केरल के मलप्पुरम कि इस घटना की देश भर में निंदा हो रही है। बारूद भरे अनानस को निगलने के बाद उस बेजुबान ने कितनी बेइंतहा पीड़ा को सहा होगा इसकी कल्पना तक इंसान नहीं कर सकता है। विस्फोट से घायल हथिनी इतने दर्द में थी कि तीन दिनों तक बिना कुछ खाए वेलियार नदी में खड़ी रही। हथीनी के जबड़े फट गए थे। दांत टूट गए थे। उसके जिस्म में पीड़ा और जलन अधिक थीं। इंसानी क्रूरता ने एक नहीँ दो जीवन को निगल लिया। हथिनी की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से पता चला है कि वह गर्भवती थी। पानी में डूबने की वजह से उसके शरीर के अंदर काफी पानी चला गया था, जिसके कारण फेफड़ों ने काम करना बंद कर दिया। आखिर यह जंग जानवरों से है या प्रकृति से। इंसान प्रकृति पर नियंत्रण चाहता है जबकि वह सामंजस्य। यहीं कारण हैं कि हम प्राकृतिक आपदाओं का सामना कर रहें हैं। कभी बाढ़, सूखा, भूस्खलन, आंधी- तूफान, अम्फन, निसर्ग, भूकम्प, टिड्डी दल और कोरोना जैसी महामारी का सामना कर हैं।
जरा सोचिए बेगुनाह हथीनी इंसान के तरफ से मिली इतनी पीड़ा के बाद भी इंसान को उसके गुनाहों की कोई सजा नहीं दिया। उसने कोई उत्पात नहीँ किया। किसी भी इंसान को कोई क्षति नहीं पहुंचाई। अपनी जान बचाने के लिए तीन दिनों तक नदी में खड़ी रहीं। निर्दोष हथीनी के इस त्याग का क्या हम ऐहसान चुका पाएंगे। यह कृत्य अक्षम्य और अमानवीय है। सभ्य समाज में इस तरह की जघन्यता को स्थान नहीँ मिलना चाहिए। वन्यजीव हमेशा हमारे विकास और सभ्यता के वाहक रहें हैं। हमारे पर्यावरण संरक्षण में इनका अतुलनीय योदगान है। इस अमानवीय घटना को अंजाम देने वालों की सूचना देने वालों के लिए एक लाख रुपये देने का ऐलान किया है। वहीं दूसरी ओर ह्यूमेन सोसायटी इंटरनैशनल इंडिया ने भी 50 हजार रुपये इनाम का ऐलान किया है। लेकिन क्या हम मानव सोच को बदल सकते हैं। वन विभाग ने घायल हथिनी को नदी से बाहर निकालने का भरपूर प्रयास किया लेकिन सफल नहीं हुए। वह घायल हथिनी को आॅपरेशन के जरिए ठीक करना चाहते थे।
भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अनुसार, किसी जंगली जानवर के खिलाफ किसी भी प्रकार की हिंसा दंडनीय अपराध है। जिसमें केरल जैसा कृत्य भी शामिल है। बेजुबान जानवरों को कैद करना, हत्या करना, जहर देना, जाल में फंसाना। उसके शरीर के अंगों को चुराना या शिकार करना अपराध है। 2003 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया और अधिक कठोर बना दिया गया। लेकिन इसके बाद भी बेजुबान जंगली जानवरों के खिलाफ हिंसा और अपराध की घटनाएं थमने का नाम नहीँ ले रहीं हैं। केरल की घटना सभ्य इंसानी समाज के लिए बड़ी शर्म की बात है। यह अहिंसा परमो धर्म: के मूलमंत्र के खिलाफ है। हमें इंसान और जानवर में फर्क से बचना होगा। केंद्र और राज्य सरकार को वन्यजीवों की रक्षा के लिए और कठोर कदम उठाने चाहिए। समाज के लोगों को भी जंगली जानवरों के प्रति अपना नजरिया बदलना होगा। अभियान चला कर समझाना होगा कि जंगल और जानवर हमारे लिए कितने खास हैं। पशु- प्रेमियों और अधिकारवादियों के साथ इस तरह की सामाजिक संस्था चलाने वालों को समाज में जागरूकता फैलानी होगी। केरल की घटना के दोषियों को मौत की सजा मिलनी चाहिए। सरकार और कठोर कानून बनाने चाहिए। घटना के दोषियों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाना चाहिए। यहीं कारण है कि वन्यजीव विलुप्त हो रहें हैं और जंगल कट रहें हैं। सरकारों को सख्त कानून बनाने की जरूरत है।
–
प्रभुनाथ शुक्ल
(लेखक मोटिवेशनल एक्सपर्ट हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)