जगदीश, नवांशहर:
सिविल सर्जन डा. देविंदर ढांडा के कुशल नेतृत्व में स्वास्थ्य विभाग की ओर से आज 37वें नेत्रदान पखवाड़े का शुभारंभ किया गया। इस पखवाड़े का मुख्य उद्देश्य नेत्रदान के महत्व के बारे में आम जनता को जागरूक करना और लोगों को नेत्रदान से जुड़े मिथकों और भ्रांतियों से अवगत कराना है।
मृत्यु के 6 से 8 घंटे तक होना चाहिए नेत्रदान
सिविल सर्जन डा. देविंदर ढांडा ने आज पखवाड़े के अवसर पर राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय भारत कला में आयोजित जागरूकता समारोह में बोलते हुए कहा कि नेत्रदान किसी जरूरतमंद व्यक्ति के अंधकारमय जीवन में प्रकाश ला सकता है।सिविल सर्जन डा. देविंदर ढांडा ने आगे कहा कि नेत्रदान जैसा कोई दान नहीं है। नेत्रदान मृत्यु के बाद ही किया जाता है। मृत्यु के 6 से 8 घंटे के भीतर नेत्रदान कर देना चाहिए। किसी भी उम्र में चाहे चश्मा पहना हो, आंखों का आॅपरेशन हो चुका हो, आंखों में लेंस हो, आंखों का दान किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि नेत्रदान से एक व्यक्ति दो लोगों को रोशनी दे सकता है।
बीमारी के दौरान नहीं होता नेत्रदान
उन्होंने यह भी बताया कि एड्स, पीलिया, ब्लड कैंसर और ब्रेन फीवर में नेत्रदान नहीं किया जा सकता है। राज्य में अनुमानित तीन लाख लोग अंधेपन के शिकार हैं। इनमें से कई लोग पुतली रोगों के कारण आंखों की बीमारियों के शिकार होते हैं। इस प्रकार, यदि कोई व्यक्ति नेत्रदान करता है, तो वह दूसरे व्यक्ति के जीवन को रोशन कर सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, मोतियाबिंद और ग्लूकोमा के बाद, कॉर्नियल रोग आंखों की क्षति और अंधापन का प्रमुख कारण हैं। कॉर्निया एक पारदर्शी झिल्ली होती है जो आंख के सामने के हिस्से को ढकती है। यह एक खिड़की की तरह है, जो प्रकाश को आंख में प्रवेश करने देती है। रोग, चोट, कुपोषण और संक्रमण के कारण कॉर्निया बादल बन सकता है और दृष्टि कम हो सकती है।
कार्नियल से होता है अंधापन
डा. देविंदर ढांडा ने कहा कि कॉर्नियल रोग के कारण होने वाले अंधेपन को प्यूपिल रिप्लेसमेंट सर्जरी (जिसे कॉर्नियल ट्रांसप्लांट या केराटोप्लास्टी भी कहा जाता है) से ठीक किया जा सकता है। जहां मेघयुक्त कॉर्निया को रोगी की आंख में प्रत्यारोपित दाता की आंख से स्वस्थ कॉर्निया द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है। इस अवसर पर जिला टीकाकरण अधिकारी डा. बलविंदर कुमार और जिला समूह शिक्षा एवं सूचना अधिकारी जगत राम ने जिले के लोगों से अपील की कि वे आगे आएं और मृत्यु के बाद नेत्रदान और जरूरतमंदों को दृष्टि का उपहार देने के नेक काम में शामिल हों। उन्होंने यह भी कहा कि नेत्रदान को पारिवारिक संस्कार बना देना चाहिए, क्योंकि यह एक पवित्र कार्य है। इस अवसर पर राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय भरत कला के प्रधानाध्यापक लखवीर सिंह ने भी अपने विचार रखे। इस अवसर पर अन्य लोगों के अलावा डा. बलजीत कौर, मनदीप सिंह, हरकीरत सिंह, अमरजीत कौर, मनदीप कौर सहित अन्य अधिकारी और कर्मचारी उपस्थित थे।
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