-80 किलो का निज्जू कैसे बना नीरज चोपड़ा
– सपनों, सफलता और अपने सफर के बारे में विस्तार से बात की गोल्डन ब्वॉय ने
गुरुदास कैथवास, नई दिल्ली/पानीपत:
नीरज चोपड़ा ने ओलंपिक में इतिहास रच दिया। उन्होंने ओलिंपिक के भाला फेंक इवेंट में गोल्ड मेडल हासिल किया। गौरव के इन क्षणों में भी वह एक ऐसे ही ऐथलीट को याद कर रहे थे जिनका सपना उनके जैसे ही पोडियम पर खड़ा हो राष्ट्रगान की धुन सुनना था। यह एक महान ऐथलीट की पहचान है। वह अब भी अपनी उपलब्धियों को सेलिब्रेट कर रहे हैं। लेकिन उनकी सादगी आपको हैरान करती है। वह अपनी कामयाबियों, अपने सपनों और अपने डर और अपने सफर के बारे में बात करते हैं। इस बारे में एक अंग्रेजी अखबार ने उनसे खास बात की।
भारत का पहला ट्रैक ऐंड फील्ड मेडलिस्ट बनकर कैसा लग रहा है?
मैं भारत के लिए ओलंपिक में पहला ट्रैक ऐंड फील्ड मेडल जीतकर बहुत खुश हूं। और वह भी गोल्ड। यह भारतीय खेल में नए दौर की शुरूआत है। मैं बता नहीं सकता मैं कैसा महसूस कर रहा हूं। मेरे लिए वह गर्व का अवसर था जब मैं गले में गोल्ड मेडल पहनकर खड़ा था और स्टेडियम में तिरंगा लहराया जा रहा था और राष्ट्रगान गाया जा रहा था। साल 2019 में चोट के चलते (तब उनकी दाईं कोहनी में चोट लग गई थी) और इसके बाद 2020 में कोरोना वायरस के चलते जो वक्त खराब हुआ मुझे लगता है कि गोल्ड मेडल ने उन सब बुरी यादों को भुलाने का काम किया है। इससे मुझे काफी राहत मिली है। हर ऐथलीट अपने जीवन में ओलंपिक मेडल जीतने का सपना देखता है। और मैंने यहां सोना जीत लिया। इससे ज्यादा भला मैं और क्या मांग सकता हूं? मैं काफी आशावादी हूं और किस्मत में काफी यकीन रखता हूं। तो मुझे लगता है कि अगर तमाम चुनौतियों, जिसमें मेरी चोट और कोविड के चलते जो वक्त खराब हुआ वह मेरे लिए अच्छा ही साबित हुआ।
फाइनल में हर थ्रो के बाद आपके दिमाग में क्या चल रहा था? कब आपको लगा कि आप गोल्ड जीत सकते हैं?
जब फाइनल चल रहा था तो मेरे दिमाग में सिर्फ यही चल रहा था कि मुझे अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन देना होगा। मैं यह सुनिश्चित करना चाहता था कि मेरा बॉडी मूवमेंट मेरे थ्रो के साथ तारतम्यता में रहे। जैवलिन थ्रो काफी तकनीकी गेम है। यह अपने मस्तिष्क को इस्तेमाल करने और शांत रखने की होगी। मेरे दिमाग में यह नहीं था कि मुझे नेशनल रेकॉर्ड तोड़ना है या अपना पर्सनल बेस्ट हासिल करना है। ओलंपिक के गोल्ड मेडल की अपनी चमक और कीमत होती है। जब बाकी प्रतिभागी अपने आखिरी प्रयास में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन नहीं कर पाए, तब मुझे अहसास हुआ कि मैं गोल्ड मेडल जीत चुका हूं।
आपने अपना पदक मिल्खा सिंह जी को समर्पित किया, इसके पीछे आपका क्या विचार था?
मैंने उनके ऐथलेटिक्स करियर के कई वीडियो देखे। वह ट्रैक ऐंड फील्ड में किसी भारतीय को ओलंपिक पोडियम पर देखना चाहते थे। वह रोम में 1960 में पदक से बहुत करीबी अंतर से चूक गए थे। तो वह हमेशा से ओलंपिक में किसी भारतीय को मेडल जीतते देखना चाहते थे। जब मैंने गोल्ड जीता और राष्ट्रगान बज रहा था तो उनके शब्द मेरे दिमाग में आने लगे और मैं अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाया। दुख की बात है कि यह दिन देखने के लिए वह हमारे साथ नहीं हैं। लेकिन पोडियम पर खड़े होकर मैं उनके बारे में ही सोच रहा था। और इसके बाद मैंने अपना पदक उन्हें समर्पित करने का फैसला किया। पीटी ऊषा मैम ने भी अपने करियर के दौरान सपना देखा था तो मैंने उनकी भी इच्छा पूरी की।
पोडियम पर खड़े होना, जन गण मन सुनना और राष्ट्रध्वज को फहराते देखना, आपको कैसा लग रहा था? आपके दिमाग में क्या चल रहा था?
ऐसा लग रहा था कि आपकी सारी कड़ी मेहनत और त्याग का फल मिल गया है। उन भावनाओं को को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। उन्हें सिर्फ महसूस किया जा सकता है। मैं जानता हूं कि यह कैसा अहसास है।
अब नीरज चोपड़ा ऐथलीट का अगला लक्ष्य क्या है?
मैं घर लौटकर अपनी जीत का जश्न मनाऊंगा। मां के हाथ का बना चूरमा खाऊंगा। मैं जरूरी ब्रेक लूंगा और अच्छी तरह सोऊंगा। इसके बाद मैं अगले साल होने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स, एशियन गेम्स और वर्ल्ड चैंपियनशिप की तैयारी करूंगा।
आपको सोशल मीडिया पर काफी पसंद किया जा रहा है। आप इसे कैसे देखते हैं?
हां, मैं देख सकता हूं कि ओलंपिक गोल्ड के बाद सोशल मीडियो पर मेरे फॉलोअर्स काफी बढ़ गए हैं। अच्छी बात है कि अब लोग मुझे जानते हैं। उन्हें मुझमें एक स्टार नजर आता है। लेकिन मैं अपने खेल पर ध्यान देता हूं। सोशल मीडिया मैं खाली वक्त में देखता हूं, यह सिर्फ मनोरंजन की चीज है।
फाइनल से पहले क्लॉस ने आपको क्या कहा था?
क्लॉस ने मुझे कहा, क्वॉलिफिकेशन की तरह यहां भी अपने पहले ही प्रयास में सर्वश्रेष्ठ भाला फेंको। किसी भी चीज को उम्मीद के भरोसे मत छोड़ो। दूसरों को कोई मौका मत दो। मैंने फाइनल से पहले अपने चाचा भीम चोपड़ा और बचपन के कोच जयवीर से बात की। उन्होंने भी मुझे यही बात कही। उन्हें लग रहा था कि शनिवार को कुछ अच्छा होने वाला है। और यही हुआ भी।
लोग कह रहे हैं कि आपको अपनी बायोपिक में अपना ही किरदार निभाना चाहिए! इस पर आपका क्या कहना है?
फिलहाल, मैं अपने खेल पर ध्यान दे रहा हूं। बायोपिक इंतजार कर सकती है। जब मैं रिटायर होऊंगा तब मुझ पर बायोपिक बन सकती है। मैं और उपलब्धियां हासिल करना चाहता हूं। भारत के लिए और पदक जीतना चाहता हूं। मैं ऐथलीट के तौर पर और सम्मान हासिल करना चाहता हूं ताकि जब मैं खेल को अलविदा कहूं मेरे साथ और कहानियां जुड़ी हों।