Hindi speaking states cannot lose any other Sushant: हिन्दी भाषी राज्य किसी और सुशांत को नहीं खो सकते

0
323

प्रतिभाशाली अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद हिन्दी फिल्म एवं टीवी इंडस्ट्री में मौजूद भाई-भतीजावाद, नेक्सस और आर्थिक आतंकवाद की चर्चा एक बार फिर सतह पर आ गई है। सुशांत की आत्महत्या के कारणों को समझने से पहले कुछ उदाहरण से इंडस्ट्री की उठा-पटक और नेक्सस को समझा जा सकता है। विवेक ओबेराय, नील नितिन मुकेश इसके बेहतरीन उदारहण हैं। ऐश्वर्या राय को लेकर विवेक ओबेराय और सलमान खान के बीच विवाद हुआ। टैलेंट होते हुए भी विवेक ओबेराय का करियर ग्राफ इसलिये परवान नहीं चढ़ पाया कि उन्होंने ‘दबंग खान’ से पंगा लिया और इस नेक्सस की भेंट चढ़ गये। एक कार्यक्रम में शाहरुख खान एवं सैफ अली खान ने नील नितिन मुकेश से सरनेम पूछते हुए मजाक उड़ाया। नील ने पलट कर जवाब देते हुए इसे अपना इनसल्ट बताया, और दोनों खान बंधुओं के खरी-खरी बोल के उनके चेहरे पर हवाइयां उड़ा दी। इस घटना के बाद नील नितिन मुकेश का करियर ग्राफ भी उड़ान नहीं भर सका। निर्देशक अभिनव कश्यप भी इसी नेक्सस के शिकार बने। अभिनव ने तो साफ साफ आरोप लगाया कि सलमान खान एंड फैमिली ने उनका करियर को तबाह कर दिया। मायानगरी में ऐसे और भी तमाम उदाहरण मौजूद हैं। सपनों को बेचने वाले ग्लैमर के इस फील्ड का चेहरा बाहर से जितना रंगीन और चमकदार है, उसके नेपथ्य में चलने वाले खेल और साजिशें उतनी ही गंदी एवं जानलेवा हैं। पटना जैसे मध्यम शहर से आकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाले सुशांत इसी साजिश की चपेट में आकर अपनी इहलीला समाप्त कर बैठे। फिल्म समीक्षक एवं एक्टर कमाल आर खान ने कुछ महीने पहले एक ट्वीट किया था, जिसमें उन्होंने खुलासा किया था कि यशराज फिल्म के साथ-साथ साजिद नाडियाडवाला, धर्मा प्रोडक्शन, टी सीरीज और बालाजी प्रोडक्शन ने सुशांत सिंह राजपूत को बैन कर दिया है ताकि वे केवल वेब सीरिज और टीवी तक ही सिमट कर रह जायें। इसके पीछे जो कारण सामने आ रहा है, उसमें केवल यशराज फिल्म्स का इगो सटिसफाइड नहीं होना बताया जा रहा है, क्योंकि सुशांत सिंह राजपूत ने शेखर कपूर की फिल्म पानी में रोल करने के लिये यशराज फिल्म्स के एक प्रोजेक्ट को करने से इनकार कर दिया था। बस यही इनकार सुशांत के करियर और आखिर में जिंदगी पर भारी पड़ गई। यशराज फिल्म्स ने अपने कैंप से बाहर करते हुए पहले सुशांत को बेफिक्रे से बाहर किया, उसके बाद शेखर कपूर की पानी को प्रोड्यूस करने से भी हाथ पीछे खींच लिया। इसी दौरान धर्मा प्रोडक्शन के बैनर तले बनी सुशांत की फिल्म ड्राइव को करन जौहर ने 7 सितंबर 2018 को सिनेमा हॉल में रिलीज करने की घोषणा की, लेकिन अचानक इसे रोक दिया गया। यह फिल्म एक साल दो महीने बाद 1 नवंबर 2019 को नेटफिल्क्स पर रिलीज हुई। फिल्मी दुनिया में माना गया कि यह सुशांत को अशांत करने की कोशिशों का ही हिस्सा था। बड़े प्रोडक्शन हाउसों का नेक्सस  आउटसाइडर्स को ऊंचा उड़ान भरने से रोकने के लिये खुद का पैसा लगाकर भी डूबाने में हिचक नहीं दिखाता है। ड्राइव ऐसी ही किसी कोशिश का नतीजा था। कांग्रेसी नेता संजय निरुपम तो साफ कहते हैं कि पिछले छह महीने में सुशांत के हाथ से साइन की गई सात फिल्में छीन ली गईं। यह केवल इत्तेफाक नहीं हो सकता है बल्कि यह इसी नेक्सस के सक्रिय हो जाने का नतीजा है। यह नेक्सस नेपोटिज्म के बाहर के कलाकारों को उपेक्षित करता है। पार्टियों में बेइज्जत करता है। मजाक उड़ाकर उनके हौसले तोड़ता है। उन्हें एहसास कराता है कि वह नाकाबिल हैं। सुशांत की मौत के बाद ट्विटर पर करन जौहर, आलिया भट्ट तथा बॉलीवुड के खिलाफ चले हैशटैग एवं ट्रोल इसी सच के खिलाफ हिन्दी जनमानस का उबाल है। कई लोगों ने करन जौहर और आलिया भट्ट को घड़ियाली आंसू ना बहाने की सलाह तक दे डाली। अब इन लोगों की फिल्मों के बहिष्कार का अभियान भी चलाया जा रहा है। संभव है कि तात्कालिक गुस्सा हो, लेकिन दर्शक अपने इस विरोध पर कायम रहते हैं तो हिन्दी बेल्ट के साठ करोड़ लोगों में इतनी ताकत तो है ही कि वह किसी भी फिल्मी नेक्सस को जमीन पर ला सकते हैं। कई बड़ी फिल्में इस बात की उदाहरण रह चुकी हैं। अंडरवलर््ड और डी कंपनी के इशारे एवं काले धन से संचालित होने वाली फिल्म इंडस्ट्री में भाई-भतीजावाद, गुटबंदी एवं गॉडफादर का बोलबाला अस्सी-नब्बे के दशक में भी था, लेकिन हालात इतने खराब नहीं थे कि कोई कलाकार नेक्सस के चंगुल में फंसकर आत्महत्या कर ले। गुलशन कुमार, दिव्या भारती जैसों की मौत आज भी सवाल है, लेकिन गुलशन की हत्या को डी कंपनी ने अंजाम दिया तो दिव्या भारती की मौत में साजिद नाडियाडवाला की भूमिका आज तक स्पष्ट नहीं हो पाई। बीसवीं सदी के शुरूआती दशक में इंडस्ट्री में अंडरवलर््ड की हनक कम होने के बाद पुराने परिवारों की नई खेप ने एक मजबूत नेक्सस बना लिया।

अनिल सिंह
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)