नई दिल्ली, Auto Tips: वाहनों में कई सारे ऐसे डिवाइस या उपकरण होते हैं, जिनके बारे में बेहद ही कम लोग जानते हैं। गाड़ी के इंजन के लिए बेहद ही जरूरी उपकरणों के बीच जानिए क्या अंतर होता है। गाड़ी में इस्तेमाल होने वाले फ्यूल इंजेक्टर्स और काबोर्रेटर, इन दोनों का ही काम समान होता है। ये दोनों ही गाड़ी के इंजन को फ्यूल आपूर्ति का काम करते हैं। मगर इनका संचालन काफी अलग है। मोटरसाइकिल में एक्सेसेलेरेट करने पर थ्रोटल खुलने के बाद इंजन तक और ज्यादा हवा भेजने का काम करता है। इस प्रक्रिया में फ्यूल का प्रेशर काफी अधिक होता है।
फ्यूल इंजेक्टर्स एक नई तकनीक
फ्यूल इंजेक्टर्स तकनीक एक मॉर्डन और ए़डवांस तकनीक है, जो आजकल की कारों और बाइक्स में इस्तेमाल हो रही है। इस नई तकनीक ने पुरानी काबोर्रेटर की जगह काफी तेजी से अपनी जगह हासिल कर ली है। इस तकनीक में इंजन कंट्रोल यूनिट का इस्तेमाल होता है। इस तकनीक में गाड़ी के इंजन तक एकदम सही मात्रा में फ्यूल पहुंचता है, इस काम में इंजन सेंसर्स भी मदद करते हैं।
काबोर्रेटर की जानकारी
वहीं, कई कारों और मोटरसाइकिलों में इस्तेमाल होने वाला कार्बोरेटर एक साधारण मैकनिज्म पर काम करता है। यह सिस्टम का काम पूरी तरह से इंजन को फ्यूल की आपूर्ति और लाइन को ठीक रखना होता है। इस सिस्टम में इंजन को आपूर्ति होने वाले फ्यूल को जेट द्वारा नियंत्रित किया जाता है। यह चोक नोब में मेन्युअल तरीके से फ्यूल एडजेस्टमेंट करता है। यह तकनीक ऊंचे और ठंडे इलाकों में ज्यादा कारगर साबित होती है। हालांकि, इसका इस्तेमाल अभी भी जारी है।
वाहन में मिलती है बढ़िया हैंडलिंग
आजकल की गाड़ियों में फ्यूल इंजेक्टर्स तकनीक को अधिक इस्तेमाल किया जा रहा है, इसके पीछे की वजह साफ है कि इस तकनीक में फ्यूल के कई विकल्पों को आसानी से संभाला जा सकता है, जैसे- एथेनॉल। इस वजह से फ्यूल इंजेक्टर्स तकनीक वाली गाड़ी में बेहतर हैडलिंग मिलती है। दूसरी तरफ, काबोर्रेटर वाले वाहनों में एथेनॉल जैसे अलग फ्यूल के लिए अलग लाइन के साथ अलग जेट की जरूरत होती है। वहीं, कार्बोरेटर वाले वाहन इसके इस्तेमाल करने पर इंजन लाइन को बाधित कर देते हैं। फ्यूल इंजेक्टर्स में ऊंचा दबाव मिलता है, जिसकी वजह से गाड़ी का इंजन आराम से काम करता है। मगर कार्बोरेटर तकनीक में ऐसा नहीं होता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि काबोर्रेटर का इस्तेमाल साल 1990 के बाद से काफी कम हो गया है, क्योंकि जब से ही गाड़ियों में एथेनॉल का इस्तेमाल शुरू हो गया था।