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Have you seen Ramayana, do you understand? रामायण देख ली तो समझा क्या!

शनिवार, दो मई को रात 11 बजे दूरदर्शन पर 25 मार्च से निरंतर चल रहा ‘रामायण’ सीरियल समाप्त हो गया, जबकि लॉक-डाउन दो हफ्ते के लिए और बढ़ा दिया गया है। अब इस दो सप्ताह में रामायण जैसा कोई सीरियल दूरदर्शन के पास नहीं है। इस आखिरी शो में एक दृश्य है, राजा राम के दरबार की धरती अचानक फटी, और उससे एक स्वर्ण-खचित सिंहासन पर बैठी अधेड़ उम्र की धरती माता प्रकट हुईं। उन्होंने सीता को अपने अंक में लिया और पुन: धरती में समा गईं। राजा राम अपने सिंहासन से उतर कर जब तक आते, सीता विलुप्त हो चुकी थीं। फिर क्रोध करने से क्या लाभ! अपनी परीक्षा देती-देती थक चुकी सीता के पास और कोई रास्ता भी तो नहीं था। मुझे नहीं पता, यह कथा कितनी सच है, कितनी झूठ! पर चूंकि साहित्य समाज का ही दर्पण होता है इसलिए यह तो मानना ही पड़ेगा कि उत्तर के हिंदुस्तान में कोई राजा राम हुए और उन्होंने तब तक स्वतंत्र स्त्री सत्ता को बंधक बना लिया। इसके लिए कारण भले ही लोकापवाद को बताया गया,  लेकिन लोक की अराजकता पर काबू पाना एक राजा का दायित्त्व भी तो है। राजा राम ने वह दायित्त्व तो निभाया नहीं, उल्टे पग-पग पर सीता की परीक्षा लेते रहे। बहुत वर्षों बाद वाल्मीकि रचित इस राम कथा के अनेक भाष्य हुए तो हर लेखक ने अपने समय के मूल्यों के आधार पर इस कथा का वर्णन किया।
दरअसल पूरे 40 दिनों तक मैंने रामायण बड़े चाव से देखी। हालाँकि वह एक दिन पहले ही उठ गई थी, लेकिन उसका रिपीट पाठ 3 मई को सुबह भी देखा। मैंने उसे देख कर यह समझने का प्रयास किया, और पाया कि सभ्यताओं के संघर्ष में वही सभ्यता जीतती है, जो नए अस्त्र-शस्त्र लेकर आती है। राम पूरे जीवन नए-नए शस्त्रों का अभ्यास करते रहे। यहां तक कि दक्षिण प्रवास में भी वे महर्षि अगस्त्य से कुछ और दिव्य शस्त्रों की दीक्षा लेते हैं। वे धनुष-विद्या में निपुण थे, और उनकी पत्नी सीता भी। ध्यान दें, जब सीता हंसी-हंसी में शिव धनुष उठा लेती हैं, तब मिथिला नरेश राजा जनक घोषणा करते हैं, कि जो भी राजा या राजकुमार यह धनुष उठा लेगा, उसी से मैं अपनी पुत्री सीता का ब्याह करूँगा। यह अजीब घोषणा थी। तब तक लड़की को स्वयं पति चुनने का अधिकार था, लेकिन राजा जनक सीता के स्वयंवर की घोषणा भी करते हैं, और शर्त भी लगाते हैं। अयोध्या के सभी कुमार धनुष विद्या में निपुण थे, लेकिन राम को कई दिव्य शस्त्रों का ज्ञान महर्षि विश्वामित्र भी कराते हैं। अपनी धनुर्विद्या की निपुणता के चलते ही वे ताड़का को मार पाते हैं, और उसके भाई मरीचि को उत्तर से भगा देते हैं। धनुष विद्या उस काल का सबसे आधुनिक शस्त्र था। उस समय तक लोग अस्त्र विद्या अर्थात तलवार या किसी धारदार हथियार का प्रयोग अधिक करते थे। पूरा राक्षस समाज तलवार या कटार का ही प्रयोग करता था। इसके पहले का टॉटेम समाज यानी वानर, रीछ, नाग, गरुड़ आदि सभ्यताएं भी द्वन्द युद्ध में पारंगत थीं। आर्यों में पुरा-पुरुष परशुराम भी परशु यानी फरसे का प्रयोग करते थे। लेकिन अयोध्या में यह नया हथियार मिल गया था। गदा, तलवार, कुठार या फरसा अथवा परशु द्वन्द युद्ध के हथियार हैं। और प्राचीन आदिम समाज इन्हीं का प्रयोग करता था। इन हथियारों से एक आदमी एक बार में एक से ही भिड़ पाता था। लेकिन धनुष से वह एक साथ और दूर रह कर वार करने में सक्षम था। बालि को राम ने छिप कर दूर से मारा था। क्योंकि बालि को यह भी वरदान था, कि वह द्वन्द युद्ध में सामने वाले की आधी ताकत छीन लेता था। बालि के पतन के बाद से यह तय हो गया, कि उत्तर का यह समाज श्रेष्ठ है। जो भी सभ्यता अपने हथियार से कम समय में और कम मनुष्यों के बूते शत्रु पक्ष के ज्यादा लोगों का संहार कर लेंगे, वही सभ्यता विजयी होगी। बालि की पत्नी तारा और रावण की स्त्री मंदोदरी यही समझती है। लेकिन न तो बालि समझ पाया न रावण।
आधुनिक शस्त्र विद्या के चलते कोई भी सभ्यता अपना ज्यादातर समय सिर्फ अपने अस्तित्त्व को बचाये रखने में नहीं लगाएगी इसलिए खाली समय में वह जीवन की अन्य विधाओं पर भी ध्यान देगी। जैसे कि नृत्य, संगीत, साहित्य आदि कलाएं तथा वैद्यक, शोध और निर्माण आदि विज्ञान। राक्षस समाज में रावण के कुल को धनुर्विद्या का कुछ ज्ञान था, और इसके लिए रावण ने बहुत समय लगाया, इसलिए अंतिम समय में वह सक्षम और सबल हो सका। उत्तर के आर्य भी रावण से भयभीत रहते थे, इसलिए उन्होंने अपना सारा समय शत्रु को दूर से खत्म कर देने के हथियार खोजने में लगाए। वे सफल भी रहे। राक्षसों और टॉटेम समाज के नष्ट होने का कारण यही धनुर्विद्या बनी।
सीता प्रसंग : सीता जनक-तनया तो थीं, लेकिन जनकात्मजा नहीं थीं। वे मिथिला नरेश राजा जनक की पालित पुत्री थीं। सीता को राजा जनक ने भूमि से पाया था, इसीलिए सीता को भूमिजा भी कहा गया है।  ‘तात जनक-तनया यह सोई!’ सीता को जनक तनया, जनक दुलारी, मिथिलेश कुमारी तो कहा गया है, लेकिन जनकात्मजा नहीं। उस समय आर्य, गरुड़, नाग, असुर अनेक जातियों के शिशु राह पर छोड़ दिए जाते थे। उस समय का समाज रक्त-शुद्धता पर जोर देने लगा था, इसलिए अनुलोम या प्रतिलोम संसर्ग के बच्चों का कोई धनी-धोरी नहीं होता था। सीता अति बुद्धिमती और अपूर्व बलशाली थीं। उन्होंने शिव के धनुष को यूं ही उठा लिया था।

शंभूनाथ शुक्ल
(लेखक वरिष्ठ संपादक हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)

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