पाकिस्तान की दशा दिनोंदिन बिगड़ती जा रही है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान यूरोपीय संघ की संसद में सर्वसम्मति से पारित उस प्रस्ताव के बाद खुद को कठिनाई में महसूस कर रहे हैं, जिसमें यूरोपीय संघ ने पाकिस्तान के साथ तरजीही व्यापारिक समझौते की समीक्षा की बात कही है। यूरोपीय संघ ने पाकिस्तान में विवादित ईश निंदा कानून की वजह से यह प्रस्ताव पारित किया है। एक तरफ यूरोपीय संघ की तरजीह की सामान्यीकृत योजना यानी जीएसपी प्लस दर्जे की वजह से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को काफी फायदा हो रहा है, तो दूसरी ओर ईश निंदा कानून धार्मिक और राजनीतिक दृष्टि से एक बेहद संवेदनशील मुद्दा है। यूरोपीय संघ के प्रस्ताव में पाकिस्तान में ईशनिंदा मामलों की बढ़ोत्तरी और मानवाधिकारों के हनन पर चिंता जताई गई है। इसके अलावा इस प्रस्ताव में फ्रांस विरोधी भावनाओं पर भी चिंता जताई गई है जो फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों के उस बयान के बाद बढ़ी हैं कि वो इस्लामी चरमपंथ के खिलाफ सख्त कार्रवाई करेंगे।
यूरोपीय संसद के जर्मन सदस्य राइनहार्ड बुटीकोफर कहते हैं कि तात्कालिक मामला एक ईसाई जोड़े से संबंधित है जो ईश निंदा के आरोप में पाकिस्तानी जेल में पड़े हैं। डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा कि यह तो सिर्फ एक मामला है। ऐसे न जाने कितने और मामले हैं। यह सिर्फ ईसाई जोड़े से संबंधित नहीं है बल्कि तमाम दूसरे धर्मों के लोग भी इस कानून का दंश झेल रहे हैं। हमारा मानना है कि यह मध्यकालीन ईशनिंदा कानून जैसा है। बुटीकोफर कहते हैं कि यह एक स्पष्ट राजनीतिक संकेत है कि जीएसपी प्लस दर्जा इकतरफा नहीं है। बल्कि यह समझना चाहिए कि संबंधित देश को भी मानवाधिकार, पारदर्शिता, जिम्मेदारी और दूसरे मानदंडों का पालन करना चाहिए। जीएसपी प्लस दर्जा पाकिस्तान के लिए एक बड़ी आर्थिक मदद है क्योंकि इसके जरिए वह यूरोपीय संघ के साझीदार की हैसियत से अपना 66 फीसद निर्यात बिना किसी शुल्क के ईयू के देशों को कर सकता है। मुझे लगता है कि इसके लिए कुछ शर्तें लगाना बहुत जरूरी है।
पाकिस्तान के दक्षिणपंथी समूहों ने यूरोपीय संघ की संसद के इस प्रस्ताव की कड़ी आलोचना की है। साथ ही देश के ईशनिंदा कानून का जमकर बचाव किया है। डीडब्ल्यू की एक रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान में दक्षिणपंथियों का कहना है कि पश्चिमी देशों को इस्लाम या पैगंबर मोहम्मद का अपमान करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। पिछले दिनों प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी यूरोपीय संघ के इस प्रस्ताव पर चर्चा के लिए कैबिनेट की बैठक की। इस मुद्दे पर व्यवहारिकता दिखाने की बजाय, इमरान खान ने फैसला किया कि वो ईशनिंदा कानून पर किसी तरह का समझौता नहीं करेंगे। उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों ने भी इस बात पर जोर दिया कि ईशनिंदा कानून पर आंच नहीं आने देनी चाहिए। फिर भी, सरकार का कहना है कि वो मानवाधिकार से जुड़े दूसरे मुद्दों पर एक विधेयक ला सकती है।
आपको बता दें कि इस्लामी देश पाकिस्तान में ईश निंदा कानून एक बेहद संवेदनशील विषय है, जहां 97 फीसदी आबादी मुस्लिम है। ईश निंदा कानून के आरोपों को झेल रहे सैकड़ों लोग पाकिस्तान की जेलों में वर्षों से बंद हैं। इस्लाम या फिर पैगंबर मुहम्मद के अपमान के आरोप में कई लोगों को भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला है या फिर हत्या कर दी गई है। साल 1947 में पाकिस्तान को यह कानून ब्रिटिश शासकों से विरासत में मिला था जिन्होंने धार्मिक भावनाओं को आहत करने और किसी की धार्मिक भावनाओं का जानबूझकर अपमान करने को आपराधिक कृत्य बना दिया था। बाद के दशकों में, इस्लामिक सैन्य तानाशाह जनरल जिया उल हक ने साल 1977 और 1988 के दौरान इस कानून का विस्तार करते हुए पवित्र कुरान का अपमान करने के जुर्म में उम्रकैद की सजा निर्धारित कर दी। उसके बाद पैगंबर मुहम्मद का अपमान करने के जुर्म में मौत की सजा तय कर दी गई।
अब पाकिस्तान की स्थिति और बिगड़ती जा रही है। डीडब्ल्यू की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार यूरोपीय संघ की चिंताओं को दूर करने को लेकर जहां बहुत उदासीन दिख रही है, वहीं पाकिस्तान का व्यापारी वर्ग जीएसपी प्लस दर्जे की समाप्ति की आशंका से चिंतित है। पाकिस्तान स्टॉक एक्सचेंज के डायरेक्टर और पाकिस्तान क्लॉथ मर्चेंट्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष अहमद चिनॉय कहते हैं कि यूरोपीय संघ के आरक्षण को नजरअंदाज करना देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकता है। डीडब्ल्यू से बातचीत में चिनॉय कहते हैं कि पाकिस्तानी उत्पादकों के पास कोई विकल्प नहीं रह जाएगा। इसलिए उन्हें अपने टेक्सटाइल और रेडीमेड कपड़े जैसे उत्पादों को सस्ते दामों पर बेचना पड़ेगा। इसका मतलब यह हुआ कि उन्हें अपने कर्मचारियों के वेतन में भी कटौती करनी होगी और मजदूरी भी सस्ती हो जाएगी। सरकार को भावनाओं में बहने की बजाय इस मुद्दे के समाधान की कोशिश करनी चाहिए।
कराची चैंबर आॅफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के पूर्व अध्यक्ष कैसर अहमद शेख का मानना है कि जीएसपी प्लस दर्जे की वजह से पाकिस्तान को बहुत फायदा हुआ है। इस दर्जे के मिलने से पहले यूरोपियन यूनियन को हमारा निर्यात 6 अरब डॉलर का था। लेकिन तरजीही दर्जा मिलने के बाद निर्यात बढ़कर 8 अरब डॉलर का हो गया। अब यह दो अरब डॉलर हमारा दांव पर लगा हुआ है। कोविड महामारी के चलते पाकिस्तान में करीब एक करोड़ अस्सी लाख लोग अपनी नौकरी गंवा चुके हैं। अब जीएसपी प्लस दर्जे की समाप्ति से बेरोजगारी दर और बढ़ेगी। आपको बता दें कि 2009 में पंजाब के शेखपुरा जिले की रहने वाली आसिया बीबी मुस्लिम महिलाओं के साथ खेत में काम कर रही थी। इस दौरान उसने पानी पीने की कोशिश की। मुस्लिम महिलाएं इस पर नाराज हुईं, उन्होंने कहा कि आसिया बीबी मुसलमान नहीं हैं, लिहाजा वह पानी का गिलास नहीं छू सकती। इस बात पर तकरार शुरू हुई। बाद में मुस्लिम महिलाओं ने स्थानीय उलेमा से शिकायत करते हुए कहा कि आसिया बीबी ने पैंगबर मोहम्मद का अपमान किया।
उधर, श्रम अधिकारों से जुड़े लोगों का कहना है कि जीएसपी प्लस दर्जे की वजह से पाकिस्तान में 16 लाख से ज्यादा नौकरियां बढ़ी थीं और यदि इसे वापस ले लिया जाता है तो करीब दस लाख लोगों को नौकरियों से हाथ धोना पड़ेगा। पूर्व विधायक और अर्थशास्त्री आइशा गौस पाशा कहती हैं कि यदि यूरोपीय संघ पाकिस्तान के जीएसपी प्लस दर्जे को समाप्त कर देता है तो देश बहुत ही चुनौतीपूर्ण स्थिति में आ जाएगा। यूं कहें कि जीएसपी प्लस की वजह से पाकिस्तान की स्थिति और बिगड़ने के आसार हैं। देखना यह है कि आगे होता क्या है?