How much do we know about Tablighi Jamaat: तब्लीगी जमात को हम कितना जातने हैं

0
443

तब्लीगी जमात ने भारत में चल रहे कोविड 19 के खिलाफ जंग को बेहद कमजोर करने की कोशिश की और उसके सरपरस्त मौलाना साद ने तो हद ही कर दी। उन्होंने भारत सरकार पर आरोप लगाया कि सरकार ने लॉकडाउन के माध्यम से मुसलमानों के मस्जिद पर चोट किया है। यह अक्षम्य है। इस प्रकार की नकारात्मक विचारधारा रखने वाले मौलाना, इस्लाम जैसे शांतिप्रिय संप्रदाय के अनुयायी नहीं हो सकते हैं। वे इस्लाम के अंतिम पैगंबर हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अनुयायी भी नहीं हो सकते क्योंकि साहब ने खुद कहते हैं कि महामारी के समय किसी भी व्यक्ति को न तो महामारी वाले स्थान पर जाना चाहिए और न ही महामारी वाले स्थान से किसी व्यक्ति को अन्य जगह जाना चाहिए लेकिन मौलाना साद इस चिंतन से इत्फाक नहीं रखते हैं। उन्होंने जलसा किया और लोगों को बड़गलाया। महामारी की भयावहता को कमतक आंका और गैर मुसलमानों के साथ ही साथ मुसलमानों को भी परेशानी में ढकेल दिया।
आइए हम ऐसे हमपरस्त और समाज विरोधी विचार रखने वाले तब्लीगी जमात को जानते हैं। तब्लीगी जमात, सुन्नी इस्लामी धर्म प्रचार आंदोलन है, जो दावा करता है कि वह मुसलमानों को मूल इस्लामी पद्दतियों की तरफ बुलाता है। खास तौर पर धार्मिक तरीके, वेशाभूश, वैयक्तिक गतिविधियों के मामले में। मौलाना मुहम्मद इलियास इब्न मुहम्मद इस्माइल कांधलवी देहलवी (1884 – 13 जुलाई 1944) एक भारतीय इस्लामिक विद्वान थे, जिन्होंने 1925 में मेवात प्रांत में तब्लीगी जमात यानी (चलता-फिरता मदरसा) की स्थापना की। यह संगठन 1926-27 के दौरान भारतीय स्वातंत्र संग्राम को गति देने के मामले में भी चर्चा में आया। कहा जाता है कि स्वतंत्रता आन्दोलन को इस्लामिक तौर-तरीके से लड़ने के लिए देहलवी ने तुर्की से भी संपर्क साधा था। मौलाना मुहम्मद इलियास ने इस मर्कज की नींव रखी थी। इनके विचार उत्तम थे लेकिन बाद के कालखंड में कई प्रकार की विसंगतियों ने इस संस्था को अपने गिरफ्त में ले लिया। परंपराओं के अनुसार, मौलाना मुहम्मद इलियास ने लोगों को धार्मिक शिक्षा देकर दिल्ली से सटे मेवात में अपना काम शुरू किया। माना जाता है कि इस चिन्तन वाले लोगों की संख्या पूरी दुनिया में 150 मिलियन है। दक्षिण एशिया में इनकी संख्या अधिक है, और 150 से 195 देशों में इसका काम है। इसका मूल उद्देश्य आध्यात्मिक इस्लाम को मुसलमानों तक पहुंचाना और फैलाना। इस जमाअत के मुख्य उद्देश्य छ: उसूल (कलिमा, नमाज, इल्म, इक्राम-ए-मुस्लिम, इख्लास-ए-निय्यत, दावत-ओ-तबलीग) हैं। यह विशुद्ध रूप से एक धर्म प्रचार आंदोलन है।
तब्लीगी जमात के संस्थापक मुहम्मद इलियास कांधलवी एक ऐसा आंदोलन बनाना चाहते थे, जो कुरान के फरमान के अनुसार भलाई और बुराई पर रोक लगाए, जैसा कि उनके शिक्षक रशीद अहमद गंगोही का सपना था। इसकी प्रेरणा उन्हें 1926 में मक्का की दूसरी तीर्थ यात्रा के दौरान मिली। उन्होंने शुरू में मेवाती मुसलमानों को इस्लामी मान्यताओं और प्रथाओं के बारे में शिक्षित करने के लिए मस्जिद-आधारित धार्मिक स्कूलों का एक नेटवर्क स्थापित करने का प्रयास किया। कुछ ही समय बाद, वह इस वास्तविकता से निराश हो गए उन्हें अब कुछ नया करने की सुझी। मुहम्मद इलियास ने सहारनपुर के मदरसा मजाहिर उलूम में अपने शिक्षण पद को त्याग दिया और मुसलमानों में सुधार के लिए एक मिशनरी बन गए (लेकिन उन्होंने गैर-मुस्लिमों को उपदेश देने की वकालत नहीं की)। वह दिल्ली के पास निजामुद्दीन में स्थानांतरित हो गया, जहां 1926 में औपचारिक रूप से तब्लीगी आन्दोलन की घोषणा कर दी।
बता दें कि मेवात क्षेत्र जहां दिल्ली के आसपास तबलीगी जमात की शुरूआत हुई, मेस, एक राजपूत जातीय समूह का निवास था, जिनमें से कुछ इस्लाम में परिवर्तित हो गए थे और फिर वे हिन्दू होने की प्रक्रिया में आ गए थे क्योंकि उनकी परंपरा उन्हें हिन्दू पहचान के साथ जोड़े हुए था। मौलाना मुहम्मद इलियास इब्न मुहम्मद इस्माइल कांधलवी देहलवी इन्हें मुसलमान बनाना चाहते थे। यही नहीं देहलवी मुसलमानों को एक राजनीतिक ताकत के रूप में भी खड़ा करने के पक्ष में थे। तबलीगी जमात के आगमन से पहले बहुसंख्यक हिंदुओं के सांस्कृतिक और धार्मिक प्रभाव का विरोध करने की आवश्यकता उन्हें महसूस हो रही थी। तब्लीगी जमात की रूढ़िवादी प्रकृति के कारण, उन्हें प्रतिगामी होने के लिए आलोचना की जाती रही है। आंदोलन में शामिल महिलाएं पूरी हिजाब का निरीक्षण करती हैं। तब्लीगी जमात को कुछ मध्य एशियाई देशों जैसे कि उजबेकिस्तान, ताजिकिस्तान और कजाकिस्तान में प्रतिबंधित कर दिया गया है, जहां इसके शुद्धतावादी प्रचार को चरमपंथी के रूप में देखा जाता है। 27 फरवरी और 1 मार्च 2020 के बीच, आंदोलन ने मलेशिया के श्री पेटालिंग, कुआलालंपुर में एक मस्जिद में एक अंतरराष्ट्रीय सामूहिक धार्मिक सभा का आयोजन किया गया था। तब्लीगी जमात सभा को 620 से अधिक कोविड-19 मामलों से जोड़ा गया है, जिससे यह दक्षिण पूर्व एशिया में वायरस के संचरण का सबसे बड़ा ज्ञात केंद्र बन गया है। मलेशिया में कोविद -19 मामलों में श्री पेटलिंग की घटना में सबसे बड़ी वृद्धि हुई, मलेशिया में 673 में से लगभग दो तिहाई मामलों की पुष्टि 17 मार्च 2020 तक हुई। ब्रुनेई में कोविद -19 के अधिकांश मामले यहां उत्पन्न हुए, और इंडोनेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड, कंबोडिया, वियतनाम और फिलीपींस सहित अन्य देशों ने इस घटना के लिए अपने मामलों का पता लगाया है। प्रकोप के बावजूद, तब्लीगी जमात ने इंडोनेशिया के दक्षिण सुलावेसी में मकसर के पास गोवा रीजेंसी में 18 मार्च को एक दूसरे अंतर्राष्ट्रीय जनसभा का आयोजन किया। तब्लीगी जमात के निजामुद्दीन गुट ने एक धार्मिक मंडली कार्यक्रम, निजामुद्दीन पश्चिम, दिल्ली में अल्लामी मशवरा इज्तिमा (कार्यक्रम) 14 से 16 मार्च 2020 में अखिल भारतीय कार्यक्रम का ऐलान किया था जिसमें कई विदेशी वक्ताओं ने भाग लिया और 2000 से अधिक सदस्य वहां उपस्थित थे। यह संदेह है कि इनमें से कुछ स्पीकर कोरोनावायरस से संक्रमित थे जो बाद में मंडलियों में फैल गए। 13 मार्च 2020 को, दिल्ली सरकार ने आदेश दिया कि किसी भी सेमिनार, आईपीएल जैसे खेल आयोजनों, सम्मेलनों या किसी भी बड़े कार्यक्रम (200 से अधिक लोगों) को दिल्ली में अनुमति नहीं दी जाएगी। महामारी रोग अधिनियम, 1897 को लागू करके ये निवारक कदम उठाए गए थे। 30 मार्च, 2020 तक पूरे निजामुद्दीन पश्चिम क्षेत्र को पुलिस द्वारा बंद कर दिया गया और चिकित्सा शिविर लगाए गए। प्रशासन ने कहा था कि वे अपने-अपने देश और राज्यों में सैकड़ों मिशनरी भेजने के लिए तैयार हैं लेकिन जैसा कि लॉकडाउन में है वे असहाय हैं। तब्लीगी जमात भारत के प्रमुख कोरोनो वायरस हॉटस्पॉट में से एक के रूप में उभरा, भारत में पहचाने गए मामलों के लगभग 40 प्रतिशत सकारात्मक मामले (389 मामले) इसी मर्कज के लोगों में पाए गए हैं। ये मामले 23 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों तक फैलाने में इनकी अहम भूमिका का पता चला है। दिल्ली सरकार ने तब्लीगी जमात के निजामुद्दीन गुट के प्रमुख मुहम्मद साद कांधलवी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है। 31 मार्च 2020 को मुहम्मद साद कांधलवी और अन्य के खिलाफ दिल्ली पुलिस अपराध शाखा द्वारा महामारी रोग अधिनियम 1 और धारा 9 की धारा 3 (अपराध के लिए दंड) के तहत एफआईआर दर्ज की गई। 270 (घातक बीमारी फैलने की संभावना), 271 (संगरोध शासन की अवज्ञा) और 120 बी (आपराधिक साजिश की सजा) का मामला उनपर लादा गया है। यही नहीं पाकिस्तान में भी 36 तब्लीगी जमात के सदस्यों को  30 मार्च को हैदराबाद में परीक्षण में कोराना ग्रस्त पाया गया।

मौलाना साद का असली चेहरा
तब्लीगी जमात के निजामुद्दीन स्थित मर्कज के अमीर मौलाना मोहम्मद साद कांधलवी असली चेहरा शायद लोगों को मालूम नहीं होगा। मौलाना मोहम्मद साद कांधलावी, हाल ही में तब्लीगी जमात के वार्षिक जमावड़े के दौरान अपने अनुयायियों को यह संदेश देने के कारण विवादों में आए कि कोरोना वायरस मस्जिदों को बंद करने की एक साजिश है और प्रत्येक मुसलमानों को मस्जिदों को सरकार लॉकडाउन लागू करने के बावजूद मस्जिदों में पांच वक्त आना चाहिए। उनके इतिहास पर नजर डालें तो वे एक बहुत ही विवादास्पद मनुष्य हैं, जो हमेशा ही प्रमुख मुस्लिम संगठनों और उलेमाओं के गुस्से का शिकार होते रहे हैं। वर्ष 2016 में मौलाना दास के खिलाफ, सुन्नी मुसलमानों की सबसे बड़ी धार्मिक संस्था दारूल-उलूम देवबंद ने कुरान की गलत व्याख्या करने पर फतवा जारी किया था। इस फतवे में उन्हें भ्रामित और पथभ्रष्ट करार दिया गया था। देवबंद मदरसा ने तब्लीगी जमात से जुड़े मौलाना साद द्वारा कुरान और हदीस की गलत व्याख्या करने के लिए मुसलमानों को सचेत भी किया था। सुन्नी विचारधारा के कुछ अगुवा मौलानाओं ने कई बार मौलाना साद द्वारा दिए गए भड़काऊ बयानों के प्रति अपना गुस्सा जाहिर किया और उन पर इस्लामिक ग्रंथों की गलत व्याख्या करने व अल्लाह के पैगंगरों की अवमानना एवं भष्ट होने का आरोप लगाया। सऊदी अरब के एक अखबार औकाज में प्रकाशित एक लेख के अनुसार तब्लीगी जमात इस्लाम का एक खतरनाक संप्रदाय है जो सऊदी अरब में निषेध है। इसकी वजह है कि वह इस्लाम को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करता है। यही नहीं इस्लाम के नाम पर नौजवानों को भ्रमित भी करता है।

मौलाना साद अमूमन अपने अनुयायियों को सादगी भरा जीवन जीने का उपदेश देता है लेकिन खुद उन्हें ठाठ-बाठ भरा जीवन जीने का शौक है। वे पश्चिम उत्तर प्रदेश के शामली कस्बे में कांधला नामक स्थान में स्थित एक आलीशान फॉर्म हाऊस में रहते हैं। वहां इस्लामी कायदे कानून के इतर भव्यता का नंगा खेल चलता है। साद ने कोविड 19 के खिलाफ चल रहे अभियान को गहरा आघात पहुंचाया है। सरकारी नियमों की अवहेलना की और केवल गैर मुसलमानों का ही नहीं खुद मुसलमानों को भी भयंकर हानि पहुंचाई। दुर्भाग्य से मौलाना साद के इस अवांछित व्यवहार ने भारत की सदियों पुरानी गंगा-जमुनी तहजीब को भी ठेस पहुंचा है।

-+
गौतम चौधरी
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)