नीरज कौशिक, महेंद्रगढ़:
हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय (हकेवि), महेंद्रगढ़ के शोधार्थियों व शिक्षकों की टीम ने एक ऐसा जैव उर्वरक तैयार किया है जो कि फसलों के लिए वरदान साबित हो रहा है। इस उर्वरक के उपयोग से फसलों में प्रयोग होने वाले फर्टिलाइजर की मांग की आवश्यकता को कम करने में मदद मिल रही है।
विश्वविद्यालय के गोद लिए गांव मालड़ा में इस जैव उर्वरक का सफल परीक्षण किया गया। इससे आए परिणामों के अवलोकन हेतु विश्वविद्यालय कुलपति प्रो. टंकश्वर कुमार ने शिक्षकों, विद्यार्थियों व शोधार्थियों के साथ मालड़ा का दौरा किया। कुलपति ने इस तकनीक के परिणामों पर हर्ष व्यक्त करते हुए कहा कि अवश्य ही इस प्रयास का लाभ ग्रामीणों को प्राप्त होगा और विश्वविद्यालय के सूक्ष्म जीवविज्ञान विभाग के इस प्रयास के माध्यम से आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना को साकार करते हुए प्राकृतिक खेती को बढ़ावा मिलेगा।
उन्नत भारत अभियान के तहत जैव उर्वरक तकनीक की विकसित
विश्वविद्यालय में इस परियोजना के प्रमुख प्रो. सुरेंद्र सिंह ने बताया कि उनकी टीम स्थानीय कृषकों के सहयोग से इस प्रयास में बीते तीन सालों से कार्य कर रहे हैं। इस तकनीक के अंतर्गत नए सीजन में और अधिक कृषकों को जैव उर्वरक उपलब्ध कराए जाएंगे। उन्होंने कहा कि इस तकनीक के अंतर्गत पोटाशियम और फासफोरस के संतुलन को स्थापित कर फसल उपयोगी बनाने में मदद मिली है और जिसके परिणाम स्वरूप 40 से 50 प्रतिशत कम रासायनिक खाद (डीएपी) का प्रयोग करके 5 से 10 प्रतिशत तक उपज में वृद्धि दर्ज की जा सकती है। विश्वविद्यालय के शैक्षणिक अधिष्ठाता प्रो. दिनेश कुमार ने बताया कि स्थानीय किसानों की कृषि वर्षा की कमी के चलते निरंतर प्रभावित होती है। ऐसे में जैव उर्वरकों की मदद से उत्पादकता को बढ़ाने में सहयोग मिलेगा। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय की टीम के द्वारा इस दिशा में किए गए प्रयास उल्लेखनीय परिणाम प्रदान कर रहे हैं और अवश्य ही इसका लाभ अन्य किसान भी उठाएंगे।
विश्वविद्यालय कुलपति के साथ मालड़ा गांव के दौरे पर प्रो. प्रमोद कुमार, प्रो. पवन कुमार मौर्य, डॉ. मोना शर्मा, उन्नत भारत अभियान के नोडल ऑफिसर प्रो. विकास बेनीवाल सहित इस परियोजना के जुड़ें सूक्ष्म जीवविज्ञान विभाग के विद्यार्थी व शोधार्थी स्थानीय ग्रामीणों के साथ उपस्थित रहे।
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