संत राजिन्दर सिंह जी महाराज
इ स दुनिया में जब भी हम किसी के साथ व्यवहार करते हैं तो हमारी यही कोशिश होती है कि केवल हमारी अच्छी बातें ही उन्हें पता चलें। उस वक्त हम अपनी गलतियों को उनसे छुपाते हैं ताकि उन्हें हमारी किसी भी गलत बात का पता न लगे। इसी तरह जब भी हम नौकरी के लिए आवेदन देते हैं तभी भी हम संक्षिप्त विवरण में अपने अच्छे अनुभव और अपनी अच्छी आदतें मुख्य रूप से दर्शाते हैं। कई लोग ऐसे होते हैं जो अपनी सारी कमियों को छुपाते हैं और अपनी बड़ी-बड़ी उपलब्धियों को ही सामने रखते हैं। जब नियुक्ति करने वाले ऐसे बायो-डेटा को पढ़ते हैं तो उन्हें लगता है कि हम बहुत महान इंसान हैं। यह हम सब इसलिए करते हैं ताकि हमें अच्छी नौकरी मिले। इसी तरह जब भी लोग अपने काम या व्यापार के लिए ऋण लेने बैंक में जाते हैं तो वह उनसे अपने सबसे अच्छे कार्यों का जिक्र करते हैं और अपनी सारी अच्छी आर्थिक उपलब्धियों के बारे में बताते हैं। क्योंकि वे अपने आपको एक भरोसेमंद ग्राहक दिखाना चाहते हैं न कि एक आपत्तिजनक व्यक्ति। वे अपने व्यवसाय की सारी सफलताएं इसलिए लिखते हैं ताकि उन्हें आसानी से ऋण मिल सके।
ठीक ऐसे ही जब हम कॉलेज या फिर किसी व्यवसायिक स्कूल के लिए आवेदन करते हैं तब भी हम अपने सबसे अच्छे संदर्भ अपने भूतपूर्व शिक्षकों से इकट्ठे करते हैं ताकि कॉलेज में हम सबसे अच्छे और बुद्धिमान छात्र समझें जाएं। दुनियावी कामों में यह यह सब करना बहुत आम बात है लेकिन अगर हम आध्यात्मिकता की बात करें तो उस स्तर पर ऐसा करना नामुमकिन है क्योंकि हम अपने अंतर में बसी उस प्रभु-सत्ता से खुद को छुपा नहीं सकते। उनके सामने हमारी जिंदगी एक खुली किताब की तरह होती है। इसलिए पूरी ईमानदारी और सच्चाई के साथ हम अपनी कमियों की ओर देखें। यदि हम इस ओर ध्यान देकर उनमें सुधार लाने की कोशिश करेंगे तो हम देख ेंगे कि हम पहले से कम गलतियां करेंगे और धीरे-धीरे बेहतर होते चले जाएंगे। अंत में हम एक ऐसी स्थिति में पहुंच जाएंगे जब हमसे कोई गलती नहीं होगी और तभी हम रूहानियत के क्षेत्र में तरक्की कर सकते हैं। इसके विपरीत यदि हम अपनी की बजाय केवल अपनी उपलब्धियों की ओर ही देखेंगे तो हम अहंकार से भर जाएंगे, जिससे कि हम कभी भी बेहतर नहीं हो पाएंगे। हम संतों के जीवन की ओर देखते या पढ़ते हैं तो हम पाते हैं कि कैसे वे एक धार्मिक जीवन व्यतीत करते हैं? यदि हम उनके जीवन से स्वयं का मूल्यांकन करते हैं तो हम अपनी कमियों को देखेंगे और संतों-महापुरुषों की षिक्षा को अपनाएंगे और निश्चित रूप से जीवन के हर क्षेत्र में हम सफलता प्राप्त करेंगे। संतों द्वारा लिखित रचनाओं में हमें अपनी कमियां दूर करने और नैतिक गुणों को धारण करने के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण मिलता है। संतों द्वारा दी गई सलाह पर चलकर हम हर दिन पहले से बेहतर हो सकते हैं। उदाहरण के लिए यदि हमें किसी खाद्य पदार्थ से एलर्जी है और यदि हम बार-बार फिर वही खाद्य पदार्थ ग्रहण करेंगे तो हमारे शरीर पर उसकी प्रतिक्रिया जरूर होगी। क्या हम ऐसे इंसान को समझदार कहेंग े जो एलर्जी वाले खाद्य पदार्थों का सेवन कर खुद को बीमार कर रहा हो? नहीं, बल्कि उन्हें तो इस तरह के खाद्य पदार्थों से परहेज करना चाहिए। इसी तरह यदि हमारे कार्य किसी नैतिक गुणों को धारण करने से हमें बाधा उत्पन्न करके हमारी रूहानी तरक्की भी रोक रहे हैं तो ऐसे व्यवहार को हमें बदलना चाहिए। तो आईये! हम अपनी कमियों का प्रतिदिन निरीक्षण करें। हम पिता-परमेश्वर को किसी नौकरी के लिए आवेदन नहीं दे रहे हैं और न ही रूहानी विवरण लिखकर खुद को अच्छा दर्शा रहे हैं।
हम अपनी कमियां पिता-परमेश्वर से छुपा नहीं सकते। हमें अपनी गलतियां सुधारने के लिए सच्चा प्रयास करने की जरूरत है। जब हम खुद को सुधारने के लिए ईमानदारी से कोशिश करते हैं, चाहे हमें कितनी ही कठिनाईयों का सामना क्यों न करना पड़े, तो पिता-परमेश्वर हम पर अपनी दया और कृपा जरूर बरसाते हैं, जिससे कि हमारी आध्यात्मिक तरक्की बड़ी तेजी से होती है क्योंकि पिता-परमेश्वर केवल हमारी निष्ठा और सच्चाई को देखते हैं।
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