हम सब जानते हैं कि भारतवर्ष आज युवाओं के देश के रूप में जाना जाता है क्योंकि हमारी आबादी का बड़ा हिस्सा युवाओं का है। युवा वर्ग आज न केवल बहुत मेहनती और कल्पनाशील है बल्कि इनका फोकस भी बहुत स्पष्ट है और इनमें उच्चशृंखला के बजाए ठहराव ज्यादा है। इसके बावजूद क्या यह जानकर हमें दुख नहीं होता कि हमारा देश बीमार लोगों का देश है।
हम भारतीय अकल्पनीय रूप से स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं। भक्ति साधना के अतिरिक्त योग और व्यायाम का देश होने के साथ-साथ हम प्राकृतिक चिकित्सा के भी ध्वजवाहक हैं फिर भी ऐसा क्यों है कि हमारे देश की अधिकांश आबादी बीमारों की है ? क्या आपको मालूम है कि चीन के बाद हमारे देश में मधुमेह, यानी डायाबिटीज से पीड़ित लोगों की संख्या विश्व भर में सर्वाधिक है? क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है ? जी हांए यह भयावना सच है कि हम युवाओं का देश होने के साथ-साथ बीमार लोगों का देश बन कर रह गये हैं। नशा और दुर्घटनाएं मिलकर जितने लोगों को असमय मृत्यु का ग्रास बना देते हैं उतने ही लोग अज्ञानतावश गलत खान-पान के कारण काल-कवलित हो जाते हैं। मैं जब सवेरे सैर के लिए निकलता हूं तो सैर करते हुए युवाओं को देखकर मन खुशी से भर जाता है लेकिन उनमें से बहुत से ऐसे हैं जो लंबे समय से सैर कर रहे हैं पर स्वस्थ नहीं हैं। खुद मैं भी अज्ञानता का शिकार रहा और अब कुछ – कुछ समझ में आने लगा है कि अपनी अज्ञानता के कारण मैंने अपने शरीर के साथ कितना अन्याय किया है। मुझे सदैव से गर्व था कि मैं शाकाहारी हूं, नशा नहीं करता, मेहनती हूं और हमारे घर का वातावरण सात्विक है।
सन् 2003 में मैं उच्च रक्तचाप से पीड़ित पाया गया और तब से लगातार मैं हर रोज दवाई ले रहा था। हमारा व्यवसाय ऐसा है कि मार्च का महीना साल का सर्वाधिक व्यस्त महीना होता है। लेकिन इस वर्ष मार्च में मेरी तबीयत लगातार खराब रहने लगी। सिर भारी हो जाता था, शरीर में थकावट रहती थी, पिंडलियां दर्द लगातार करती थीं, वगैरह – वगैरह। अपने डाक्टर की सलाह पर जब खून की जांच करवाई तो पता चला कि मेरा कलेस्ट्रोल गड़बड़ था, यूरिक एसिड बढ़ा हुआ था और मैं डायबिटिक हो जाने के मुहाने पर था। ब्लड प्रेशर का मरीज तो मैं था ही। यह मानो वैसा ही अनुभव था जैसा न्यूटन के सिर पर सेब गिरने पर हुआ था। मैं मानो नींद से जाग गया। मुझे महसूस हो गया कि अगर मैंने अब सिर्फ अपने स्वास्थ्य को अपनी पहली प्राथमिकता नहीं बनाया तो मैं शेष सारी उम्र दवाइयां निगलता रहूंगा। मैंने सैर शुरू की और अपने डाक्टर की सलाह पर खान – पान में सुधार किया। सैर करते समय अपने पुराने मित्र अमित शर्मा से मुलाकात हुई। अमित शर्मा सन् 2017 में 121 किलो के थे, आज उनका वजन 68 किलो है। अमित शर्मा के संसर्ग ने मुझे खान-पान पर और शोध की इच्छा बलवती की और मैंने स्वतंत्र रूप से भी इस पर काम करना शुरू किया। आज मैं न केवल दवा मुक्त स्वस्थ जीवन जी रहा हूं बल्कि खान- पान के प्रति जागरूकता पैदा करने के अभियान में भी जुटा हूं। यह खुशी की बात है कि केंद्र सरकार ने देश में व्याप्त स्वास्थ्य की समस्या का संज्ञान लेते हुए फिट इंडिया अभियान की शुरूआत की है और केंद्रीय खेल मंत्री किरन रिजजू की अध्यक्षता में 28 सदस्यों की समिति का गठन किया है जो इस अभियान की देखरेख करेगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस पहल से देश में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का नया दौर आयेगा और स्वच्छ भारत अभियान की ही तरह यह जनमानस की चर्चा का विषय बनेगा। समस्या यह है कि हम स्वास्थ्य को समग्रता में नहीं देखते। हम में से ज्यादातर लोग कसरत को सेहत की कुंजी मानते हैं। व्यायाम और खान-पान के नाम पर हम बड़ी भ्रांतियों के शिकार हैं। खेद का विषय है कि अधिकांश नामचीन डाक्टरों, डाइटीशियनों और स्लिमिंग सेंटरों ने स्वास्थ्य को लेकर अज्ञानता को और बढ़ावा दिया है तथा लोगों का शोषण किया है। मैं जब बाजार जाता हूं तो जगह-जगह मुझे ऐसे पोस्टर लगे मिलते हैं जिन पर लिखा होता है… अपने बॉस खुद बनो, समय का बंधन नहीं, कोई सेल नहीं, कोई कागजी तामझाम नहीं, पच्चीस हजार रुपए महीना तक कमाओ। किसी जमाने में भारत में ऐसे लोगों की भी बड़ी शोहरत थी जो तीन महीने में आपका धन दुगना करने की गारंटी देते थे।
कोई व्यायाम नहीं, कोई दवाई नहीं, कोई डायटिंग नहीं, वजन घटाओ, गारंटी से जैसे विज्ञापनों से प्रभावित होकर अपने स्वास्थ्य के मामले में भी हम ऐसे ही सपनों का शिकार बन रहे हैं। याद रखिए, स्वास्थ्य और खान-पान के मामले में एक ही साइज सबको फिट आये, ऐसा संभव नहीं है। आपकी व्यक्तिगत आवश्यकताएं, आपकी फिटनेस का स्तर, आपके व्यायाम की रुटीन, आपका व्यवसाय, दिन भर की व्यस्तताएं, आपके शहर की जलवायु और भोजन के मामले में आपकी पसंद को ध्यान में रखे बिना डाइट और एक्सरसाइज की सही सलाह देना संभव नहीं है। फिर भी कुछ मोटे-मोटे नियमों से शुरूआत की जा सकती है, जैसे, भोजन में सलाद की मात्रा को दुगुना कर देना, दाल और सब्जी की मात्रा बढ़ाकर रोटी या चावल की मात्रा कम कर देना, हरी सब्जियां ज्यादा खाना, रात को सोने से तीन घंटे पहले रात का भोजन कर लेना और नियमित रूप से व्यायाम करना। खान-पान की समीक्षा में व्यक्ति के निवास स्थान की जलवायु का भी बहुत महत्व है। कोलकाता के निवासी किसी व्यक्ति का खान-पान, कानपुर में रहने वाले किसी व्यक्ति जैसा नहीं हो सकता, नहीं होना चाहिए। अगर कोई बंगला भाषी व्यक्ति कानपुर में बस जाए तो उसे अपने खान-पान के तरीके में भी बदलाव ले आना चाहिए। जलवायु के इस महत्व को समझे बिना कुछ भी खा लेना उचित नहीं है। खान-पान दरअसल गहरे शोध का विषय है। इसके बावजूद मैं फिर से जोर देकर कहना चाहूंगा कि केवल शुरूआत भी ठीक है, और इसके परिणाम भी अच्छे ही होंगे। पूर्णत: स्वस्थ रहने के लिए अपने खान-पान और व्यायाम का प्रबंधन एक अनिवार्य आवश्यकता है। इसके लिए किसी अच्छे डाक्टर या डाइटीशियन की सलाह लेना जरूरी है। उम्मीद करनी चाहिए कि फिट इंडिया अभियान से इस दिशा में हमारी जागरूकता बढ़ेगी और शीघ्र ही हम सिर्फ एक युवा देश ही नहीं बल्कि स्वस्थ युवाओं के देश के रूप में जाने जायेंगे।
पी.के. खुराना
लेखक वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और राजनीतिक रणनीतिकार हैं।