Howdy Modi and Government’s Diplomatic Tour: हाउडी मोदी और सरकार की कूटनीतिक यात्रा

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ह्यूस्टन का हाउडी मोदी उत्सव कई कारणों से महत्वपूर्ण और चर्चित रहा। अमेरिका में हमारे प्रधानमंत्री का यह पहला जलसा नहीं था। बल्कि 2014 में सत्तारूढ़ होते ही प्रधानमंत्री जब अमेरिका की यात्रा पर गए थे तो वहां भी मैडिसन स्क्वायर में एक रंगारंग कार्यक्रम हुआ था जो अप्रवासी भारतीयों ने आयोजित किया था। 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के पीछे यूपीए 2 के अंतिम दिनों में जो कथित आर्थिक घोटाले हुए और उन्हें लेकर जो जनरोष पनपा, उसी की प्रतिक्रिया में अन्ना हजारे का आंदोलन हुआ था। अन्ना हजारे के आंदोलन की लोकप्रियता भी 2014 में एनडीए के वापसी का एक कारण बनी। 2014 में नयी सरकार के आने बाद लोगों की अपेक्षाएं इस सरकार से बहुत अधिक थीं। यह अपेक्षाएं यूपीए 2 के अंतिम कुछ वर्षों के गम्भीर वित्तीय गड़बड़ियों के कारण भी थी। उस समय यह छवि बनायी गयी कि देश की आर्थिक स्थिति बहुत ही खराब है और विदेशों में भारत की प्रतिष्ठा बहुत ही गिरी हुयी है। अत: विदेशी निवेश को आमंत्रित और आकर्षित करने के लिये दुनियाभर में भारत की वैश्विक छवि को सुधारना होगा। इसी एजेंडे को सामने रख कर प्रधानमंत्री की विदेश यात्राओं का दौर शुरू हुआ। अमेरिका में मैडिसन स्क्वायर पर आप्रवासी भारतीय समाज द्वारा पीएम का स्वागत, अमेरिका में अपने प्रकार का पहला जलसा था। अब ह्यूस्टन का हाउडी मोदी समारोह इस कड़ी में अमेरिका का अब तक का नवीनतम जलसा बना।

पर ह्यूस्टन के हाउडी मोदी में कुछ घटनाएं ऐसी घटीं तो अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के स्थापित मान्यताओं से अलग हट कर थीं। ऐसा भी नही है कि कूटनीतिक परंपराएं रूढ़ होती हैं और वे जड़ की तरह सदैव एक जैसी ही बनी रहती हैं पर ह्यूस्टन में जो नयी परम्परा शुरू हुई वह कूटनीतिक मानदण्ड पर उचित है या नहीं यह तो कूटनीतिक विशेषज्ञ ही बता पाएंगे पर फिलहाल तो यह परंपरा अटपटी ही लग रही है। यह परम्परा है हमारे प्रधानमंत्री द्वारा अमेरिकी राष्ट्रपति के आसन्न चुनाव में उनके समर्थन में खुल कर बोलने की। हाउडी मोदी का समापन डोनाल्ड ट्रंप के पक्ष में इस नारे से हुआ कि अबकी बार ट्रंप सरकार। अचानक, यह समारोह एक चुनावी रैली में बदल गया। भारतीय प्रधानमंत्री के स्वागत समारोह के लिये आयोजित यह उत्सव एक विवादित चुनाव रैली के रूप में देखा जाने लगा। विदेश नीति का मूल सिद्धांत होता है दोनो देशों के सम्बंध देशों के अंदरूनी राजनीतिक समीकरणों से अप्रभावित रहते है। पर इस समारोह में यह परम्परा और मूल सिद्धांत भुला दिया गया। 2020 में अमेरिका में किसकी सरकार बनती है, डोनाल्ड ट्रंप दुबारा चुने जाते हैं या नही यह अमेरिका की अंदरूनी राजनीति का हिस्सा है। भारत को वहां की अंदरूनी राजनीति में दखल देने का न तो कोई औचित्य है और न ही कूटनीतिक मर्यादाओं के अनुरूप है। यह भी कहा जा रहा है कि भारत के हित अमेरिका से सध सकते हैं। यह सच भी है। आज एक ध्रुवीय हो चुकी दुनिया मे अमेरिका सबसे सशक्त और समर्थ देश है जो दुनिया के सारे कूटनीतिक समीकरणों को प्रभावित करता है। अमेरिका से यह नजदीकी अगर हमारे देश के हित मे होती है तो इस नजदीकी का स्वागत किया जाना चाहिए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की यह अमेरिका यात्रा कुछ बदली परिस्थितियों में हुयी थी। यह बदली परिस्थिति हमारे घरेलू मामले कश्मीर से जुडी है। संविधान में जम्मू कश्मीर राज्य को अनुच्छेद 370 के अंतर्गत विशेष दर्जा दिया गया था जो उसे आंशिक प्रतीकात्मक स्वायत्तता भी देता था। लेकिन यह विशेष दर्जा जम्मूकश्मीर राज्य को देश से अलग बिल्कुल नहीं करता था पर इस आंशिक स्वायत्तता जैसे प्राविधान का जम्मूकश्मीर राज्य की जनता पर कि, उनका भारत से अलग अस्तित्व है, की मानसिकता का एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी पड़ता था। हालांकि अनुच्छेद 370 के 90 % प्राविधान शिथिल हो गए थे और संविधान में घोषित यह अस्थायी धारा अब एक औपचारिकता बन कर रह गयी। यह प्राविधान 5 अगस्त 2019 को संसद से संशोधित कर दिया गया और जम्मूकश्मीर राज्य पुनर्गठन बिल 2019 के अनुसार यह राज्य लदाख, और जम्मूकश्मीर जैसे दो केंद्र शासित राज्यो में बंट गया। एक विशिष्ट और स्वायत्त समझा जाने वाले राज्य का अचानक केंद शासित राज्य में बन जाने से राज्य की जनता पर न केवल एक मनोवैज्ञानिक असर पड़ा है बल्कि इससे अलगाववादी तत्वो को कश्मीर की अवाम को भारत के विरुद्ध बरगलाने का भी अवसर मिला है। कश्मीर में इस बिल के विरोध में गंभीर प्रतिक्रिया की सम्भावना से सरकार ने सुरक्षा के व्यापक प्रबंध किए हैं। आज साठ दिन से कश्मीर में प्रतिबंध हैं और जो खबरें कुछ कुछ श्रोतों से आ रही हैं वह बहुत अच्छी नहीं हैं । पर अनुच्छेद 370 का हटाना, कश्मीर में एहतियातन सुरक्षा प्रबंध बढाना, राज्य को केंद शासित राज्यों में विभाजित करना, यह सब हमारा आंतरिक मामला है। कश्मीर की अवाम और उसके नेता तो इन सब पर सवाल उठा सकते हैं पर पाकिस्तान या चीन को इस पर कोई भी सवाल उठाने का अधिकार नहीं है। उनके द्वारा उठाया गया कोई भी सवाल हमारे अंदरूनी मामले में दखलंदाजी है और यह कूटनीतिक परम्पराओ के विपरीत है। पर पाकिस्तान, जब से अनुच्छेद 370 को शिथिल किया गया है तब से, बौखलाया हुआ है और समस्त कूटनीतिक मयार्दाओ के विपरीत जा कर वह इस मसले को विश्व के अन्य देशों और यूएनओ के अंतरराष्ट्रीय मंच पर लगातार उठा रहा है।

पाकिस्तान कश्मीर को अभी भी द्विराष्ट्रवाद के आईने से देख रहा है जबकि यह सवाल 26 अक्टूबर 1947 को राजा हरि सिंह द्वारा भारत मे कश्मीर के विलय के बाद ही हल हो गया था। कश्मीर के मुस्लिम बहुल होने के बावजूद पाकिस्तान में कश्मीर के न मिलने की खीज पाकिस्तान को आज भी है, और इसे ही पाकिस्तानी हुक्मरां अपना अधूरा एजेंडा कहते हैं। यही राग कश्मीर अभी संयुक्त राष्ट्र महासभा में इमरान खान ने छेड़ा है। संयुक्त राष्ट्र महासभा में हमारे प्रधानमंत्री नरेंद मोदी और पाकिस्तान के पीएम इमरान खान के भाषण हुए। यह अंतरराष्ट्रीय मंच द्विपक्षीय समस्याओं के हल के लिये नहीं बल्कि वैश्विक समस्याएं, आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग, बिभिन्न देशो में तनाव , पर्यावरण, वैश्विक शांति आदि के सन्दर्भ में विश्व भर के नेताओ के विचार विमर्श के लिये आयोजित होता है। हर प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति को कुछ समय अपनी बात कहने के लिये दिया जाता है। इस मंच पर हमारे पीएम और इमरान खान ने भी अपनी अपनी बात रखी। पर इमरान खान कश्मीर के एजेंडे से खुद को अलग नहीं कर पाए उनका पूरा भाषण ही इस्लाम, इस्लामोफोबिया, और कश्मीर में मानवाधिकार हनन के अपुष्ट आरोपों पर केंद्रित रहा। हमारे पीएम का भाषण इमरान खान के भाषण के पहले हुआ था अत: इमरान खान के भाषण में जो बातें उठायी गयीं थी उनका सटीक और सधा हुआ उत्तर हमारे विदेश मंत्रालय के अधिकारी ने दिया।

बहरहाल, एक बात ध्रुव सत्य के रूप में हमें स्वीकारनी होगी कि कश्मीर की समस्या धर्म या हिन्दू मुस्लिम समस्या नहीं है। पाकिस्तान इसी चश्मे से इसे देखेगा और वह 1947 से ही इस चश्मे से इस समस्या को देख रहा है और इसी आधार पर समाधान चाहता है। हमे अपने संविधान के मूल और हजारों साल से चली आ रही बहुलतावादी संस्कृति के ही अनुसार इसे देखना होगा अन्यथा अगर हमने पाकिस्तान की जाल में फंस कर कश्मीर को हिंदू मुस्लिम दृष्टिकोण से देखना शुरू किया तो यह भाव पाकिस्तान के हित मे ही जायेगा।
(लेखक सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी हैं)
यह लेखक के निजी विचार हैं।