दुनिया की दो घटनाएं हमें विचलित करती हैं और इंसान की सोच पर सवाल खड़ी करती हैं। इन दोनों घटनाओं के मूल में एक तरह की समानता दिखती है जिसे हम रंग और नस्लभेद से समझ सकते हैं। अमेरिका में एक अश्वेत की श्वेत पुलिस आफिसर की तरफ से गला दबाकर की गई हत्या कर दी गई। वह चिल्लाता रहा कि उसे सांस की जरूरत है लेकिन काले- गोरे के भेद ने इंसानियत को तिलांजलि दे दिया। भारत में दक्षिणी राज्य केरल में बेजुबान हथीनी की मौत भी कुछ उसी तरह है। एक में इंसान ने इंसान का कत्ल किया। दूसरे में इंसान ने बेजुबान जानवर का। दोनों घटनाओं में नस्लभेद की गंध छुपी है। वहां काले- गोरे का तो यहां इंसान और बेजुबान जानवर का। अश्वेत तो दुनिया को यह जता दिया कि उसे सांस नहीं मिल पाई और वह चल बसा। जिसकी वजह रहीं कि अमेरिका में मानवीयता इतनी विचलित हो गई कि गोरे- काले का भेद मिट गया और इंसानियत को बचाने इंसान सड़क पर उतर पड़ा। अमेरिकी राष्ट्रपति को बंकर में छुपाना पड़ा। लेकिन बारूद से घायल बेजुबान हथिनी अपनी पीड़ा कैसे बताती। भारत में सोशलमीडिया और पशुअधिकारवादियों में यह मामला बहस का मुद्दा बन गया है। एक तरह हम विश्व पर्यावरण दिवस पर पर्यावरण बचाने का दिखावा कर रहें हैं तो दूसरी तरह इसी दिवस यानी 05 जून के सप्ताह भर पूर्व जंगली जीव हथीनी कि निर्मम हत्या कर दी जाती है। अपने आप में यह बड़ा सवाल है। इस पर विचार करना होगा। हालांकि केंद्र सरकार ने केरल सरकार से पूरे प्रकरण की रिपोर्ट मांगी है। घटना की जांच के लिए एसआईटी गठित की गई है। पशुप्रेमी मेनका गांधी ने इस पर आवाज उठाते हुए राहुल गांधी पर बड़ा हमला बोला है। स्मृति ईरानी के साथ गोरखपुर से सांसद एवं फिल्म अभिनेता रवि किशन ने भी इस पर बयान दिया है और केरल सरकार को घेरा है। मतलब यह साफ है कि हथिनी की मौत अब राजनीति के केंद्र में है। इसकी एक बड़ी वजह है कि राहुल गांधी केरल से सांसद उनकी तरफ से इस पर कोई बयान नहीं आया है। हमला खुद उनकी चाची मेनका गांधी की तरफ से किया गया लिहाजा राजनीति के लिए यह अहम बिंदु बन जाता है।
केरल के मलप्पुरम कि इस घटना की देश भर में निंदा हो रही है। बारूद भरे अनानस को निगलने के बाद उस बेजुबान ने कितनी बेइंतहा पीड़ा को सहा होगा इसकी कल्पना तक इंसान नहीं कर सकता है। विस्फोट से घायल हथिनी इतने दर्द में थी कि तीन दिनों तक बिना कुछ खाए वेलियार नदी में खड़ी रही। हथीनी के जबड़े फट गए थे। दांत टूट गए थे। उसके जिस्म में पीड़ा और जलन अधिक थीं। इंसानी क्रूरता ने एक नहीँ दो जीवन को निगल लिया। हथिनी की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से पता चला है कि वह गर्भवती थी। पानी में डूबने की वजह से उसके शरीर के अंदर काफी पानी चला गया था, जिसके कारण फेफड़ों ने काम करना बंद कर दिया। आखिर यह जंग जानवरों से है या प्रकृति से। इंसान प्रकृति पर नियंत्रण चाहता है जबकि वह सामंजस्य। यहीं कारण हैं कि हम प्राकृतिक आपदाओं का सामना कर रहें हैं। कभी बाढ़, सूखा, भूस्खलन, आंधी- तूफान, अम्फन, निसर्ग, भूकम्प, टिड्डी दल और कोरोना जैसी महामारी का सामना कर हैं।
जरा सोचिए बेगुनाह हथीनी इंसान के तरफ से मिली इतनी पीड़ा के बाद भी इंसान को उसके गुनाहों की कोई सजा नहीं दिया। उसने कोई उत्पात नहीँ किया। किसी भी इंसान को कोई क्षति नहीं पहुंचाई। अपनी जान बचाने के लिए तीन दिनों तक नदी में खड़ी रहीं। निर्दोष हथीनी के इस त्याग का क्या हम ऐहसान चुका पाएंगे। यह कृत्य अक्षम्य और अमानवीय है। सभ्य समाज में इस तरह की जघन्यता को स्थान नहीँ मिलना चाहिए। वन्यजीव हमेशा हमारे विकास और सभ्यता के वाहक रहें हैं। हमारे पर्यावरण संरक्षण में इनका अतुलनीय योदगान है। इस अमानवीय घटना को अंजाम देने वालों की सूचना देने वालों के लिए एक लाख रुपये देने का ऐलान किया है। वहीं दूसरी ओर ह्यूमेन सोसायटी इंटरनैशनल इंडिया ने भी 50 हजार रुपये इनाम का ऐलान किया है। लेकिन क्या हम मानव सोच को बदल सकते हैं। वन विभाग ने घायल हथिनी को नदी से बाहर निकालने का भरपूर प्रयास किया लेकिन सफल नहीं हुए। वह घायल हथिनी को आॅपरेशन के जरिए ठीक करना चाहते थे।
भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अनुसार, किसी जंगली जानवर के खिलाफ किसी भी प्रकार की हिंसा दंडनीय अपराध है। जिसमें केरल जैसा कृत्य भी शामिल है। बेजुबान जानवरों को कैद करना, हत्या करना, जहर देना, जाल में फंसाना। उसके शरीर के अंगों को चुराना या शिकार करना अपराध है। 2003 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया और अधिक कठोर बना दिया गया। लेकिन इसके बाद भी बेजुबान जंगली जानवरों के खिलाफ हिंसा और अपराध की घटनाएं थमने का नाम नहीँ ले रहीं हैं। केरल की घटना सभ्य इंसानी समाज के लिए बड़ी शर्म की बात है। यह अहिंसा परमो धर्म: के मूलमंत्र के खिलाफ है। हमें इंसान और जानवर में फर्क से बचना होगा। केंद्र और राज्य सरकार को वन्यजीवों की रक्षा के लिए और कठोर कदम उठाने चाहिए। समाज के लोगों को भी जंगली जानवरों के प्रति अपना नजरिया बदलना होगा। अभियान चला कर समझाना होगा कि जंगल और जानवर हमारे लिए कितने खास हैं। पशु- प्रेमियों और अधिकारवादियों के साथ इस तरह की सामाजिक संस्था चलाने वालों को समाज में जागरूकता फैलानी होगी। केरल की घटना के दोषियों को मौत की सजा मिलनी चाहिए। सरकार और कठोर कानून बनाने चाहिए। घटना के दोषियों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाना चाहिए। यहीं कारण है कि वन्यजीव विलुप्त हो रहें हैं और जंगल कट रहें हैं। सरकारों को सख्त कानून बनाने की जरूरत है।
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प्रभुनाथ शुक्ल
(लेखक मोटिवेशनल एक्सपर्ट हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)