How is the Josh? हाउ इज द जोश?

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शहीदों का समाज में एक विशिष्ट स्थान होता है। हो भी क्यों नहीं? ये वो लोग हैं जो देश की रक्षा में अपना सर्वस्व न्योछावर कर गए। वैसे तो वीर रस के कवियों ने शहादत पर अनगिनत दोहे लिखे हैं। लेकिन ‘शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले’ सर्वाधिक लोकप्रिय कविताओं में एक है। कहते हैं कि इसे महान क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल ने लिखा था। लेकिन ऐसे लोग भी हैं जो ये दावा करते हैं कि हकीकत में ये कानपुर के कवि जगदंबिका प्रसाद मिश्र हितैषी की रचना है। पूरी कविता कुछ इस तरह से है:
उरूजे कामयाबी पर कभी
हिन्दोस्तां होगा
रिहा सैयाद के हाथों से अपना आशियां होगा
चखाएँगे मजा बर्बादिए गुलशन का गुलचीं को
बहार आ जाएगी उस दम जब अपना बागबां होगा
ये आए दिन की छेड़ अच्छी नहीं ऐ खंजरे कातिल
पता कब फैसला उनके हमारे
दरमियां होगा
जुदा मत हो मेरे पहलू से ऐ दर्दे
वतन हरगिज
न जाने बाद मुर्दन मैं कहां औ तू
कहां होगा
वतन की आबरू का पास देखें
कौन करता है
सुना है आज मकतल में हमारा इम्तिहां होगा
शहीदों की चिताओं पर लगेगें
हर बरस मेले
वतन पर मरनेवालों का यही
बाकी निशां होगा
कभी वह दिन भी आएगा जब
अपना राज देखेंगे
जब अपनी ही जमीं होगी और
अपना आसमां होगा
विकिपीडिया के मुताबिक भारत में साल में पांच दिन ऐसे हैं जो शहीदों को समर्पित कहे जाते हैं, 30 जनवरी (महात्मा गांधी की जयंती), 23 मार्च (इस दिन भगत सिंह, सुखदेव थापर और शिवराम राजगुरु को फांसी पर चढ़ाया गया था), 21 अक्टूबर (पुलिस स्मृति दिवस), 17 नवम्बर (लाला लाजपत राय जयंती) एवं 19 नवम्बर (झांसी रानी लक्ष्मी बाई का जन्म-दिन)। 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया गया। इस बेवजह थोपे गए अघोषित युद्ध में भारतीय सेना के 527 जांबाज शहीद हुए। पूरे देश ने उन वीर सपूतों को श्रद्धा और कृतज्ञता से याद किया।
सोशल मीडिया कितना भी उछल ले, जोर अभी भी टीवी-अखबार का ही चलता है। कहीं दोनों मिल जाएं तो सोने पर सुहागा हो जाता है। 25 जुलाई को एक बड़े अंग्रेजी अखबार ने संगरूर जिले के एक ट्रैफिक सिपाही सतपाल सिंह की फोटो छापी। अमूमन ऐसी खबरें उलटी ही होती है। लेकिन इस बार मामला कुछ और ही था। ये शख्स कोई और नहीं, कारगिल युद्ध के टाइगर हिल पर कब्जे की ऐतिहासिक लड़ाई का महानायक था। वीर चक्र विजेता था। जब इसके एलएमजी की गोलियां खत्म हो गई तो कहते हैं कि खाली हाथ ही इसने चार-चार पाकिस्तानी फौजियों पर हल्ला बोल दिया और उन्हें ढेर कर दिया। इसके हाथों मारे गए एक पाकिस्तान फौजी शेर खान को तो मरणोपरांत सर्वोच्च पाकिस्तानी सम्मान ‘निशाने-हैदर’ भी मिला। स्वयंसेवा में जुटे एक ट्विटराटी से इसे पंजाब के मुख्यमंत्री को टैग करते हुए ट्वीट कर दिया। फिर क्या था? सिपाही सतपाल सिंह रातों-रात एएसआई बन गए। टीवी-अखबार वाले उनका दरवाजा पीटने लगे।
बीस साल पहले जो पाकिस्तानी फौजें कारगिल में घुस आई थी, 26 जुलाई 1999 को पूरी तरह से वापस खदेड़ दी गई। 3 मई से 26 जुलाई 1999 तक भीषण संग्राम चला था। कड़कड़ाती ठंड, ऊंचा पहाड़ी इलाका और बंकरों से निशाना साध रहे दुश्मन। 30,000 जांबाज लड़े। 5000 ने सप्लाई का काम संभाला। कुल 527 खेत रहे। जब कोई ऊपर पहाड़ों में आड़ लिए बैठा हो तो नीचे से उन पर हल्ला बोलने और उन्हें खदेड़ देने के लिए बहादुरी की चरम सीमा चाहिए।
ऐसा कम ही होता है कि नुक्लेअर शस्त्रों से लैश दो देश इस तरह की जमीनी लड़ाई लड़ें। पाकिस्तानी पहले तो कहते रहे कि ये कश्मीरी मुजाहिदीन का किया-धरा है। लेकिन जब आदतन झूठे परवेज मुशर्रफ की अपने मातहत से बातचीत की टेप और मारे गए पाकिस्तानी फौजियों के दस्तावेज सबूत के तौर पर सामने आने शुरू हुए तो कोई बहाना न बचा। ये कोई तुरंत-फुरंत की कार्रवाई नहीं थी।
पाकिस्तानी फौजें 1998-99 के दरम्यान मुजाहिदीन के वेश में एलओसी पार करती रही। ये उनका आॅपरेशन बंदर था। मकसद था कश्मीर और लद्दाख का सम्पर्क खत्म कर भारतीय फौजों को सियाचीन से पीछे हटने के लिए मजबूर करना। सोच ये भी थी कि इस तरह की सीमित लड़ाई से कश्मीर का मुद्दा सुर्खियों में आएगा, कश्मीर घाटी में आतंकियों का मनोबल बढ़ेगा। आईएसआई के तब के एनालिसिस विंग के प्रमुख ले. जेनरल अजीज ने जनवरी 2013 में द नेशन अखबार में साफ-साफ लिखा कि पाकिस्तानी फौजी ही घुसे थे, टेप किए हुए वॉयरलेस संदेश से मुजाहिदीन का भ्रम पैदा करने की कोशिश हुई थी। कुछ का कहना है कि ये आॅपरेशन मेघदूत का प्रतिशोध था जिसके तहत भारतीय फौजों ने 1984 में अधिकांश सियाचिन ग्लैसियर पर कब्जा जमा लिया था।
3 मई 1999 से आॅपरेशन विजय के तहत भारतीय फौजों ने तेज जवाबी कार्रवाई की। 26 मई से भारतीय वायु सेना ने भी आॅपरेशन सफेद सागर शुरू कर दिया और कब्जाए इलाके पर जबरदस्त बमबारी की। भारतीय नौ-सेना ने आॅपरेशन तलवार के जरिए उत्तरी अरब सागर में गश्त तेज कर दिया, पाकिस्तानी बंदरगाहों को अपने घेरे में लेना शुरू कर दिया। बाद में तब के पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने माना कि अगर पूरी लड़ाई छिड़ जाती तो पाकिस्तान के पास छह दिन का ही डीजल-पेट्रोल बचा था।
26 जुलाई, 1999 को आधिकारिक तौर पर मिलिटेरी आॅपरेशन को सफल घोषित किया गया। तब तक अद्भुत वीरता और अदम्य साहस की अनगिनत कहानियां लिखी जा चुकी थी। युद्ध में शहादत एक नियति है जिसे टाला नहीं जा सकता। एक कृतज्ञ राष्ट्र ही उनके बलिदान का प्रतिदान है। टामस कैम्बल की उक्ति है – हमारे लिए अमर होना उन लोगों के दिलों में रहना है, जिनके लिए हमने प्राण न्योछावर किए। कृतज्ञता का ये भाव बना रहना चाहिए, छलकते रहना चाहिए।
ओम प्रकाश सिंह
(लेखक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी हैं।)