अगर किसी को आपकी मीठी बातें और मुस्कुराता चेहरा भी प्रभावित न कर पाए

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ब्रह्म कुमारीज शिवानी

महाभारत में अहिंसा एक मनुष्य की सबसे बड़ी जिम्मेदारी मानी गई है। अहिंसा का संकल्प लेते ही ये आपकी बातों और व्यवहार में भी झलकने लगता है। एक अहिंसक व्यक्ति हिंसा के हर हालात से दूर रहता है, फिर चाहे वह भावनात्मक हो, शाब्दिक या शारीरिक हिंसा। अन्य लोगों की तुलना में ऐसा इंसान व्यवहार में ज्यादा मिलनसार, विनम्र, सहिष्णु और विचारशील होता है। ऐसे लोग किसी को दुख नहीं पहुंचाते या इनसे किसी को कोई वैर-भाव नहीं होता। लेकिन एक इंसान जो इसपर विश्वास नहीं करता, हो सकता है कि कभी वो अपने बचाव के लिए ही बंदूक रखता हो लेकिन ये उसको हिंसक व्यवहार के लिए उकसाता है। ऐसा व्यवहार उसे समाज से अलग करता है और कोई भी उससे जुड़ नहीं पाता। ऐसे लोग अक्सर आपको अहिंसक व्यवहार पर बहस करते मिल जाएंगे कि अच्छे लोगों के साथ अच्छा ही हो ये जरूरी नहीं है। यहां सूक्ष्म बल कार्य करते हैं। जिसने अपने मन के हिंसक भावों, सोच और शब्दों से खुद को अलग कर लिया, वास्तव में ऐसे ही लोग शांत होते हैं।  उनके इस शांत भाव से निकली सूक्ष्म तरंगें उनके आसपास के वातावरण और लोगों के व्यवहार को भी प्रभावित करती हैं। यही कारण है कि ऐसे लोगों के आसपास के माहौल में भी शांति होती है और लोग भी शांत व्यवहार के होते हैं। पूजा स्थल इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं, जो भले ही कितनी भी व्यस्त और भीड़भाड़ भरी जगह में हों, लेकिन आपको वहां शांति महसूस होती है और सुकून का एहसास होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि वहां लोग सकारात्मक सोच, शांत विचार और पावन भावना के साथ जाते हैं। मनुष्य की सोच के अनुसार ही उसके आसपास के वातावरण का निर्माण भी होता है।

यही कारण है कि जहां परेशान, क्रोधी, क्षुब्ध या निराश प्रकृति के लोग होते हैं, वहां का वातावरण भी कुछ इसी प्रकार का होता है। ये सूक्ष्म किरणें ही हैं जो किसी से बात करते हुए हमारे प्रति सामने वाले के व्यवहार को प्रभावित करती हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि क्यों कई बार आपकी मीठी बातें और मुस्कुराता हुआ चेहरा भी उस इंसान को प्रभावित कर पाने में नाकाम होता है जिसके प्रति वास्तव में आपके मन में अच्छे विचार नहीं होते? ऐसा इसीलिए क्योंकि आपके मन के नकारात्मक भाव उन तक संचरित हो रहे होते हैं। दूसरी तरफ एक शांत चित्त मनुष्य के आसपास हमेशा शांति महसूस होती है। उनके विरोधी भी उनके प्रंशसक होते हैं। दुनिया के हर प्राणी और यहां तक कि प्रकृति पर भी यह नियम लागू होता है। बुरी प्रवृत्ति के लोग भी ऐसे लोगों की संगति में अपनी बुराई छोड़ देते हैं, यहां तक कि ऐसे लोगों के आसपास रहने पर जंगली जानवर तक शांत हो जाते हैं और प्रकृति भी उनकी सहयोगी बन जाती है। यहां क्रिया और प्रतिक्रिया का नियम या यूं कहें कि कर्म का नियम काम करता है। कई बार आपको अपने इसी जन्म या पूर्व जन्म के कर्मों के परिणाम स्वरूप हिंसा का शिकार होना पड़ता है। लेकिन ये हिंसक प्रतिक्रियाएं आपकी कार्मिक आसक्ति का प्रतीक हैं। अगर हम एक हिंसक वृत्ति का भी शांतिपूर्वक सामना करें, तो हमारे कर्मों का बोझ कुछ कम हो सकता है और ये हिंसा भी कम हो जाएगी। शांति की सूक्ष्म ऊर्जा बड़े स्तर पर समाज और देशों की स्थिति और मनोवृत्ति को भी प्रभावित करती है।

यहां तक कि यह अंतरराष्ट्रीय संबंधों को भी प्रभावित करता है। जो भी देश अपने नागरिकों से समान व्यवहार करता है और दूसरे देशों के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता, वह अक्सर युद्ध जैसी पस्थितियों से दूर रहता है। स्विट्जरलैंड इसका उदाहरण है जो 1815 के बाद किसी भी अंतरराष्ट्रीय युद्ध में शामिल नहीं हुआ है। कई लोग सैन्य शक्तियों को देश का गौरव और दुनिया में अपनी शक्ति मानकर चलते हैं। जबकि वस्तुस्थिति ऐसी होती नहीं। इससे कभी भी किसी देश का ताल्लुक नहीं होता। किसी भी देश की सफलता उसके नागरिक हालातों के आधार पर ही तय किए जाते हैं जिनमें शांति, स्थिरता और सुरक्षा मुख्य मानक होते हैं, न कि देशों द्वारा जीते गए युद्ध के आधार पर यह तय होता है। दूसरे देशों पर हावी होने या युद्ध की मंशा रखकर चलने वाले देश पर हमले की आशंका भी हमेशा बनी रहती है और इसके नागरिक कभी भी शांतिपूर्वक नहीं रह पाते। ये देश भूल जाते हैं कि मित्रता और अहिंसा सुरक्षित रहने के सबसे आसान और कारगर तरीके हैं। महात्मा गांधी ने कहा है कि मानव जाति को सुरक्षित और शक्तिशाली बनाने और बनाए रखने में किसी भी हिंसक हथियार की तुलना में अहिंसा कहीं ज्यादा कारगर है। अगर हर किसी ने अहिंसा के इस महत्व और इसकी शक्ति को समझ लिया तो टकराव और आपदा की स्थितियां खत्म हो जाएंगी।