प्रत्येक दिन सद्भाव, सद्व्यवहार, कृतज्ञता के साथ जीवन जिएं तो हम अमृतमय आनंद को प्राप्त कर सकते हैं
सुधांशु जी महाराज
भा रतीय संस्कृति में आनन्द की प्राप्ति के लिए अमृत का पान करने की परम्परा है, माना जाता है कि अमृत में ही आनन्द समाहित है। जिसे जिस स्तर का आनन्द मिलता है, उसे उसी अवस्था की दिव्य अनुभूति होती है। दुनियां के लिए वे उसी स्तर के आकर्षण केंद्र बन जाते हैं। दिव्य मानव, गंधर्व, इंद्र, बृहस्पति, प्रजापति आदि इसी आधार पर प्रतिष्ठित हुये हैं। परमानन्द, ब्रह्मपद सर्व उत्कृष्ट आनन्द है। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में समाये विविध आयामों के अलौकिक आनन्द को एक साथ जोड़ देने पर जो आनन्द मिलता है, वही परमानन्द है, ब्रह्मपद व परमात्मा का आनन्द भी यही है। इसी दुर्लभतम आनन्दधाम से जुड़ना ही मानव जीवन का लक्ष्य है।आनन्दधाम का यह आनन्दस्रोत इतना गहरा आनन्द है, जिसके जीवन के अन्दर समा जाने से मानव द्वारा भोगी हुई जन्मों की पीड़ा आदि सम्पूर्ण दर्द-पीड़ा मिट जाती है। जैसे कोई बिछड़ा बच्चा भटकते-भटकते हुए असंख्य दर्द पीड़ा भोगते हुए अपनी मां को पाकर तृप्त हो जाता है, उससे चिपटते ही सारा दर्द-भय दूर हो जाता है। ठीक वैसे ही संसार में भटकते मानव के लिए है परमानन्द व आनन्दधाम का यह मूल ड्डोत। यही है अमृत पीकर तृप्त हो जाना।
यद्यपि दुनियां पीड़ाओं से भरी है, पर परमात्मा द्वारा उपजाये इस संसार के अनन्त आयामों में परमानन्द से जोड़ने वाले अनन्त अमृत कण मौजूद हैं, इन्हें हम कदम-कदम पर अनुभव कर सकते हैं। कहते हैं जब परमानन्द देने वाला अमृत बंट रहा था, तो देवताओं द्वारा कुछ
अमृत
बूंदें छलक कर ब्रह्माण्ड में बिखर गयीं, उन्हीं अमृत बिन्दुओं से धरती पर कुछ तीर्थ बन गये, जहां अनन्तकाल से लोग पहुंचकर शांति, संतोष, तृप्ति, आनन्द पाते हैं। इसी प्रकार कुछ अमृतबिन्दु सूरज की किरणों में, चन्द्रमा में, हवाओं, जल, पृथ्वी, वनस्पतियों, भक्ति, कर्म, ज्ञान, दान, सेवा-सहायता, परोपकार, न्याय आदि सम्पूर्ण आयामों में समा गया। प्रयत्नशील लोग अपने दिव्य सद्प्रयासों से उस अमृत बिन्दु को प्राप्त करके अपने अंदर आनन्दधाम स्थापित कर लेते हैं। प्रश्न उठता है कि आम साधारण मनुष्य इसे कैसे प्राप्त करे? तो आम इंसान के लिए वह अमृत आनन्द सूरज की किरणों में भी सर्वसुलभ है, लेकिन मिलता तभी है, जब प्रात:बेला में मुस्कुराता सूरज धरती की ओर बढ़े, तो हम भी अपनी मुस्कान के साथ उसका स्वागत करें, उसे महसूस करें। शास्त्र सूरज की किरणों वाली प्रभात बेला को अमृत बेला कहते हैं। हम सब भी अनुभव करें कि यह किरणें हमारे जीवन की शेष आयु के लिए अवसर, जागृति, मस्ती, मुस्कान, सेहत लेकर आ रही हैं, इसीप्रकार ओस की बूंदे भी अमृत के साथ उतर कर नव जीवन देती हैं, तब उसका आनन्द अनुभव होता है।इसके अतिरिक्त हमें संबंधों में विश्वास, परिवार में प्रेम, हम सबके स्वास्थ्य में भी अमृत है, जब आप हंसते मुस्कुराते हैं, तो जीवन में अमृत भरता है, उल्लसित व सकारात्मक होकर निष्छल भाव से अपनों का अभिनन्दन करते हैं, तो परिवार में मधुरता, प्रेम, विश्वास बनता है, इसी का नाम अमृत व आनन्द है। इस प्रकार प्रत्येक दिन सद्भाव-सद्व्यवहार, कृतज्ञता के साथ जीवन जियें, तो हम चलते फिरते अमृतमय आनन्द को लूट सकते हैं और अमरता पा सकते हैं।
Sign in
Welcome! Log into your account
Forgot your password? Get help
Password recovery
Recover your password
A password will be e-mailed to you.