स्क्रीन टाइम बढ़ने के चलते हिमाचल प्रदेश सहित पंजाब में भी मंदबुद्धि बच्चों की संख्या में हो रहा इज़ाफ़ा,
एम्स मोहाली की इसी महीने की स्टडी के निष्कर्ष चौंकाने वाले हैं , एक दिन में 58 मिनट तक स्क्रीन देखने वाले बच्चे देरी से बोलना सीख रहे हैं, चिड़चिड़े हुए, कार्टून कैरेक्टर की तरह बर्ताव कर रहे हैं।
शिमला। गुरू नानक फाउंडेशन के डॉ. जसविंदर सिंह ने सोमवार को यहां प्रेसवार्ता कर हिमाचल प्रदेश व पंजाब में मंदबुद्धि बच्चों की बढ़ती संख्या पर चिंता व्यक्त की और फ्लावर व हर्बल एक्सट्रेक्ट द्वारा सफल रिसर्च की जानकारी दी।
डॉ. जसविंदर सिंह ने कहा कि न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर ,ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम विकार, स्पीच डिसऑर्डर व सेरेब्रल पालसी का इलाज जालंधर में हर्बल व फ्लॉवर चिकित्सा की मदद से किया जा रहा है। इस पद्धति से उपचार की प्रक्रिया काफी मददगार साबित हो रही है। यह उपचार जरूरतमंद बच्चों के लिए पूरी तरह निःशुल्क है।
गुरू नानक चैरिटेबल फाउंडेशन व ईबाईओ केयर संस्था के फ़ाउंडर डॉ. जसविंदर सिंह ने इंडियन पीडिएट्रिक जर्नल की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि भारत में 68 में से एक बच्चा ऑटिज़म से ग्रसित है और यह संख्या तेज़ी से बढ़ती जा रही है। इसलिए इस विषय पर गंभीर चर्चा व एविडेंस बेस्ट रिसर्च की आवश्यकता है, जिस पर वह लगातार प्रयासरत हैं।
उन्होंने बताया कि एम्स मोहाली की इसी महीने की स्टडी के निष्कर्ष चौंकाने वाले हैं। एक दिन में 58 मिनट तक स्क्रीन देखने वाले बच्चे देरी से बोलना सीख रहे हैं। उन्होंने कहा कि ये बच्चे चिड़चिड़े हुए, कार्टून कैरेक्टर की तरह बर्ताव कर रहे हैं। वहीं, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ भारत सरकार की स्टडी का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि 1-10 वर्ष के रुरल, अर्बन व ट्राइबल 28070 बच्चों में से 43 बच्चों में ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसआर्डर पाया गया है, यानि ऑटिज़्म अब गांवों में भी पनप चुका है।
डॉ. जसविंदर सिंह ने कहा कि एलोपैथी में जिन असाध्य रोगों का उपचार नहीं होता है, उनके लिए उपचार की आखिरी किरण हर्बल व फ्लॉवर चिकित्सा बनती जा रही है। जालंधर के डॉ. जसविंदर सिंह जिन्हें हॉल ही में नेशनल हैल्थकेयर अवार्ड एंड मेंटल हेल्थ एंड वेलनेस एक्सीलेंस अवार्ड इंडियन सीएसआर अवार्ड से नवाजा गया है। उन्होंने अपने करिश्माई काम लिए वर्ल्ड रेकोर्ड भी बनाया है, जिसमें विशेष रूप से सेरेब्रल पाल्सी, ऑटिज्म, स्पीच डिसऑर्डर जैसे जन्मजात या अत्यधिक स्क्रीन टाइम जनित रोगों से पीड़ित बच्चों को इस उपचार से लाभ मिल रहा है।
डॉ जसविंदर सिंह को मुताबिक, “मंदबुद्धि सेरेब्रल पाल्सी में मस्तिष्क डेड होता है। यह गर्भावस्था में ही होता है। हम ऐसी दवाइयां देते हैं, जिससे वह धीरे-धीरे सक्रिय होता है. हर्बल व फ्लॉवर चिकित्सा में मस्तिष्क को सक्रिय करने की क्रियाएं होती हैं।”
डॉ. जसविंदर सिंह ने कहा कि शिमला से आए साढ़े चार साल की वेदिका ऑटिज्म से पीड़ित है। वह कई प्रतिष्ठित अस्पताल में लंबा उपचार करवा चुके हैं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ तो वे उनसे संपर्क किया। उन्होंने कहा कि वे दो बार अपने बच्चे को लेकर आ चुके हैं और लगातार उसमें सुधार हो रहा है। वह बताते हैं कि ऑटिज्म के चलते वह बोलती नहीं थी, लेकिन अब वह बोलने लगी है। उसकी गतिविधियां भी बदल गई हैं।
डॉ. जसविंदर सिंह ने कहा कि चंबा से संजय कुमार के बच्चे को भी पिछले 4 वर्षों से ऑटिज्म था, सिर्फ 3 महीने की दवाई से ही बच्चे की हालत में काफी सुधार हुआ है। इससे पहले 4 साल की ऑटिस्टिक थैरेपी से भी कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।