चंडीगढ़। अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में सरस और क्राफ्ट मेले में विभिन्न राज्यों से आए शिल्पकारों ने अपनी हस्त शिल्पकला को अद्भुत तरीके से सजाने का काम किया गया है। वेस्ट लकड़ी से पोट बनाकर और कारविंग की शिल्पकला को पूरे राष्ट्र में पसंद किया गया। सहारनपुर से आए शिल्पकार जावेद पिछले 10 सालों से महोत्सव में अपनी शिल्पकला के साथ पहुंच रहे है।
एक सरकारी प्रवक्ता ने इस संबंध में जानकारी देते हुए बताया कि ब्रह्मसरोवर के पावन घाटों पर अलग-अलग राज्यों से पहुंचे शिल्पकारों की शिल्पकला पर्यटकों के मन को मोह लिया है। शिल्पकार जावेद से बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि वे अपने साथ लकड़ी का बना साजो-सजावट का सामान लेकर आए है। वे यह सारा सामान नीम, शीशम व टीक की लकड़ी से बनाते है तथा इसको बनाने में कम से कम 2 से 4 दिन का समय लगता है तथा अपनी हस्त शिल्पकला का प्रदर्शन अन्य राज्यों में भी करते है। इस बार वे अपने साथ झूला, कॉफी सेट, टी सेट, रॉकिंग चेयर, रेस्ट चेयर, फ्लावर पोर्ट, कार्नर व स्टूल लेकर आए है।
बनारस के शिल्पकार मोहम्मद हनीफ का महोत्सव के साथ है 25 सालों का नाता
बनारस के शिल्पकार मोहम्मद हनीफ का अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव के साथ 25 सालों का नाता रहा है। इस महोत्सव में 1999 से लगातार आ रहे है और महोत्सव में आने वाली बेटियों और महिलाओं के लिए बनारसी सूट, साड़ी और दुपट्टे तैयार करके लाते हैं। उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक कला केंद्र पटियाला की तरफ से देश के हर शिल्प मेले में आमंत्रित किया जाता है, वो अपनी शिल्पकला को लेकर केवल मेलों में ही जाते हैं। इस शिल्पकला में उनके परिवारों के एक हजार सदस्य लगे हुए हैं, सभी बनारसी साड़ी, सूट व दुपट्टे बनाने का कार्य करते है। उन्होंने कहा कि उनका यह कार्य पुश्तैनी है। सभी सदस्य मेलों में पर्यटकों की मांग को पूरा करने के लिए सूट, साड़ी तैयार करते है।
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