अजीत मेंदोला | नई दिल्ली । हरियाणा को लेकर कांग्रेस आलाकमान बुरी तरह से फंस गया है। आलाकमान ने अनुभवी वी के हरिप्रसाद को प्रभारी महासचिव के रूप में जिम्मेदारी तो दे दी, लेकिन वह भी कोई बीच का रास्ता निकाल पाएंगे लगता नहीं है। हरिप्रसाद के सामने पहली चुनौती यही रहने वाली है कि आमसहमति से कैसे प्रदेश अध्यक्ष और विधायक दल के नेता का नाम घोषित करें। बीते 25 साल से गांधी परिवार ही हरियाणा को लेकर दबाव में ही फैसले करता रहा है।

अब देखना होगा राहुल गांधी इस बार हिम्मत दिखा पाते हैं या नहीं। हरियाणा में एक भी गुट को नाराज करना बहुत आसान नहीं है। सूत्रों की माने तो एक गुट के नेता तो पार्टी तोड़ने की धमकी तक देने लगे हैं। ऐसी चर्चा भी है कि कांग्रेस के कुछ विधायक बीजेपी के संपर्क में भी हैं। कांग्रेस की यह हालत पार्टी के सर्वोच्च नेता राहुल गांधी का राज्यों के प्रति उदासीनता बरतने के चलते ही हुई।

कांग्रेस में हार की जिम्मेदारी किसी पर तय नहीं होती

हरियाणा में हुई करारी हार के बाद ही राहुल गांधी जिम्मेदार नेताओं पर कोई कड़ा एक्शन लेते तो स्थिति फसने वाली नहीं होती। लेकिन जैसा कि कांग्रेस में होता आया है कि हार की जिम्मेदारी किसी पर तय नहीं होती वही हरियाणा में भी हुआ। हार के बाद कांग्रेस की सर्वोच्च कार्यसमिति ने हार के कारणों का पता लगाने के लिए छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम भूपेश बघेल और हरीश चौधरी की अगुवाई में समिति भी बनाई।

समिति ने मौखिक रूप से जो समझाना था पता नहीं किसे समझाया। लेकिन दोनों नेताओं को लाटरी जरूर लग गई।बघेल को पंजाब का प्रभारी महासचिव बना दिया गया और पंजाब की करारी हार के चलते प्रभारी सचिव का पद गंवाने वाले हरीश चौधरी को मध्यप्रदेश जैसे बड़े राज्य की फिर से जिम्मेदारी मिल गई। हरियाणा के दिग्गजों के खिलाफ दोनों वैसे भी रिपोर्ट बनाने की स्थिति में नहीं थे। क्योंकि हरियाणा से भी बड़ी हार तब तक महाराष्ट्र में हो चुकी थी।इस हार से आलाकमान की परेशानी और बढ़ गई।

अजय माकन ने भी हुड्डा परिवार के गुणगान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी

क्योंकि किस पर क्या करवाई करें समझ से परे हो गया। महाराष्ट्र में जरूर नया प्रदेश अध्यक्ष घोषित कर दिया गया लेकिन हरियाणा ने टेंशन बढ़ा दिया। हरियाणा चुनाव से पूर्व राहुल गांधी ने पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके सांसद बेटे दीपेंद्र हुड्डा पर आंख बंद कर पूरा भरोसा किया। राहुल के करीबी सलाहकार संगठन महासचिव के सी वेणुगोपाल और कोषाध्यक्ष अजय माकन ने भी हुड्डा परिवार के गुणगान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

क्योंकि इन नेताओं ने चुनाव से पूर्व ही मान लिया था जीत पक्की है।यही नहीं जीत के बाद की योजना भी बनने लगी थी।लेकिन वोटिंग का दिन करीब आते ही इन सभी नेताओं जिनमें राहुल गांधी भी शामिल थे हार का अहसास हो गया था।यही वजह रही कि हार तय देख अजय माकन ने रिश्तेदारों पर दबाव बना कांग्रेस छोड़ चुके अपने रिश्तेदार अशोक तंवर की एक तरह से जबरन कांग्रेस में वापसी कराई।तंवर रिश्तेदारों के दबाव में वापस आ तो गए लेकिन कांग्रेस की तय हार को नहीं टाल पाए।

यहीं से हरियाणा की राजनीति में फिर नया संघर्ष शुरू हुआ।करारी हार के बाद सांसद रणदीप सिंह सुरजेवाला और शैलजा ने हरियाणा कांग्रेस पर अपना दावा ठोक दिया।दोनों नेता चाहते हैं कि अब उनके करीबियों को अध्यक्ष और विधायक दल का नेता पद मिले।लेकिन हुड्डा गुट किसी भी कीमत पर दोनों पद छोड़ने को तैयार नहीं है।वेणुगोपाल और अजय माकन अब राहुल की मदद करने की स्थिति में नहीं है।

दोनों नेता हुड्डा से बिगाड़ेंगे लगता नहीं है। कई किस्से कहानियां हैं। हरियाणा आज के दिन भी उसी स्थिति में बना हुआ जब राहुल गांधी ने ढाई दशक पहले राजनीति में प्रवेश किया था। बीते 25 साल में राहुल और उनकी मां सोनिया गांधी हरियाणा में अपनी मर्जी के हिसाब से कभी फैसले नहीं कर पाए। दूसरों के दबाव में चले। अब देखना होगा राहुल क्या धमकी की अनदेखी कर कड़ा फैसला करेंगे।

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