Gurugram News : गुरुग्राम में हुई नेशनल इनिशिएटिव फॉर सेफ साउंड की आठवीं कॉन्फ्रेंस

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The eighth conference of the National Initiative for Safe Sound was held in Gurugram
गुरुग्राम में नेशनल इनिशिएटिव फॉर सेफ साउंड की आठवीं कॉन्फ्रेंस का शुभारंभ करते अतिथि।

(Gurugram News) गुरुग्राम। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की यहां नेशनल इनिशिएटिव फॉर सेफ साउंड की आठवीं कॉन्फे्रंस में ध्वनि प्रदूषण पर विस्तार से चर्चा हुई। देशभर से पहुंचे विशेषज्ञों ने भारत में बढ़ते बहरेपन के मामलों पर चिंता जाहिर की। साथ ही इस बात की आवश्यकता भी जताई कि लोगों को ध्वनि प्रदूषण के प्रति जागरुक करना बेहद जरूरी हो चुका है।\

ध्वनि प्रदूषण के बढ़ते प्रभावों के दुष्परिणाम पर सभी चिकित्सकों ने चिंता जताई

इस कॉन्फ्रेंस में आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष बबब ईएनटी एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. शंकर मेडिकरी, एनआईएसएस के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. जॉन पनकर, एनआईएसएस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. अजय लेखी व डॉ सीएन राजा सहित देशभर से काफी संख्या में आए चिकित्सकों ने हिस्सा लिया। ध्वनि प्रदूषण के बढ़ते प्रभावों के दुष्परिणाम पर सभी चिकित्सकों ने चिंता जताई। आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. आरवी अशोकन ने कहा कि ध्वनि प्रदूषण और इसकी रोकथाम को लेकर लोगों को जागरुक करना काफी आवश्यक हो चुका है। विशेषकर छोटे बच्चों में शुरू से इसके प्रति जागरुकता लाना जरूरी है। भारत में वाहनों में तेज हॉर्न बजाने का चलन, हेडफोन के ज्यादा प्रयोग, समारोहों में तेज ध्वनि में संगीत बजाने की व्यवस्था पर कंट्रोल होना आज के समय में काफी आवश्यक हो चुका है। जिससे हमारे सुनने की क्षमता प्रभावित हो रही है।

नेशनल इनिशिएटिव फॉर सेफ साउंड की कन्वीनर डॉ. सारिका वर्मा ने कहा कि व्यवहारिक रूप से लोगों को यह सिखाने की जरूरत है कि जिस प्रकार विदेशों में वाहनों के हॉर्न का प्रयोग बिल्कुल नहीं होता है ऐसी ही व्यवस्था के लिए भारत में भी शुरूआत की जाए। मोबाइल फोन और हेडफोन का प्रयोग बच्चों के लिए कम से कम हो ताकि उनके सुनने की क्षमता प्रभावित ना हो। विशेष रूप से वाहन चालकों को तेज ध्वनि के दुष्परिणामों से अवगत कराना काफी आवश्यक है, ताकि समय रहते वे सुनने की क्षमता को लेकर होने वाली परेशानियों से बच सकें।

वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन की तरफ से ध्वनि को लेकर निर्धारित मानकों का प्रयोग, जिसमें यह तय किया गया है कि 55 डेसिबल से ज्यादा दिन में और 45 डेसिबल से ज्यादा शोर रात के समय में नहीं होना चाहिए। उसका हजार गुना शोर हमारे शहरों में रहता है। जिसकी वजह से लोगों के सुनने की क्षमता काफी कम होती जा रही है। जो कि आगे चल कर बहरेपन के रूप में भी तब्दील हो जाती है। इसे मेडिकल की भाषा में न्यॉज इन्ड्यूज हियरिंग लॉस कहा जाता है। तेज ध्वनि की वजह से हमारे शरीर पर किस तरह के दुष्प्रभाव पड़ सकते हैं इसे लेकर भारत के लोगों में जागरूकता काफी कम है। इसमें सुधार की काफी ज्यादा आवश्यकता हो चुकी है। सारिका वर्मा ने बताया कि इस पूरे हफ्ते ध्वनि प्रदूषण को लेकर जागरूकता से संबंधित कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। इस मौके पर नेशनल सेफ साउंड वीक की शुरूआत भी की गई।

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