जब कोरोना और भी भयानक रूप से सामने आ रहा हो, दिल्ली में राजनीति-राजनीति खेली जा रही है। दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने 9 जून को एक ट्वीट कर सनसनी फैला दी। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, कि “31 जुलाई तक दिल्ली में कोरोना संक्रमित लोगों का आँकड़ा साढ़े 5 लाख क्रास कर जाएगा, और तब 90 हज़ार बेड की ज़रूरत होगी। उप राज्यपाल महोदय बताएँ, कि इतने बेड कहाँ से आएँगे?” दरअसल यह विवाद शुरू हुआ, उसके दो दिन पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के एक बयान से जब उन्होंने कहा, कि दिल्ली सरकार के सरकारी और निजी अस्पतालों में दिल्ली से बाहर के लोगों का इलाज नहीं होगा। यह अजीबो-गरीब बयान था। दिल्ली में काम कर रहे लोगों में अधिकांश तबका वह है, जो नौकरी तो दिल्ली में करता है, लेकिन रहता वह गुड़गाँव, फ़रीदाबाद या सोनीपत में है। अथवा यूपी के नोएडा एवं ग़ाज़ियाबाद में है। इस पर हंगामा मचा। ख़ुद दिल्ली के उप राज्यपाल को दख़ल करना पड़ा। उन्होंने श्री केजरीवाल का यह फ़ैसला पलट दिया। घोषणा की, कि दिल्ली में कोई भी इलाज करवाने के लिए स्वतंत्र है। चिकित्सक मना नहीं कर सकते। इसी बीच मुख्यमंत्री महोदय अस्वस्थ हो गए, और मोर्चा सँभाला उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने। उन्होंने यह ट्वीट कर दिया। इससे दिल्ली में पैनिक फैल गया। लोग घर से बाहर निकलने में घबराने लगे और सब कुछ अनलॉक कर व्यापार बढ़ाने का सरकार का दांव उल्टा पड़ गया।
दिल्ली की स्थिति यह है, कि यहाँ केंद्र सरकार भी बैठती है और दिल्ली सूबे की अपनी सरकार भी। दोनों के बीच अपनी-अपनी राजनीति है। इसलिए एक-दूसरे को नीचा दिखाने के प्रयास चलते रहते हैं। दिल्ली सरकार के पास अधिकार सीमित हैं। पुलिस उनके पास नहीं है। और वे दिल्ली की ज़मीन का लगान तो वसूल सकते हैं, किंतु ज़मीन को ख़रीद-बेच नहीं सकते। दिल्ली में 1993 से विधान सभा है। लेकिन पूर्व के मुख्यमंत्रियों- मदन लाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा, सुषमा स्वराज और शीला दीक्षित को कभी कोई शिकायत नहीं रही। सबसे लम्बा कार्यकाल शीला जी का रहा। क़रीब 15 वर्ष का। इसमें छह साल वे रहे जब केंद्र में उनके विरोधी दल की सरकार थी। लेकिन उनके साथ केंद्र से कभी कोई पंगा नहीं हुआ। किंतु अरविंद केजरीवाल की न तो 2013 में केंद्र की मनमोहन सरकार से पटी न मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार से। 2013 में उन्हें पूर्ण बहुमत नहीं था, सरकार कांग्रेस के बूते चल रही थी। लेकिन तब मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने गृह मंत्री सुशील शिंदे से पंगा लिया। सरकार नहीं चल पाई। इसके बाद हुए चुनाव में केजरीवाल की पार्टी- आम आदमी पार्टी को ज़बरदस्त बहुमत मिला। इसके बाद से उनका केंद्र से झगड़ा होता ही रहा। इन दोनों के बीच के झगड़े से दिल्ली की जनता पिस रही है।
लेकिन ऐसे कोरोना काल में न सिर्फ़ दिल्ली की जनता को बल्कि पूरे देश में सभी को अपने को बचा कर रखना है। खान-पान और किसी के क़रीब जाने से भी। तथा अपनी प्रकृति को भी, क्लाईमेट को भी। अब एक बात तो साफ़ है, कि कोरोना अब भले घटे या बढ़े, लेकिन कोरोना ने अपने भय ने दिल्ली के आसमान को साफ़ कर दिया है। मैं दिल्ली में पिछले चार दशक से रह रहा हूँ, और तब से यह पहला साल है, जब आसमान इतना साफ़ रहा। लगता है, प्रकृति मानों अपने सारे वैभव के साथ प्रकट है। बहुत अच्छा लगा। भले प्रकृति को उसका यह स्वरूप मानव ने ख़ुद सौंपा हो। क्योंकि कोरोना से भयभीत मनुष्य अब प्रकृति से खिलवाड़ नहीं कर रहा। यूँ भी स्वास्थ्य का संबंध बहुत कुछ आपके खानपान और आचार-विचार से है और वह औषधियों से अलग है। व्यक्ति दवाएं खाकर भी बीमार रहता है और बिना दवाएं खाए भी एकदम स्वस्थ। प्रकृति का हर प्राणी स्वस्थ रहने के उपाय करता है और वह प्राकृतिक उपाय होते हैं। जल-थल और नभचर सब के सब स्वस्थ रहने के लिए कोई न कोई प्राकृतिक उपाय करते ही हैं और ये उपाय उन्हें उनकी परंपरा से मिल जाता है जिसके लिए उन्हें किसी विशेष ट्रेनिंग के नहीं मिलती। मसलन किसी भी वन्य प्राणी को चोट लगने पर वह कोई न कोई झाड़ी या प्राकृतिक पौधे का सहारा लेता है और कुछ दिनों बाद वह भला-चंगा हो जाता है।
रहीम का एक दोहा है- रहिमन बहु भेषज करत, ब्याधि न छाँड़ै साथ। खग-मृग बसत अरोगबन हरि अनाथ के नाथ।। यानी जंगल में बसने वाले प्राणियों की रक्षा हरि भगवान स्वयं करते हैं और यह भगवान और कोई नहीं प्रकृति ही है। प्रकृति की मदद से निरोग रहने का यह उपाय हमें हमारी परंपरा और अनुभव सिखाता है। जब भी कोई तकलीफ होती है हमारे पास प्रकृति का इलाज भी रहता ही है। आप ज्यादा दूर न जाएं अपनी रसोई में ही हमें तमाम ऐसे नुस्खे मिल जाएंगे जो बीमारी से लडऩे में मुफीद हैं। हमारे खानपान की हर चीज किसी न किसी नुस्खे से जुड़ी है। यह इसलिए क्योंकि यह अनुभव जनित ज्ञान है। शीत ऋतु में पेट में दर्द हो तो हमारी दादी-नानी डॉक्टर के पास ले जाने के पहले अजवाइन और काला नमक देती थीं। हम पाते थे कि उनका यह नुस्खा किसी भी डिग्रीधारी डॉक्टर के पर्चे से अधिक कारगर होता था। बच्चा बहुत रो रहा है और माँ परेशान है तो अचानक कोई बड़ी-बूढ़ी प्रकट होती थी और वह हींग का लेप बच्चे की नाभि पर लगा देती और हम पाते कि बच्चा चुप और मजे से खेलने लगता। ऐसे एक नहीं असंख्य उपाय हैं जो प्रकृति ने हमें दे रखे हैं बस उन्हें सहेजना है और समझना है। जीवन में अनुभव से बड़ी कोई सीख नहीं है।