डाॅ.श्रीकृष्ण शर्मा, नई दिल्ली:
टोक्यो ओलंपिक में मिली अभूतपूर्व कामयाबी से देश में जोश दिखाई पड़ रहा है। युवाओं में खेेलों से जुड़ने की व्याकुलता जीत की कहानी बयां कर रही है। सपना है कि वे भी ओलंपिक खेलों में भारत के लिए पदक जीतकर लाएं। जीत का असर यही होता है। जिस तरह से समूचा भारत ओलंपिक खेलों में दमखम दिखाने वाले खिलाड़ियों को सम्मान प्रदान कर रहा है उससे खेलों के प्रति आकर्षित होना स्वाभाविक ही है।
आज बात करते हैं ओलंपिक खेलों में भारतीय भारोत्तोलन की। टोक्यो ओलंपिक खेलों में सात पदकों की सफलता में भारोत्तोलन में मीराबाई चानू ने रजत पदक जीतकर भारतीय भारोत्तोलकों को विशेष रूप से प्रेरित किया है। इनमें उभरते भारोत्तोलक हर्षित सहरावत भी उत्साहित दिखाई पड़ रहे हैं। उनका मानना है कि पुरूष भारोत्तोलकों को भी अब देर किए बिना कुछ नया कर दिखान चाहिए। भारत की कामयाबी में महिला भोरोत्तोलक जीत का रास्ता दिखा रही हैं। अब ओलंपिक खेलों में पुरूषों को भी आगे बढ़ना होगा। जूनियर अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी हर्षित सहरावत रेलवे में कार्यरत है। दो बार जूनियर राष्ट्रीय चैंपियन तथा एक बार अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्याल चैपियन होने के साथ साथ जूनियर एशियाई प्रतियोगिता में भी भाग ले चुके हंै। प्रदर्शन में हो रहे सुधारों को आधार मानकर जिस तरह से हाल ही में सीनियर नेशनल वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप पटियाला में प्रवेश के बाद कांस्य पदक की जीत हांसिल की है वह रास्ता ओलंपिक की तरफ कदम को मजबूती देगा ऐसा मानना है हर्षित सहरावत का। भारोत्तोलन में प्रवेश करने के सवाल पर बतातें हैं कि उनके पिता सुनील कुमार भारोत्तोलक और उनके कोच भी हैं। सुनील कुमार भी रेलवे में ही कार्यरत हैं। उनकी इच्छा है कि वे भारोत्तोलन में देश का नाम रोशन करें । हर्षित को विश्वास है कि राॅयल हेल्थ क्लब,नांगल देवत दिल्ली में वह अपने पिता से ही टेªनिंग लेकर तकनीकी तौर पर और मजबूत होंगे।
ओलंपिक खेलों में भारतीय पुरूष वर्ग में अभी तक भारत कामयाब नहीं हो पाया है। जबकि महिला वर्ग में मीराबाई चानू ने भारत के भारोत्तालन के खाते में एक और पदक डाला है। इससे इक्कीस साल पहले सिडनी ओलंपिक खेलों में कर्णम मल्लेश्वरी ने कांस्य पदक जीता था। वह पदक जीतने वाली पहलीे भारतीय महिला हैं। ओलंपिक खेलों में भारतीय वेटलिफ्टर की शानदार शुरूआत थी। सिडनी ओलंपिक खेलों में महिला भारोत्तोलन को पहली बार शामिल किया गया था। मीराबाई चानू के प्रदर्शन से युवावर्ग बड़े उत्साह के साथ भारोत्तोलन को अपनाने का मन बनाते भी दिखाई दे रहा है । जिसकी इस खेल को जरूरत भी है।
आज बात करते हैं ओलंपिक खेलों में भारतीय भारोत्तोलन की। टोक्यो ओलंपिक खेलों में सात पदकों की सफलता में भारोत्तोलन में मीराबाई चानू ने रजत पदक जीतकर भारतीय भारोत्तोलकों को विशेष रूप से प्रेरित किया है। इनमें उभरते भारोत्तोलक हर्षित सहरावत भी उत्साहित दिखाई पड़ रहे हैं। उनका मानना है कि पुरूष भारोत्तोलकों को भी अब देर किए बिना कुछ नया कर दिखान चाहिए। भारत की कामयाबी में महिला भोरोत्तोलक जीत का रास्ता दिखा रही हैं। अब ओलंपिक खेलों में पुरूषों को भी आगे बढ़ना होगा। जूनियर अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी हर्षित सहरावत रेलवे में कार्यरत है। दो बार जूनियर राष्ट्रीय चैंपियन तथा एक बार अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्याल चैपियन होने के साथ साथ जूनियर एशियाई प्रतियोगिता में भी भाग ले चुके हंै। प्रदर्शन में हो रहे सुधारों को आधार मानकर जिस तरह से हाल ही में सीनियर नेशनल वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप पटियाला में प्रवेश के बाद कांस्य पदक की जीत हांसिल की है वह रास्ता ओलंपिक की तरफ कदम को मजबूती देगा ऐसा मानना है हर्षित सहरावत का। भारोत्तोलन में प्रवेश करने के सवाल पर बतातें हैं कि उनके पिता सुनील कुमार भारोत्तोलक और उनके कोच भी हैं। सुनील कुमार भी रेलवे में ही कार्यरत हैं। उनकी इच्छा है कि वे भारोत्तोलन में देश का नाम रोशन करें । हर्षित को विश्वास है कि राॅयल हेल्थ क्लब,नांगल देवत दिल्ली में वह अपने पिता से ही टेªनिंग लेकर तकनीकी तौर पर और मजबूत होंगे।
ओलंपिक खेलों में भारतीय पुरूष वर्ग में अभी तक भारत कामयाब नहीं हो पाया है। जबकि महिला वर्ग में मीराबाई चानू ने भारत के भारोत्तालन के खाते में एक और पदक डाला है। इससे इक्कीस साल पहले सिडनी ओलंपिक खेलों में कर्णम मल्लेश्वरी ने कांस्य पदक जीता था। वह पदक जीतने वाली पहलीे भारतीय महिला हैं। ओलंपिक खेलों में भारतीय वेटलिफ्टर की शानदार शुरूआत थी। सिडनी ओलंपिक खेलों में महिला भारोत्तोलन को पहली बार शामिल किया गया था। मीराबाई चानू के प्रदर्शन से युवावर्ग बड़े उत्साह के साथ भारोत्तोलन को अपनाने का मन बनाते भी दिखाई दे रहा है । जिसकी इस खेल को जरूरत भी है।