- हरियाणा की स्थापना दिवस पर विशेष -सिर पर नहीं सजा राजधानी का ताज
- 55 साल बाद भी नहीं मिल पाया अलग हाईकोर्ट
प्रवीण वालिया, करनाल :
म्हारा हरियाणा इब 56 साल का होग्या से। देसा मा देश हरियाणा जित दूध दही का खाना। इस हरित प्रदेश पर लालों की नजरें इनायत रही हैं। पंडित भगवद दयाल शर्मा से लेकर चौधरी बंसी लाल, ताऊ देवीलाल, भजन लाल , ओम प्रकाश चौटाला, भूपेंद्र सिंह हुड्डा से लेकर मनोहर लाल तक का जलवा रहा है ।
55 साल बाद भी नहीं मिल पाया अलग हाईकोर्ट
इस प्रदेश ने राजनीति के पंडित भजनलाल दिए तो बंसी लाल भी सत्ता पर काबिज रहे। 22 जिलों वाला यह राज्य सबसे अनूठा है।आज इसके सिर पर राजधानी का ताज नही है। ना ही हाई कोर्ट है अपना आज यह टीस है दिल में । गुरुग्राम के रूप में आधुनिक शहर कुरुक्षेत्र के रूप में धर्म और ज्ञान का संग्रह है हरियाणा के पास। हरियाणा की कल्चर अपना देश अपना माटी। भोला और ज्ञानी हरियाणा। 55 सालों में यह प्रदेश फर्श से अर्श पर पहुंच गया। इस राज्य ने सबसे ज्यादा रणबांकुरे दिए इस देश को। इस राज्य ने खेलों में अधिेक पदक दिलाए। सबसे ज्यादा खेल रत्न दिये अब डॉक्टर और इंजीनयर भी यह राज्य दे रहा है। हरियाणा 56 साल का हो गया। इन 55 वर्षो में हरियाणा ने कई क्षेत्रो में तरक्की की तथा देश में नम्बर वन राज्य कई मायनों में बना। लेकिन हरियाणवीं लोगों के दिलों में आज भी इस बात की टीस है कि 55 वर्ष गुजरने के बाद भी हरियाणा को न तो अपनी राजधानी मिली और न ही अपना अलग अलग हाईकोर्ट। जो राज्य 22 साल पहले अस्तित्व में आए थे। उन राज्यों का अपना अलग हाईकोर्ट और अलग राजधानी है। लेकिन हरियाणा 55 साल पहले पंजाब से अलग हुआ था।
उस समय हरियाणा में एस.वाई.एल विवाद, राजधानी और हाईकोर्ट का मसला प्रमुख रूप से मुंह बाएं खड़े थे। उस समय यह तय हुआ कि पंजाब और हरियाणा की राजधानी एक ही होगी। बाद में पंजाब को पंजाबी भाषी राज्य सौंप दिए गए और यह बात तय हुई कि हरियाणा को चंडीगढ़ मिल जाएगा। जहां पहले से ही हाईकोर्ट था। लेकिन चंडीगढ़ आज तक हरियाणा को नहीं मिला। 55 साल से हरियाणा इस बात के इंतजार में है कि कब हरियाणा में चंडीगढ़ मिल जाए।
हाइकोर्ट और राजधानी के लिए करनाल से ज्यादा बेहतर स्थान कोई नहीं
पिछले 55 सालों में अधिकत्तर कांग्रेस और इनैलो के साथ-साथ लोकदल सत्ता में रही। लेकिन हरियाणा को चंडीगढ़ नहीं मिला। न ही अलग से हाईकोर्ट मिला। प्रदेश की तत्कालीन सरकारों ने भी प्रदेश को अलग से राजधानी देने और हाईकोर्ट बनाने के लिए कोई प्रयास नहीं किए। जबकि केन्द्र सरकारें इसके लिए राज्य को पैसा देने के लिए तैयार थी। हरियाणा में हाइकोर्ट और राजधानी के लिए करनाल से ज्यादा बेहतर स्थान कोई नहीं था। इसकी दावेदारी सबसे मजबूत थी। लेकिन आज तक हरियाणा को न तो अलग से राजधानी मिली ओर न ही हाईकोर्ट एस.वाई.एल का पानी भी राजनीति के बीच फंसा रहा। दक्षिण हरियाणा इस सबसे जूझ रहा है। गुडगांव और फरीदाबाद के अलावा 53 सालों में हरियाणा में न तो कोई बड़ी इंडस्ट्रीज विकसित हो पाई और न ही संस्कृति सहजने के लिए कोई बड़ा संस्थान मिल पाया। करनाल और कुरुक्षेत्र सांस्कृतिक धार्मिक राजधानी होने के बाद भी यहां पर न तो पर्यटन विकसित हो पाया है ओर न संस्कृति। अब यहां के लोगों को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और सी.एम मनोहर लाल खट्टर से अपेक्षाएं है कि वह इस प्रदेश को राजधानी और हाईकोर्ट दिलाने में सफल होंगे।
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