Heatwave से हर वर्ष दुनिया में 1.53 लाख लोगों की मौत, हर 5 में एक मौत भारत में

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हीटवेव से हर वर्ष दुनियाभर में 1.53 लाख लोगों की मौत, हर 5 में एक मौत भारत में।

Aaj Samaj (आज समाज), Heatwave, नई दिल्ली: दुनियाभर में हीटवेव यानी लू के कारण हर वर्ष 1.53 लाख से ज्यादा लोग काल का ग्रास बन रहे हैं, जो चिंता का विषय है। एक अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है और रिपोर्ट के मुताबिक भारत के लिए भी स्थिति चिंताजनक है। इसमें बताया गया है कि 1.53 लाख लोगों की मौत में पांचवा सबसे बड़ा हिस्सा भारत से है। यानी लू से हर पांच में एक मौत भारत में हो रही है।

आंकड़े 1990 के बाद के 30 वर्षों के

आस्ट्रेलिया के मोनाश विश्विद्यालय के शोध के अनुसार ये आंकड़े 1990 के बाद के 30 वर्षों के हैं और इनके अनुसार भारत में हर साल हीटवेव लू से लगभग 30,000 लोगों की मौत हो रही है। शोध में बताया गया है कि हर वर्ष होने वाली 1.53 लाख मौतों में से 14 प्रतिशत लोगों की मौत चीन में होती हैं, जबकि रूस में 8 प्रतिशत लोगों की मौत होती है। रिसर्च में चीन और रूस को भारत के बाद रखा गया है।

हर वर्ष गर्मी में होती हैं 1,53,078 लाख लोगों की मौत

अध्ययन की रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में 1990 से 2019 के बीच हर वर्ष गर्मी के मौसम में 1,53,078 लाख लोगों की मौत हुई। इनमें से 50 प्रतिशत लोगों की मौत एशिया, जबकि 30 फीसदी लोगों की मौत यूरोप महाद्वीप में होती हैं। इसके अलावा, सबसे बड़ी अनुमानित मृत्यु दर शुष्क जलवायु व निम्न-मध्यम आय वाले क्षेत्रों में दर्ज की गई है। यह आंकड़ा कहता है कि दुनियाभर में प्रति दस लाख लोगों में से 236 लोगों की मौत लू की वजह से होती है।

अत्यधिक लू चलने के औसत दिनों में बढ़ोतरी

शोधकर्ताओं ने अध्ययन के लिए ब्रिटेन स्थित मल्टी-कंट्री मल्टी-सिटी (एमसीसी) अनुसंधान नेटवर्क के आंकड़ों का इस्तेमाल किया। इनमें 43 देशों की 750 जगहों में हर दिन होने वाली मौतों का अध्ययन शामिल है। अध्ययन में बताया गया है कि 1999 से लेकर 2019 के बीच दुनियाभर में अत्यधिक लू चलने के औसत दिनों में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। यह आंकड़ा औसत 13.4 दिन से बढ़कर 13.7 दिन हो गया है।

पृथ्वी पर हर दशक में तापमान भी .35 डिग्री बढ़ रहा

अध्ययन में यह भी पाया गया है कि पृथ्वी पर हर दशक में तापमान भी .35 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है। शोधकतार्ओं ने कहा कि इससे पहले हुए अध्ययनों ने स्थानीय स्तर पर लू के कारण मौतों के बारे में बताया गया लेकिन इन अध्ययनों में दुनिया भर में होने वाली मौतों का आंकड़ा जारी नहीं किया गया था।

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