(Gurugram News) गुरुग्राम। हम तो गुजरे वक्त की धुंधली निशानी हो गए, सेंकड़ों टुकड़ों में बिखरी एक कहानी हो गए, कोई आया ही नहीं यहां हाल दिल का पूछने, जो भी रिश्ते ढूंढते थे आज पानी-पानी हो गए…। यह रचना वरिष्ठ कवि पं. सुरेश नीरव ने सुनाई। सुरुचि परिवार की ओर से एकल काव्य पाठ, सम्मान समारोह एवं काव्य गोष्ठी पालम विहार के एक निजी स्कूल में आयोजित की गई।
प्रथम सत्र की अध्यक्षता गजलकार डॉ. गुरविंदर बांगा ने की। 26 से अधिक देशों में हिंदी का प्रतिनिधित्व कर चुके पंडित सुरेश नीरव ने अपनी बेहतर रचनाएं पढ़ीं। इस अवसर पर संस्था अध्यक्ष डॉ. धनीराम अग्रवाल, महासचिव मदन साहनी, लेखा निरीक्षक नरोत्तम शर्मा द्वारा साहित्यिक संस्था सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष पं. सुरेश नीरव की साहित्यिक सेवाओं के लिए उन्हें सुरुचि सम्मान-2024 से अलंकृत किया गया। दूसरे सत्र की अध्यक्षता पूर्व प्राचार्य एवं नाट्य निर्देशक डॉ. सुरेश वशिष्ठ ने की, जिसमें मुख्य रूप से मदन साहनी, त्रिलोक कौशिक, डॉ. गुरविंदर बांगा, वीणा अग्रवाल, मोनिका शर्मा, रश्मि ममगाई, हरीन्द्र यादव, ब्रह्मदेव शर्मा, राधा शर्मा,अनंत सप्रे, कमलेश पालीवाल, डॉ. रविन्दर मिड्ढ़ा, सुरेन्द्र मनचन्दा, अनिता गुप्ता, नरोत्तम शर्मा, अर्जुन वशिष्ठ ने काव्य पाठ किया।
मदन साहनी ने चर्चित कविता सफर की तलाश पढ़ी। उन्होंने सुनाया-फिर मंजिल का लोभ किसे है, मंजिल तो अंत है, मजा सफर का है और सफर का मजा अनंत है, मुझे मंजिल नहीं सफर की तलाश है। त्रिलोक कौशिक ने सुनाया-अंधियारे में से उजियारा देख रहा हूं, आसमान में है एक तारा देख रहा हूं, इस दुनिया के बंदी गृह में उम्र कटी है, वीर नहीं है फिर भी जारा देख रहा हूं। मोनिका शर्मा ने सुनाया-नेह का तुम दिया और मैं बाती बनूं, संग संग तुम चलो और मैं साथी बनूं, एक दूजे का मन बांचते हम रहे, तुम स्याही बनो और मैं पाती बनूं।
हरींद्र यादव ने गीत में सुनाया-संतों आओ करें उजास आ गई मावस की राती, आदर्शों के दीप जलाएं, ले धीरज बाती रश्मि ममगाई। अनंत सप्रे ने कहा-हद से बढ़ते रहना अच्छा लगता है, अपने मन की कहना अच्छा लगता है। कमलेश पालीवाल ने सुनाया-दिलों पर खौफतारी कर रहा है, वो कैसे हुक्म जारी कर रहा है, वीणा अग्रवाल ने सुनाया-जिसने मुझे पर दिए वही रफ्तार देता है, मेरे छोटे से जीवन को वही विस्तार देता है। ब्रह्मदेव शर्मा ने मानवता पक्ष की ओर इशारा करते हुए सुनाया-युद्ध की अनिवार्यता का अंत होना चाहिए, आदमी वहशी नहीं अब संत होना चाहिए। डॉ. धनीराम अग्रवाल ने आमंत्रित कवि गण एवं श्रोताओं के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।
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