Haryana News : चंडीगढ़। चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्याय हिसार के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के सूक्ष्मजीव विज्ञान विभाग में बायोमेथनेशन एवं अपशिष्ट मूल्यांकन प्रयोगशाला व संशोधित गोबर गैस प्लांट का उद्घाटन किया।
यह प्रयोगशाला राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आर.के.वी.वाई) की वित्तीय सहायता से पुननिर्मित की गई है। प्रो. काम्बोज ने बायोमेथनेशन एवं अपशिष्ट मूल्यांकन प्रयोगशालाह्ण के बारे में बताया कि यह लैब हमारे विश्वविद्यालय के पर्यावरण समृद्धि और स्वच्छता के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।
यह प्रयोगशाला कृषि अवशेषों के मूल्यवर्धक उत्पाद बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। इस प्रयोगशाला में कृषि अवशेषों जैसे पराली, डंठल, छिलके तथा अन्य अपशिष्टों से मूल्यवर्धक वस्तुएं बनाई जाएंगी। जिनमें बायोगैस, बायोइथेनॉल, बायोडीजल, कम्पोस्ट, जैव सक्रिय यौगिक जैसे पॉलीफीनोल्स जो एंट्रीमाइक्रोबियल एवं एंटीआॅक्सीडेंट गतिविधि वाले होते हैं तथा पॉलीहाइड्रोक्सीब्यूरेट का उत्पादन सूक्ष्मजीवों के द्वारा किया जाता है।
इस लैब में कृषि अपशिष्टों के विश्लेषण, बायोगैस के विश्लेषण, मेथेनोजन के विकास के लिए अनारोबिक चेंबर, जैव इंधन उत्पादन के लिए बायोरिएक्टर जैसे उन्नत प्रौद्योगिकी आधारित उपकरण हैं एवं बायोफ्यूल उत्पादन के लिए कृषि खाद्य अपशिष्ट, हरित संश्लेषित नैनोपार्टिकल्स तथा पोल्ट्री अपशिष्ट जैसे विभिन्न योजकों का उपयोग किया जा रहा है। इसका मुख्य उद्देश्य अपशिष्ट पदार्थो के हानिकारक प्रभावों को पर्यावरण तथा मानव स्वास्थ्य पर कम करना है।
इसके साथ ही अपशिष्ट प्रबंधन रोजगार के अवसर प्रदान करने तथा अर्थव्यवस्था में सुधार करने के अवसर भी प्रदान करता है। सूक्ष्म जीव विज्ञान विभाग की वैज्ञानिक डॉ. कमला मलिक को प्रयोगशाला का प्रभारी एवं डॉ. शिखा महता को सह प्रभारी बनाया गया है। मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. नीरज कुमार ने बताया कि भूमि की उर्वरा शक्ति में बढ़ोतरी एवं इंधन की कमी की पूर्ति करने में गोबर गैस प्लांट की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
हकृवि ने गोबर द्वारा चलने वाले जनता मॉडल के बायो गैस प्लांट को संशोधित करके ऐसा डिजाइन तैयार किया है जो ताजे गोबर से चलता है। संशोधित गोबर गैस प्लांट को लगाने से जगह व पैसे की लागत अन्य डिजाइन की अपेक्षा कम आती है। इसे घर के आंगन में भी लगाया जा सकता है।
इस प्लांट को शौचालय के साथ जोडकर गैस की मात्रा व खाद की गुणवत्ता भी बढ़ाई जा सकती है। सलरी में नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटाश की मात्रा गोबर की अपेक्षा अधिक होती है तथा इसका उपयोग करने से भूमि की गुणवत्ता बढ़ती है। इसमें नीम, आक या धतुरे के पत्ते मिलाकर डालने से खेत में कीड़े व बीमारियों का प्रकोप नहीं रहता।
इस अवसर पर विभिन्न महाविद्यालयों के अधिष्ठाता, निदेशक, अधिकारीगण, शिक्षक एवं गैर शिक्षक कर्मचारियों सहित सूक्ष्म जीव विज्ञान विभाग के सभी वैज्ञानिक उपस्थित रहे।
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