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Gurugram News : विश्व को रास्ता बताने वाला भारत हमें अपने परिश्रम से खड़ा करना होगा: डा. मोहन भागवत

  • अच्छे विचारों का अनुकरण करें, लेकिन अंधानुकरण नहीं: डा. मोहन भागवत
  • विजन फॉर विकसित भारत के विषय पर अखिल भारतीय शोधार्थी सम्मेलन में कही यह बात

(Gurugram News )गुरुग्राम। आरएसएस के सरसंघचालक डा. मोहन भागवत ने कहा कि जितना ज्ञान हम कमा सकते हैं, कमाना चाहिए। सीखते रहना ही जीवन है। हमें सीखते-सीखते बुद्ध बन जाना है। शोध के लिए उत्तम प्रकार की जानकारी होनी चाहिए। हमारे भारत में सभी तरह के उत्तम मॉडल विद्यमान है। डा. भागवत शुक्रवार को गुरुग्राम स्थित एसजीटी युनीवर्सिटी में विजन फॉर विकसित भारत के विषय पर अखिल भारतीय शोधार्थी सम्मेलन के पहले दिन प्रथम सत्र को संबोधित कर रहे थे। सम्मेलन को इसरो के चेयरमैन डा. सोमनाथ और कैलाश सत्यार्थी ने भी संबोधित किया।

डा. मोहन भागवत ने कहा कि हमारे युवाओं में पुरानी पीढ़ी से अधिक क्षमता है। भारत को सब प्रकार के सामर्थ्य में नंबर वन बनाना है। विश्व में अपना प्रतिमान स्थापित करना है। शोधार्थियों को सचेत करते हुए उन्होंने कहा हमें नकल नहीं करनी है, कार्बन कॉपी नहीं चलेगी। विश्व को रास्ता बताने वाला भारत अपने परिश्रम से खड़ा करना होगा। उन्होंने कहा कि पिछले 2000 वर्षों से विकास के अनेक प्रयोग हुए, लेकिन ये प्रयोग दुनिया पर हावी होते चले गए और फिर अपयशी हो गए। विकास हुआ तो पर्यावरण की समस्या खड़ी हो गई। अब दुनिया भारत की तरफ देख रही है कि भारत ही कोई रास्ता निकालेगा।

गुरुग्राम स्थित एसजीटी यूनिवर्सिटी में तीन दिवसीय विजन फॉर विकसित भारत (विविभा-2024) अखिल भारतीय शोधार्थी सम्मेलन को संबोधित करते राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत।

डा. भागवत ने कहा कि 16वीं सदी तक भारत सभी क्षेत्रों में दुनिया का अग्रणी था। 10 हजार सालों से हम खेती करते आ रहे हैं, जमीन कभी उषर नहीं हुई, लेकिन दुनिया में अधूरापन था और गड़बड़ होती चली गई। हमारे यहां विकास समग्रता से देखा जाता है, जबकि दुनिया के देशों में लोगों को शरीर व मन का विकास चाहिए। अब लोगों को वह सुख चाहिए जो कभी फीका ना पड़े और इसी सुख के कारण परेशानियां खड़ी होती चली गई।

डा. भागवत ने कहा कि हमें अच्छे विचारों को ग्रहण करना चाहिए, लेकिन अंधानुकरण नहीं करना चाहिए। बिना शिक्षा के विकास संभव नहीं, लेकिन शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिसमें अपनी दृष्टि हो और शिक्षा उपयोगी हो। करणीय बातें सपने देखने से नहीं आती, बल्कि करने से आती है। युवकों की सोच नई होती है, किसी प्रकार का बंधन नहीं रहता। युवकों को अच्छा वातावरण मिलना चाहिए। अच्छे इनोवेशन की कद्र होनी चाहिए। विद्यापीठों को भी संसाधनों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए और हर संसाधन शोधार्थयों को मुहैया कराना चाहिए।

नए नए शोध को प्रोत्साहन देना भी विद्यापीठों को कर्तव्य है

डा. भागवत ने कहा कि विद्यापीठों में नियमों की चौखट व्यवसथा है, लेकिन व्यवस्था बंधन नहीं होना चाहिए। व्यवस्था ज्ञान को बढ़ाने वाला साधन होना चाहिए। उन्होंने कहा कि आजकल शिक्षा का सारा उद्देश्य पेट भरना रह गया है, लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए यह कुरीति है। सम्मेलन में डा. भागवत ने शोधार्थियों को आध्यात्म और धर्म से जुड़े अनेक पहलुओं पर विस्तार से जानकारी दी और अपने शोध को मानवता के लिए उपयोगी बनाने की बात कही।

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Sandeep Singh

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