Haryana Elections: कांग्रेस में 2005 वाले हालात, परिणाम से पहले ही कुर्सी को लेकर खींचतान

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Haryana Elections: कांग्रेस में 2005 वाले हालात, परिणाम से पहले ही कुर्सी को लेकर खींचतान
Haryana Elections: कांग्रेस में 2005 वाले हालात, परिणाम से पहले ही कुर्सी को लेकर खींचतान

Haryana Congress, (अजीत मेंदोला), (आज समाज), नई दिल्ली: हरियाणा में क्या कांग्रेस 2005 वाली स्थिति की तरफ बढ़ रही है। मुख्यमंत्री पद के दावेदारों और कांग्रेस के माहौल से ऐसा लग रहा है। हालांकि परिणाम 8 अक्तूबर को आयेंगे,लेकिन कांग्रेस में अभी से जीत सुनिश्चित मान मुख्यमंत्री पद के कई दावेदार तैयार हो गए हैं।

भजनलाल के चेहरे पर लड़ा जा रहा था चुनाव

2005 के समय भी कमोवेश यही स्थिति थी। चुनाव भजनलाल के चेहरे पर लड़ा जा रहा था, लेकिन कई मुख्यमंत्री पद की उम्मीद लगाने लगे। इनमें प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते भजनलाल तो रेस में थे ही, इनके साथ भूपेंद्र सिंह हुड्डा, चौधरी बीरेंद्र सिंह, कुमारी शैलजा,राव इंद्रजीत सिंह,अजय सिंह यादव और रणदीप सिंह सुरजेवाला आदि सीएम पद के जुगाड में लगे हुए थे। लेकिन दस जनपथ का आशीर्वाद भूपेंद्र सिंह हुड्डा को मिला।

हुड्डा ने दस साल तक प्रदेश में शासन किया

हुड्डा उस समय लोकसभा के सासंद थे और पार्टी आलाकमान ने भजनलाल की तमाम धमकियों को किनारे कर हुड्डा को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया। आलाकमान के आशीर्वाद से हुड्डा ने दस साल तक प्रदेश में शासन किया। लेकिन आज के दिन में और तब के समय में बड़ा अंतर है।उस समय केंद्र में कांग्रेस का राज था।केंद्र में यूपीए सरकार का गठन कर सोनिया गांधी बहुत ताकतवर नेता बन चुकी थी।उनकी अध्यक्षता में पार्टी राज्यों में तेजी सेआगे बढ़ रही थी।आज केंद्र में उल्ट स्थिति है।

2005 में बहुत कमजोर हो चुकी थी बीजेपी

कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व इतना ताकतवर नहीं है कि हरियाणा में कोई प्रयोग कर पाए। इसके अलावा एक बड़ा अंतर और भी है। 2005 में बीजेपी बहुत कमजोर हो चुकी थी। केंद्र में वह चुनाव हार चुकी थी। हरियाणा में उसकी आज जैसी ताकत नहीं थी। तब हरियाणा में एक दशक से चौटाला का राज चल रहा था। भ्रष्टाचार को लेकर उस सरकार के खिलाफ बड़ी नाराजगी थी। जिसका कांग्रेस को लाभ मिला। कांग्रेस भारी बहुमत से जीती। कांग्रेस को 67 सीटें मिली। भजनलाल की नाराजगी के बाद भी 47 विधायकों ने आलाकमान का साथ दिया।

बहुमत से ज्यादा विधायक हुड्डा के साथ गए

बहुमत से ज्यादा विधायक हुड्डा के साथ खड़े हो गए।बाद में भजनलाल राजी हुए फिर रूठे और पार्टी छोड़ कर चले गए।इसके बाद हुड्डा लगातार दो बार मुख्यमंत्री।समय से पहले चुनाव करवा हुड्डा को दूसरे कार्यकाल में बहुमत के लिए जोड़ तोड़ का सहारा लेना पड़ा और पूरे पांच साल सरकार चलाई।2014 में मोदी लहर के बाद देश की राजनीति में बड़ा बदलाव आया है।बीजेपी देश की सबसे ताकतवर पार्टी बन कर उभरी है।

2014 में बीजेपी ने हासिल शानदार जीत

बीजेपी ने शानदार जीत हासिल कर 2014 में मनोहर लाल खट्टर की अगुवाई में सरकार बनाई। जो अब तक चल रही है।अंतर इतना आया 6 माह पहले खट्टर केंद्र में आ गए और नायाब सिंह सैनी को कमान सौंप दी गई। आज केंद्र में बीजेपी की सरकार होने के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा के रूप ताकतवर केंद्रीय नेतृत्व है।

ये ऐसा केंद्रीय नेतृत्व है जो अंतिम वोट पड़ने तक जीत के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ता है। इस चुनाव में संघ ने भी मोर्चा संभाला हुआ है। कोशिश यही है कि बीजेपी समर्थक वोटर किसी तरह से इस बार बूथ तक जरूर पहुंचे और जो दस प्रतिशत भ्रमित वोटर है उसके लिए प्रचार के अंतिम दौर में ताकत लगाई जाए।इसके चलते बीजेपी भी तीसरी बार सरकार बनाने को लेकर निश्चिन्त है।

कांग्रेस में इसलिए है जोश और उत्साह 

कांग्रेस में जोश और उत्साह इसलिए है कि बीजेपी के राज को दस साल हो गए हैं। इन दस साल बीजेपी के खिलाफ एंटी इंकन्वेंसी पनपी है। इसके साथ कांग्रेस मानती है कि किसानों, पहलवानों और बेरोजगारी से नाराज नौजवानों का भी उन्हें फायदा मिलने जा रहा है। इस बीच राहुल गांधी ने नौकरी की तलाश में विदेश गए युवाओं के मुद्दे को भी बेरोजगारी से जोड़ भावनात्मक मुद्दा बना दिया। जबकि पलायन का मुद्दा केवल हरियाणा में ही नहीं पूरे देश में सालों से चला आ रहा है।चमक धमक की चाह में युवा देश छोड़ रहे हैं। इन सब कारणों के चलते कांग्रेस में अभी से जीत का जश्न है।

हुड्डा के चेहरे पर ही लड़ा जा रहा है चुनाव 

चुनाव एक तरह से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के चेहरे पर ही लड़ा जा रहा है।हालांकि पार्टी ने किसी को फेस नहीं बनाया हुआ है,लेकिन टिकट बंटवारे से लेकर प्रचार तक में हुड्डा सब पर भारी हैं। सीएम पद की दावेदारी में इस बार 2005 के मुकाबले सीमित है।2005 के प्रमुख दावेदारों में भजनलाल का निधन हो चुका है।उनके एक बेटे कुलदीप विश्नोई बीजेपी में चले गए। चंद्रमोहन कांग्रेस से चुनाव लड़ रहे।

बीरेंद्र हुड्डा के खिलाफ शैलजा के साथ

चौधरी बीरेंद्र सिंह चुनाव ही नहीं लड़ रहे है, लेकिन हुड्डा के खिलाफ शैलजा के साथ है। राव इंद्रजीत बीजेपी में हैं।अजय सिंह यादव अब ताकतवर नहीं रहे।हुड्डा को आज भी तब के युवा चेहरे रणदीप सिंह सुरजेवाला और शैलजा ही चुनौती देते दिख रहे है।हुड्डा के साथ दोनों नेताओं की भी सीएम पद को लेकर दावेदारी है।लोकसभा में विपक्ष के नेता और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कोशिश तो की है कि कुर्सी को लेकर चल रही खींचतान को छोड़ नेता पार्टी को जितवाने पर ध्यान दें।

गांधी परिवार के करीबी हैं तीनों दावेदार

हुड्डा और शैलजा को एक मंच पर ला फोटो भी खिंचवाया। लेकिन इस तरह की फोटोबाजी राजस्थान,मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में काम नहीं आई थी। उम्मीद की जा रही है हरियाणा में काम आ जाए। खैर 2005 और आज में अंतर यह है कि आज के तीनों दावेदार हुड्डा,शैलजा और सुरजेवाला गांधी परिवार के करीबी हैं।इसमें एक दिलचस्प यह है कि हुड्डा को राजनीति में लाने और आगे बढ़ाने में राजीव गांधी की बड़ी भूमिका थी।

1982 में राजीव गांधी ने  टिकट दिया, भजनलाल ने काट दिया

1982 में राजीव गांधी ने हुड्डा को टिकट दिया,लेकिन भजनलाल ने काट दिया। इसके बाद राजीव गांधी के दखल के चलते उन्हें टिकट मिला।हालांकि हुड्डा तब विधायकी का चुनाव हार गए।उन्हें फिर 1987 में टिकट मिला लेकिन वह चुनाव हार गए।लेकिन गांधी परिवार का भरोसा उन पर कम नहीं हुआ।1991 में हुड्डा ने देवीलाल जैसे ताकतवर नेता को हरा सनसनी फैला दी।उसके बाद फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1996 ,1998 और 2004 का लगातार लोकसभा का चुनाव जीते। सोनिया गांधी के करीबी होने के साथ उनके राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल के भी वह काफी करीबी थी।

कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व कमजोर

उस समय कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व बहुत ताकतवर था। अब उतना ही कमजोर है। अगर कांग्रेस चुनाव जीतती है तो इस बार भी हरियाणा के सीएम के चयन को लेकर एक दो दिन बैठकों का दौर के साथ विधायकों के समर्थन को लेकर भी गर्मा गर्मी देखी जा सकती।हुड्डा 2005 में जब पहली बार मुख्यमंत्री बने थे तो उस समय पर्यवेक्षक की भूमिका निभाने वाले राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत इस बार भी वरिष्ठ पर्यवेक्षक बनाए गए हैं।देखते हैं कि हरियाणा में राजनीति का ऊंट किस करवट बैठता है।

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