सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया और सर्वेषां शान्तिर्भवतु, हिंदू धर्म का मूल उद्देश्य है। हम हर पूजा संस्कार के बाद यही प्रार्थना करते हैं। हमारे धर्म ने हमें सिर्फ अपने लिए ही नहीं बल्कि सभी के हित और सुख शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करना सिखाया है। ऐसे में उम्मीद की जाती है कि जो हिंदू धर्म के अनुयायी हैं, वो इस उद्देश्य और विचार को लेकर काम करेंगे मगर ऐसा होता दिख नहीं रहा। हमारा देश अब सिर्फ राजनीति प्रधान देश है। राजनीति में किसी की कोई पवित्र विचारधारा नहीं बची है। सभी विचारधाराओं का मूल उद्देश्य सिर्फ सत्ता रह गया है। कोई हिंदू विचारधारा का है, तो कोई मुस्लिम या सिख विचारधारा का। कोई सेकुलर विचारधारा को लेकर लड़ रहा है। इन हालात में हर कोई एक दूसरे की विचारधारा पर आक्षेप लगाता दिखता है। संसद और आवाम के बीच सभी विचारधाराओं के नेता यही कसम खाते घूमते हैं कि वो संविधान की रक्षा कर रहे हैं, जबकि यही लोग उसकी मूल भावनाओं की हत्या कर रहे होते हैं। संविधान और विधि के सच्चे मन से अनुपालन करने की शपथ लेकर सत्ता का सुख भोगने वाले हर पल उसे तोड़ते नजर आते हैं। इस वक्त यह अराजक सोच हमारे समाज में सर्वत्र हावी है। हैरानी की बात तो यह है कि उसको तमाम मतदाताओं का भी समर्थन मिल रहा है।
देश की आजादी में योगदान देने वाले जमनालाल बजाज के उद्योगपति पुत्र राहुल बजाज ने गृहमंत्री एवं भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह से कहा कि इस वक्त लोग सरकार की नीतियों की आलोचना करने से डरते हैं। सच बोलने वालों में खौफ का माहौल बनाया जा रहा है। उनके यह कहते ही भाजपा के तमाम मंत्रियों से लेकर समर्थकों तक ने उन पर हमला शुरू कर दिया। दूसरी तरफ हैदराबाद पुलिस और सरकार की नाकामी के कारण एक बेटी की आबरू लूटने के बाद दरिंदों ने उसको जलाकर मार डाला। देशभर में आलोचनाओं के दबाव में पुलिस ने चार युवकों को पकड़ा और दावा किया कि यही दरिंदे हैं। सबूत जुटाने के नाम पर पुलिस उन्हें मौके पर ले गई और मुठभेड़ में मार डाला। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री, हमारे तमाम सांसदों और उग्र विचारों वाले लाखों लोगों ने वहां की पुलिस की तारीफ में कसीदे पढ़ने शुरू कर दिये। उन्नाव पुलिस ने जिस गैंगरेप की पीड़िता की चार माह तक एफआईआर तक दर्ज नहीं की। उसने अदालत से आदेश कराकर एफआईआर दर्ज करवाई, आरोपियों ने जब जमानत मांगी तो पुलिस ने विरोध नहीं किया। जमानत पर छूटे आरोपियों ने पीड़िता को जलाकर मारने की कोशिश की। वह जलते हुए एक किमी तक बचाव के लिए दौड़ी मगर कोई मदद को नहीं आया। आखिरकार जीवन-मौत से जूझते हुए उसकी मौत हो गई। इन दोनों घटनाओं में यही समानता थी कि पीड़िता को बचाने कोई भी सजग सतर्क नागरिक आगे नहीं आया था। यह या तो डर है या लोग कायर हैं।
हमारे देश का हाल यह हो गया है कि न तो हम अपने धर्म के मूल पर चलना चाहते हैं और न ही चिंतन करना चाहते हैं। इसी का नतीजा है कि लोगों को अब सियासी सत्ता और उनके समर्थकों से डर लगने लगा है। सरकारी तंत्र लोगों को डराने का माध्यम बन चुका है। डरे दुबके लोग आंखों के सामने होते बलात्कार का विरोध करने की हिम्मत नहीं कर रहे। वे लोग सोशल मीडिया पर गुस्सा दिखाते हैं मगर सरकार से डरते हैं। यही कारण है कि वो हिंसक घटनाओं का भी समर्थन करते दिखते हैं। चार माह से कश्मीर नजरबंदी की हालत में है। उसे पुलिस स्टेट में तब्दील कर दिया गया है। ऐसे लोग उस पर चर्चा करने को भी तैयार नहीं हैं। उन्हें वहां के लोगों का दर्द महसूस नहीं होता। हमारी हालत यह है कि हमें इस बात से कोई सरोकार नहीं कि वहां के लोग मरें या जियें। जब जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में फीस बढ़ा दी जाती है, वहां के विद्यार्थी विरोध करते हैं तो पुलिस उनको जमकर पीटती है। देश की जनता खामोशी से सब देखती है मगर किसी का खून नहीं खौलता। पुलिस मनमानी तरीके से चार बलात्कार के आरोपियों को मार देती है और गढ़ी हुई कहानी सुनकर भी हम उद्वेलित नहीं होते। देश में सवा लाख से अधिक बलात्कार के मामले लंबित हैं, तो क्या हम उन सब को मुठभेड़ में मार डालें? क्या देश में जंगलराज है? क्या हम उन सांसदों और विधायकों को भी मार डालें जिन्होंने महिलाओं के साथ अभद्र आपराधिक आचरण किया है। ऐसे माननीयों की तादाद आधा सैकड़ा है। इस वक्त देश में हर साल 40 हजार महिलाएं/बच्चियां बलात्कार का शिकार हो जाती हैं। यह संख्या दर्ज मामलों की है, जो दर्ज ही नहीं हो सके, उनकी संख्या बहुत अधिक है।
वसुधैव कुटुम्बकम् की मूल धारणा वाले देश का हाल यह है कि यहां के सांसदों ने नागरिकता अधिनियम में धर्म के आधार पर संशोधन के प्रस्ताव को पास कर दिया। भारत देश की पहचान अब बलात्कारी, नागरिक अधिकारविहीन और हिंसक समाज से होने लगी है। संसद और विधानसभाओं में लोकहित के नाम पर सिर्फ मदारी का खेल चल रहा है। अभिनेत्री से सांसद बनी जया बच्चन संसद में मॉब लिंचिंग करने की बात करती हैं तो केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी बलात्कार की घटनाओं दुख जतातने के बजाय पीड़ितों की आवाज उठाने वाले विपक्ष पर हमला करती दिखती हैं। न्यूज मीडिया की हालत यह है कि वह सिनेमाघर की तरह मनोरंजन करने वाला अधिक नजर आता है। कोई चैनल बलात्कार की घटना का सजीव चरित्र चित्रण करने लगता है, तो कोई सरेआम की गई आरोपियों की हत्या को एक इवेंट बनाने में जुट जाता है। हमारे देश की जनता भी कम नहीं है। वह हत्याओं पर जश्न मनाती दिखती है। सभी अपने चश्मे से पुलिस स्टेट बनते देश को देखकर सोशल मीडिया पर तालियां बजाते हैं। दुख तब होता है जब संविधान के सच्चे अंतर्मन से अनुपालन की शपथ लेकर कैबिनेट मंत्री की ऊंची कुर्सी पर बैठने वाले सदन में कोरा झूठ बोलते हैं। हालिया घटना यह है कि झारखंड की एक चुनावी सभा में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने बलात्कार की घटनाओं पर सरकार को घेरा। इसे लेकर केन्द्रीय मंत्री स्मृति इरानी ने सदन को गुमराह करते हुए पूरी तरीके से मनगढ़ंत बयान दिया और दावा किया कि ऐसा सदन के सदस्य राहुल गांधी ने कहा है। जबकि जिन्होंने देखा और पूरा भाषण सुना, राहुल ने कहीं पर भी नारी अस्मिता के खिलाफ कुछ नहीं बोला था। आखिर क्या हो गया है हमारे समाज को, वह इतना क्यों डर गया है कि सच नहीं बोल सकता, क्या उसकी नैतिकता-मानवता खत्म चुकी है, उनका जमीर मर चुका है? क्योंकि जो और जैसा घट रहा है, उसको देखकर तो यही लगता है।
हम किसी सरकार या नेता को दोषी ठहरायें, यह गलत होगा क्योंकि उन नेताओं और सरकार को गलत करने की छूट हमने ही दी है। एक बार गलती हो जाती है, मगर बार बार नहीं। हमारे देश और समाज ने सब देख समझकर अपनी गलती दोहराई है। उसका नतीजा है कि सरकार को अब जनहित के लिए काम न करने का जनादेश नहीं मिला है बल्कि धार्मिक बंटवारे का जनादेश मिला है। राष्ट्रवाद के नाम पर हत्या करने का मिला है। मनमानी तानाशाही करने का मिला है। हम लोकतंत्र में रहते हैं। लोक ही तय करता है कि किसको सत्ता की चाबी और क्यों देनी है। जब समाज की सोच बदल चुकी है। उसने अराजकता को जनादेश दिया है तो फिर डरावना, मानवता और नैतिकता विहीन देश-सत्ता का हो जाना स्वाभाविक है। जब यह हालात बनेंगे तो समझ लीजिए, जो भी विरोधी स्वर में आवाज उठाएगा, उसकी आवाज दबाने के लिए कुछ भी किया जाएगा। सरकार जानती है कि यह सब करने के बाद भी कायर और नैतिकताविहीन जनता मौन साधे रहेगी। यही हमारी विडंबना है, जो हिंदू धर्म के मूल को ही नष्ट करने में मददगार हो रही है।
जयहिंद
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(लेखक आईटीवी नेटवर्क के प्रधान संपादक हैं)