- पर्दा प्रथा की बेड़ियां तोड़ हरियाणा की पहली महिला सरपंच बनी थीं धनपति, वर्ष 1978 में प्रतिद्वंदी पुरुष उम्मीदवार को पांच सौ मतों से हरा कर बनी थी पहली महिला सरपंच
इशिका ठाकुर,करनाल:
पर्दा प्रथा की बेड़ियां तोड़ हरियाणा की पहली महिला सरपंच बनी थीं धनपति, वर्ष 1978 में प्रतिद्वंदी पुरुष उम्मीदवार को पांच सौ मतों से हरा कर बनी थी पहली महिला सरपंच.
दशक पहले महिलाओं को पर्दे तक ही सीमित रखा
राजनीति में कई दशक पहले महिलाओं को पर्दे तक ही सीमित रखा है और जब कोई महिला राजनीतिक रूप से पंच अथवा सरपंच के पद पर जीत हासिल कर लेती थी तो भी वह प्रमुखता से अपने काम को नहीं कर पाती थी। बल्कि होता यह था कि जब महिला पंच अथवा सरपंच के पद पर बैठ जाती थी तो उसके सभी दायित्व को परिवार का कोई भी पुरुष सदस्य पंच अथवा सरपंच महिला का प्रतिनिधि बनकर कार्यों को करता था। कई मामलों में तो अक्सर देखा गया है कि संबंधित गांव के लोग महिला सरपंच अथवा पंच के चेहरे को भी ठीक से नहीं पहचानते थे।
लेकिन अब लगातार बदलते परिवेश में महिलाओं ने राजनीति में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाना शुरू कर दिया है ऐसा ही एक उदाहरण करनाल के गांव अंगद की धनपति देवी ने प्रस्तुत किया है धनपति देवी ने ना केवल घूंघट की सीमाओं से बाहर आकर सरपंच बनाने का गौरव प्राप्त किया है गांव अंगद की धनपति देवी ने 1978 में सरपंच के पद पर बैठने का गौरव प्राप्त किया तथा 1983 तक लगातार गांव की चौधर संभाल कर रखी।
गांव अंगद की पूर्व सरपंच धनपति देवी अब इस दुनिया में नहीं है
स्वर्गीय धनपति देवी के पुत्र एडवोकेट राममूर्ति शर्मा ने बताया कि जिस समय उनकी माता सरपंच बनी तो उनकी उम्र करीब 44 वर्ष थी जब उन्होंने नामांकन भरा तो लोगों ने तरह-तरह के कई सवालिया निशान लगाने शुरू कर दिए लोगों का कहना था कि एक महिला होकर वह गांव के सरपंच के रूप में कार्यों को कैसे संभाल लेंगे लेकिन जैसे ही उन्होंने सरपंच का पदभार संभाला तो गांव के लोगों ने उन्हें अपना भरपूर सहयोग भी दिया और बतौर सरपंच गांव में विकास कार्य किए गए जितने लोग आज भी याद करते हैं।लंबे समय के अंतराल के बाद एक बार फिर गांव अंगद में सरपंच पद महिला के लिए आरक्षित है।
एक संयोग था जब धनपति देवी ने किया था नामांकन
राममूर्ति के अनुसार पिता स्वर्गीय हरि सिंह भी सरपंच रहे लेकिन 1978 में जब नामांकन भरे जा रहे थे तो पिता किसी कार्य के लिए गांव से बाहर थे नामांकन के अंतिम दिन वह गांव में नहीं पहुंच पाए ऐसे समय में उनकी माता धनपति देवी का नामांकन पत्र सरपंच पद के लिए किया गया था और वह करीब 500 मतों से विजयी भी हुई थी।
एक महिला के सरपंच बनने पर हैरान हुए थे गांव के लोग
गांव अंगद के संतोष शर्मा ने बताया कि जब वह सरपंच बनी तो इलाके में चर्चा का विषय था कि एक महिला सरपंच की पद को कैसे संभाल सकेंगी, लेकिन धनपति देवी ने बखूबी सरपंच पद की जिम्मेवारी निभाई ग्रामीण संतोख शर्मा ने बीते दिनों को याद करते हुए कहा कि उस वक्त गांव में करीब 2000 मतदाता थे और करीब 5000 आबादी थी चुनाव में 2 पुरुषों के सामने धनपति उम्मीदवार के रूप में खड़ी थी लेकिन वर्तमान में गांव में साढे 5000 मतदाता हैं।
धनपति देवी खुद सुनाती थी पंचायत के फैसले
गांव अंगद निवासी सियाराम ने बताया कि उस समय महिलाएं घूंघट में ही रहती थी जब वह सरपंच बनी तो छोटे विवादों को पंचायत स्तर पर ही निपटा देती थी उनकी सूझबूझ से हर कोई प्रभावित होता था उनके सरपंच बनने के बाद महिलाओं को लेकर लोगों की सोच में बड़ा बदलाव आया।
धनपति देवी ने खोले महिलाओं के लिए राजनीति के बंद द्वार
धनपति देवी की उपलब्धियों ने महिलाओं के लिए राजनीति में 1 दरवाजे खोल दिए और कुछ वर्ष बाद पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव में महिलाओं के लिए पद आरक्षित किए जाने लगे और धीरे-धीरे महिलाएं राजनीति में सक्रिय होने लगी ग्रामीणों ने बताया कि प्रदेश की पहली महिला सरपंच होने के कारण आज भी धनपति का चित्र पंचकूला सचिवालय में लगा हुआ है।
साधारण था प्रदेश की पहली महिला सरपंच का जीवन
ग्रामीणों ने बताया कि धनपति साधारण व्यक्तित्व की धनी थी लेकिन काम को लेकर सजगता में उनका कोई मुकाबला नहीं था उनके समय में इलाके में सबसे पहले पक्के शौचालय बने थे और जो खुले में सोच पर पाबंदी की ओर भी धनपति देवी ने पहला कदम बढ़ाया था। अपने सरपंच पद के कार्यकाल में धनपति देवी ने गांव के पांचवी तक के स्कूल को अपग्रेड करवाते हुए स्कूल को दसवीं तक करवाया गया। इसके साथ साथ गांव में निकासी व्यवस्था व गलियों को पक्का करवाने का काम भी उस समय में करवाया गया। निसंदेह गांव अंगद की पहली महिला सरपंच प्रदेश की महिलाओं के लिए राजनीति की एक बड़ी मिसाल हैं।
ये भी पढ़ें :व्हील चेयर क्रिकेट कुंभ उदयपुर में