अब जबकि यह स्पष्ट हो चुका है कि सघन चिकित्सा कक्ष से लेकर एक साथ लाखों लोगों के उपचार तक के लिए हम पूरी तरह तैयार तक नहीं है, हमें आपसी मतभेद भुलाकर देश को स्वास्थ्य सेवाओं में श्रेष्ठतम स्तर तक पहुंचाने की पहल करनी होगी। जिस तरह हमने पोलियो व स्मालपॉक्स (बड़ी माता) जैसी बीमारियों से संगठित रूप से मुकाबला किया, उसी तरह हमें कोरोना जैसी बीमारी से निपटना होगा। इसके लिए जनता, चिकित्सकों के साथ सरकारों को भी एक साथ गंभीरता दिखानी होगी। कोरोना हमें हमारी तैयारियों का आंकलन करने का अवसर भी दे रहा है, जिसके हिसाब से हमें आगे की कार्ययोजना बनानी होगी। फिलहाल हमारी पहली लड़ाई कोरोना से जूझने की है, जिसके लिए हर किसी को घर के भीतर रुकने की जिद करनी होगी। इस जिद से ही हम यह तात्कालिक लड़ाई जीत सकेंगे।

-डॉ.संजीव मिश्र

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